कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि वाले दिन धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 10 अक्टूबर को पड़ रही है ऐसे में इस बार धनतेरस शुक्रवार को मनाई जाएगी। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी तिथि के नाम से भी जाना जाता है। भगवान धन्वंतरि के अलावा इस दिन मां लक्ष्मी, धन के देवता कुबेर और मृत्यु के देवता यमराज की पूजा भी होती है। इसी दिन से दीवाली का पावन त्योहार भी शुरु हो जाता है। इस दिन सोना चांदी या नए बर्तन खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है। चलिए आज आपको बताते हैं कि धनतेरस क्यों मनाई जाती है और इसकी कहानी क्या है....
दो शब्दों से मिलकर बना है शब्द धनतेरस
भारतीय संस्कृति में स्वास्थ्य को सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा धन माना जाता है। ऐसे में इस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार, भगवान धन्वंतरि को भगवान विष्णु का ही अंश माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, इन्होंने ही संसार में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया था। ऐसे में धनतेरस वाले दिन घर के मुख्य द्वार पर तेरह दीए जलाने की प्रथा है। धनतेरस दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला 'धन' और दूसरा 'तेरस' जिसका अर्थ होता है 'धन का तेरह गुणा'। भगवान धन्वंतरि इस दिन प्रकट भी हुए थे इसलिए इस दिन को वैद्य समाज में धन्वंतरि की जंयति के रुप में भी मनाया जाता है।
इसलिए भी मनाई जाती है धनतेरस
शास्त्रों में प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वतंरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। जिस दिन भगवान धन्वंतरि समुद्र से कलश लेकर निकले थे वह कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि थी। भगवान धन्वतंरि समुद्र से कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा चल रही है। भगवान धन्वंतरि को विष्णु भगवान का ही अंश माना जाता है और उन्होंने ही पूरी दुनिया में चिकित्सा विज्ञान का प्रचार और प्रसार किया है। भगवान धन्वंतरि के बाद मां लक्ष्मी दो दिन बाद समुद्र से निकली थी इसलिए उस दिन दीवाली का पर्व मनाया जाता है। भगवान धन्वंतरि देव और मां लक्ष्मी की इस दिन पूजा करने से आरोग्य और सुख मिलता है।
ये है पौराणिक कथा
एक बार मृत्यु के देवता यमराज ने यमदूतों से प्रश्न किया कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में तुमको कभी किसी पर दया आती है। इस पर यमदूतों ने जवाब दिया कि - 'नहीं महाराज, हम तो केवल आपके दिए हुए निर्देषों का पालन करते हैं' फिर यमराज ने कहा कि - 'बेझिझक होकर बताओ कि क्या कभी मनुष्य के प्राण लेने में दया आई है।' तब एक यमदूत ने कहा कि - 'एक बार ऐसी घटना हुई है जिसको देखकर हृदय पसीज गया। एक दिन हंस नाम का राजा शिकार पर गया था और वह जंगल के रास्ते में भटक गया था और भटकते-भटकते दूसरे राजा की सीमा पर चला गया। वहां एक हेमा नाम का शासक था उसने पड़ोस के राजा का आदर सत्कार किया। उसी दिन राजा की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। ज्योतिषों ने ग्रह नक्षत्र को देखते हुए बताया था कि इस बालक के विवाह के चार साल बाद ही इसकी मृत्यु हो जाएगी। तब राजा ने आदेश दिया कि इस बालक को यमुना तट पर एक गुफा में ब्रह्मचारी के रुप में रखा जाए और इस पर स्त्रियों की परछाई भी नहीं पहुंचनी चाहिए लेकिन विधि को कुछ और ही मंजूर था। संयोगवश राजा हंस की पुत्री यमुना तट पर चली गई और वहां राजा के पुत्र को देखा। दोनों ने गन्धर्व विवाह कर लिया। विवाह के चार दिन बाद ही राजा की मृत्यु हो गई।' तब यमदूत ने कहा कि उस नवविवाहिता का करुणा विलाप सुनकर मेरा हृदय पसीज गया था सारी बातें सुनकर यमराज ने कहा कि - 'क्या करें यह तो विधि का विधान है और मर्यादा में रहते हुए यह काम करना ही पड़ेगा।'
यमराज ने बताया था उपाय
इसके बाद सारे यमदूतों ने यमराज से पूछा था कि कोई ऐसा उपाय है जिससे अकाल मृत्यु नहीं होती। इसी घटना के कारण धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है और दीपदान किया जाते हैं।