राजस्थान में किशोरों से जुड़े आकड़ों के आधार पर, अध्ययन में उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है और राज्य में एकीकृत किशोर स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ाने के लिए सुझाव दिए। राज्य की कुल जनसंख्या में किशोरों की संख्या लगभग 23 प्रतिशत है। उनमें से कई गरीबी, सामाजिक भेदभाव, सामाजिक मानदंडों, अपर्याप्त शिक्षा, कम उम्र में शादी और कम उम्र में मां बन जाने और विशेष रूप से वंचित वर्ग से जुड़े किशोरों को अपने स्वास्थ्य संबंधित विकास की दिशा में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता ।
वेबीनार में इस अध्ययन के निष्कर्ष और नीतिगत सुझाव सा की प्रस्तुति, जाने-माने स्वास्थ्य अर्थशास्त्री और इस अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. बरुन कांजीलाल द्वारा की गई।
डॉ. बरुन कांजीलाल ने बताया कि...
- साप्ताहिक आयरन और फॉलिक एसिड अनुपूरक योजना (WIFS) में 1 रुपया प्रति व्यक्ति निवेश करने से उत्पादकता में हो रहे घाटे में जो कमी आएगी वो लगभग दो से बीस रुपये तक की बचत के बराबर होगी। इसका अर्थ ये है कि 6 से 8 करोड़ रुपये के इस पर वार्षिक निवेश से कम से कम 13 करोड़ 20 लाख रुपये का रिटर्न प्राप्त होगा।
- किशोरियों के मासिक धर्म स्वास्थ्य पर एक रुपये के निवेश से शैक्षिक उपलब्धि में नुकसान को कम करने और उत्पादकता में बढ़ोतरी के रूप में जो रिटर्न मिलेगा वह चार रुपये के बराबर होगा। अर्थात सामान्य शब्दों में इसका लाभ-लागत अनुपात 1:4 है।
- इसी तरह से, राजस्थान में यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं में निवेश पर रिटर्न या लाभ-लागत अनुपात (BCR) 2.97 है। इसका अर्थ ये है कि किशोरों की अधूरी स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए किए गए प्रत्येक 100 रुपये के निवेश पर स्वास्थ्य देखभाल लागत पर बचत के रूप में करीब 300 रुपये का रिटर्न मिल सकता है।
मुख्यमंत्री कार्यालय के आर्थिक सलाहकार डॉ. अरविंद मायाराम ने कहा, "यह रिपोर्ट देश में किशोरों के स्वास्थ्य की वास्तविकता को रेखांकित करने के लिए पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा एक अग्रणी प्रयास है। भारतीय आबादी का 21% हिस्सा किशोर हैं और यह विशाल समूह देश को अभूतपूर्व अवसरों के साथ-साथ चुनौतियों भी प्रदान करता है। "भारत जनसांख्यिकीय लाभांश की स्तिथि का अधिकतम लाभ उठा ककर अगले 20-25 वर्षों के लिए वैश्विक आर्थिक विकास में सबसे आगे हो सकते हैं”डॉ. मायाराम ने सुझाव दिया कि स्वयं सेवी संस्थाओं और सरकारों को मानकों और दिशानिर्देशों को विकसित करके सेवाओं की गुणवत्ता और एकरूपता में सुधार के लिए कार्य करना चाहिए। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया जैसे संगठनों को किशोर अनुकूल स्वास्थ्य क्लीनिक जैसे कार्यक्रमों को पायलट करना चाहिए और स्केल-अप के लिए सरकार के साथ अनुभव साझा करने चाहिए। किशोरों के लिए निष्पक्ष स्वास्थ्य सेवाओं की बात करते हुए, उन्होंने टिकाऊ और बायोडिग्रेडेबल सैनिटरी नैपकिन पर शोध करने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि पर्यावरण पर हो रहे प्रतिकूल प्रभाव को कम किया जा सके।कार्यक्रम का संचालन पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने किया
पूनम मुत्तरेजा ने बताया कि “स्वस्थ और कामकाज में सक्षम जनसंख्या आर्थिक विकास में वृद्धि की कुंजी है। भारत में करीब 25.3 करोड़ जनसंख्या किशोर-किशोरियों की है और निकट भविष्य में हम वैश्विक जनसांख्यिकीय विकास में सबसे बड़े अकेले योगदानकर्ता होंगे। राजस्थान में किशोर जनसंख्या 1.57 करोड़ है जो राज्य की जनसंख्या का 23 प्रतिशत है। यानि राजस्थान का हर चौथा व्यक्ति किशोर है। इस परिदृश्य का प्रभाव अधिकतम हो सके, इसके लिए हमें ये सुनिश्चित करना चाहिए कि, हमारी आबादी में कामकाज के लिए सक्षम उम्र वाले लोग स्वस्थ, साक्षर हों और उनके पास सभी संसाधन उपलब्ध हों। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया द्वारा ये अध्ययन, राजस्थान की जनसंख्या का अधिकतम लाभ उठाने की दिशा में किशोर यौन और प्रजनन स्वास्थ्य में निवेश के आर्थिक, स्वास्थ्य संबंधित और सामाजिक लाभों का अनुमान लगाने के उद्देश्य से किया गया है। हमें उम्मीद है कि इस अध्ययन के साथ ही आज हुए इस पैनल डिस्कशन से मिले सुझाव, हमारी युवा जनसंख्या पर निवेश करने की आवश्यकता और रणनीतियों पर बेहतर समझ प्रदान करेगी।”
