राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य डेलिना खोंगडुप का कहना है कि कंपनियों को कार्यस्थल पर उत्पीड़न और मातृत्व लाभ की कमी पर कर्मचारियों द्वारा उठाई गई चिंताओं पर तुरंत ध्यान देना चाहिए। आंकड़े बताते हैं कि आज भी महिलाएं हाशिये पर हैं चाहे मामला वेतनमान का हो या फिर उन्हें ऊंचा पद दिए जाने का। भारतीय कार्यबल में सीईओ स्तर पर महिलाओं की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम है।
सीईओ स्तर पर महिलाओं की संख्या केवल 5 प्रतिशत
राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य का कहना है कि- "महिलाओं और सभी लिंगों के अधिकारों के लिए संगठनों में यह एक निरंतर अभ्यास होना चाहिए। समाज के सभी क्षेत्रों के लिए gender diversity हासिल करना एक मानवीय और सामाजिक जिम्मेदारी है। भारत में विविधता बहुत अधिक है और सभी जगहों पर समावेश की भावना होनी चाहिए।" हालांकि निदेशक मंडल में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए कंपनी अधिनियम में संशोधन किया गया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि भारतीय कार्यबल में सीईओ स्तर पर महिलाओं की संख्या 5 प्रतिशत से भी कम है।
काम के बोझ के चलते महिला कर्मचारी की हुई मौत
खोंगडुप ने कहा- "हमें विकसित भारत @2047 के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना चाहिए,"। उनकी यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब ऑडिट फर्म अर्न्स्ट एंड यंग में एक युवा सीए अन्ना सेबेस्टियन की पुणे में गंभीर कार्य दबाव के कारण मृत्यु हो गई।अन्ना (26) की मृत्यु 21 जुलाई को "पीठतोड़ कार्यभार" और "कार्य तनाव" के बोझ से दबने के बाद हुई, ऐसा उनकी मां अनीता ऑगस्टीन ने चेयरमैन राजीव मेमानी को लिखे एक हृदय विदारक पत्र में दावा किया।
नौकरी और घर के बीच संतुलन बनाना मुश्किल
भारत में महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम नौकरियां मिलने के कई कारण हैं, जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और संरचनात्मक मुद्दों से जुड़े हुए हैं। दरअसल भारत में अभी भी कई जगहों पर महिलाओं से घरेलू जिम्मेदारियां निभाने और परिवार की देखभाल करने की अपेक्षा की जाती है। इस वजह से महिलाओं को नौकरी और घर के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है। कई क्षेत्रों में, खासकर ग्रामीण इलाकों में, महिलाओं की सुरक्षा के मुद्दे बड़ी चिंता का विषय हैं। महिलाओं को लंबी दूरी की यात्रा या रात में काम करने से रोका जाता है, जिससे नौकरी के विकल्प सीमित हो जाते हैं।
शादी और मातृत्व भी है बाधा
महिलाओं से अक्सर शादी और परिवार के बाद करियर छोड़ने की उम्मीद की जाती है। मातृत्व की जिम्मेदारियों के कारण भी कई महिलाओं को नौकरियों से पीछे हटना पड़ता है। ग्रामीण और कुछ शहरी क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा को उतनी प्राथमिकता नहीं दी जाती जितनी लड़कों को। इससे महिलाओं के पास उतनी योग्यता या कौशल नहीं होता, जितना नौकरी के लिए जरूरी होता है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी कम होती है, जिससे उच्च वेतन वाली और तकनीकी नौकरियों में उनकी संख्या कम होती है।
लिंग आधारित भेदभाव (Gender Discrimination)
कुछ कंपनियों में अभी भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन दिया जाता है, या फिर उन्हें ऊंचे पदों पर बढ़ने के उतने अवसर नहीं मिलते।कई कंपनियों में उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या कम है। महिलाएं अक्सर "ग्लास सीलिंग" (glass ceiling) का सामना करती हैं, जहां वे लीडरशिप रोल तक पहुंचने में बाधाओं का सामना करती हैं। भारत में कई कंपनियों में फ्लेक्सिबल वर्किंग (समय में लचीलापन) या वर्क फ्रॉम होम की सुविधाएँ सीमित हैं, जिससे महिलाओं के लिए नौकरी और घर की जिम्मेदारियों को निभाना मुश्किल हो जाता है। कई कार्यस्थलों पर महिलाओं के लिए सुविधाजनक माहौल नहीं होता। जैसे, मातृत्व अवकाश, क्रेच की सुविधा, या जेंडर सेंसेटिव पॉलिसीज की कमी।
रोल मॉडल्स की कमी
कई बार समाज में सफल महिलाओं की संख्या कम होने के कारण लड़कियां करियर के अवसरों में प्रेरणा नहीं ले पातीं, जिससे वे नौकरी के लिए अपनी आकांक्षाओं को सीमित कर देती हैं। सरकार और संस्थानों की नीतियों में भी महिलाओं को नौकरियों के समान अवसर नहीं मिल पाते। महिलाओं के लिए रोजगार नीतियों को और मजबूत किया जाना जरूरी है।महिलाओं को नौकरियों में समान अवसर देने के लिए शिक्षा, रोजगार नीतियों, और सामाजिक मान्यताओं में सुधार की आवश्यकता है। महिलाओं के लिए सुरक्षित और महिला-अनुकूल कार्यस्थल, फ्लेक्सिबल वर्किंग नीतियां, और समान वेतन जैसे कदम उठाकर उनकी भागीदारी को बढ़ाया जा सकता है। सरकार और संस्थानों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने की जरूरत है ताकि महिलाएं भी पुरुषों के बराबर नौकरियों में भागीदारी कर सकें।