इस अवसर पर COVID-19 के संदर्भ में किशोर स्वास्थ्य और हितों के बदलते परिदृश्य पर एक पैनल डिस्कशन भी आयोजित किया गया। इसका संचालन पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की दिव्या संथानम ने किया। इस दौरान कई ब्यूरोक्रेट्स, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, शिक्षाविद्, मीडिया प्रतिनिधि और पार्टनर एनजीओ के प्रतिनिधि मौजूद थे।
पैनल में शामिल विशेषज्ञों द्वारा सुझाए गए मुख्य बिंदु
- डॉ अमिता कश्यप, प्रोफेसर, पीएसएम, एसएमएस मेडिकल कॉलेज, जयपुर ने कहा “कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन की वजह से राजस्थान में किशोरों के लिए शिक्षा एक प्रमुख चिंता का विषय है। पीयर एडुकेटर्स और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की परामर्श क्षमताओं को प्रशिक्षण के माध्यम से विकसित करने की आवश्यकता है । कुल मिलाकर, हमें इसके लिए नए कार्यक्रम बनाने की आवश्यकता नहीं है बल्कि जो कुछ कार्यक्रम पहले से मौजूद हैं, उन्हें ही बेहतर बनाया जाना चाहिए।
- रश्मि गुप्ता , आयुक्त, महिला अधिकारिता ने पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया के प्रयासों की सराहना की और बताया कि ये अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए उचित निवेश करना कितना महत्वपूर्ण है। इसी नजरिए को आगे बढ़ाते हुए, राजस्थान सरकार इस साल सभी महिलाओं और लड़कियों को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन देगी और प्रयास किए जाएंगे कि इसमें अधिकतम भागीदारी के लिए लोगों के बीच जागरूकता पैदा हो।
चिल्ड्रन इन्वेस्टमेंट फंड फाउंडेशन (सीआईएफएफ) के कार्यकारी निदेशक डॉ गौरव आर्य ने बताया कि “हमें यह पहचानने की जरूरत है कि समाज और किशोर-किशोरियों की वास्तविक आवश्यकता क्या है। जब हम खास मुद्दों पर काम करते हैं तो उपलब्धता, सामर्थ्य और साधन इसमें प्रमुख भूमिका निभाते हैं। किशोरों के क्षेत्र में कई निवेश किए गए हैं और अभी भी किए जा रहे हैं जिन्हें समग्र रूप से देखने की आवश्यकता है। आज हम जो कुछ भी निवेश कर रहे हैं वह सतत /टिकाऊ हैं। अब सरकार, समाज तथा अनुदान देने वालों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि आज का युवा, जो भविष्य में खुद अभिभावक होगा, उसे पास उन सभी विकल्पों तक पहुंचने के साधन हो, जो विकल्प उनके लिए महत्वपूर्ण हैं”
इस अध्ययन के कुछ प्रमुख नीतिगत कदम उठाने के बारे में सुझाव हैं
-किशोर-किशोरियों की पूरी नहीं हो पा रही आवश्यकतों को पूरा करने के लिए अधिकतम संसाधन आवंटित करने की तत्काल आवश्यकता, इनमें गर्भनिरोधक साधनों की उपलब्धता, व्यापक गर्भपात देखभाल, पोषण और मासिक धर्म स्वच्छता सेवाओं की उपलब्धता शामिल है;
-राज्य भर में किशोर आबादी के लिए यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और कवरेज बढ़ाने के लिए एक बहुआयामी, अभिनव दृष्टिकोण अपनाना;
-पोषण अनुपूरण कार्यक्रमों को सुदृढ़ बनाना और उनका विस्तार करना;-किशोर-किशोरी केंद्रित स्वास्थ्य कार्यक्रमों को उनकी यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है, ये कार्यक्रम उच्च गुणवत्तापूर्ण, भेदभाव रहित, आयु-उपयुक्त और कलंक एवं पूर्वाग्रह से मुक्त होना चाहिए;
-किशोर अनुकूल स्वास्थ्य सेवाओं के क्रियान्वन और विस्तार को सुदृढ़ बनाना; -किशोर केंद्रित डेटा मैनेजमेंट सिस्टम को संस्थागत और मजबूत बनाना।