कहते हैं मजबूरी इंसान से वो सब कुछ करवा देती है जो वो नहीं करना चाहता। ऐसा ही कुछ गुड़गांव में रहने वाली 16 साल की लड़की के साथ हुआ। पिता के निधन के बाद गुड़गांव के 43 सैक्टर में रहने वाली लड़की ने अपने परिवार को चलाने के लिए नौकरी की। घर के छ: सदस्यों अपनी मां, बड़ी बहन जो कि पैरालाइज्ड है चलाने के लिए लोगों के घरों में काम करना शुरु किया। हालांकि इस लड़की के लिए काम करना आसान नहीं था क्योंकि गुड़गाव में सिर्फ यही नहीं बल्कि कई युवा लड़कियां ज्यादातर पश्चिमी बंगाल से कई लड़कियां है जो 24*7 घंटे काम करती हैं। इस साल में सामने आए नाबालिग घरेलू नौकरों के शारीरिक और यौन शोषण के तीन मामले सामने आए हैं जिन पर प्रशासन ने गौर किया है।
24 घंटे से ज्यादा काम करने पर रोक लगाने की मांग
घरेलू कामगार संघ ने अब 24 घंटे के लिए काम करने पर रोक लगाने की मांग की है। इस मामले में गुड़गांव के डिप्टी कमीशनर निशांत कुमार यादव ने कहा है कि घरेलू कामगारों के अधिकारों के बारे में चार्टर तैयार करने के लिए चर्चा चल रही है और इसे तैयार होने में अभी 10 दिन और लगेंगे।
घर परिवार की देखभाल के लिए जरुरी है काम
वहीं इस मामले में बात करते हुए पश्चिमी बंगाल की रहने वाली शकीरा जो की गुड़गांव के सेक्टर 47 में काम करती हैं उन्होंने कहा कि कई महिलाएं अपनी बेटियों के लिए ऐसी नौकरी की तलाश करती हैं क्योंकि पूरे दिन नौकरी करने के लिए उन्हें प्रति महीना 14,000 रुपये सैलरी मिलती है, हम ऐसा इसलिए हैं क्योंकि हमारे पास देखभाल करने के लिए परिवार है। अपने परिवार को चलाने के लिए हम ऐसी लड़कियों को भेजते हैं जिनकी शादी नहीं हुई है कभी-कभी मुझे लगता है कि उन्हें झुग्गियों में रहने की तुलना में किसी के घर में भेजना ज्यादा सुरक्षित है। 'मेरी 14 साल की बेटी 10 साल की उम्र से काम कर रही है और अब तक उसने सभी तरह का काम किया है। हमारे पास खिलाने के लिए पांच बच्चे और सात मुंह हैं। मुझे 15,000 रुपये मिलते हैं और मेरे पति हाउसकीपर के रुप में काम करते हैं और इससे भी कम कमाते हैं। हम अपने बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजेंगें?'
नहीं मिल रहा पूरा मुआवजा
इसी मामले में बात करते हुए पश्चिम बंगाल के मालदा की रहने वाली शर्मीना ने भी सफाई दी। आपको बता दें कि शर्मीना की छ: साल की बेटी है और उसने हाल ही में तलाक मांगा था और वह अकेली रह रही है। 'मैंने 10 साल की उम्र में कम काम करना शुरु कर दिया था। 14 साल की उम्र में शादी करने से पहले मैंने 6-7 मीहने तक पूरी तरह से काम किया है तब से मैं कम घंटे काम कर रही हूं मैंने नौकरी छोड़ दी क्योंकि काम पर मिलने वाले पुरुष मेरे साथ गलत व्यवहार करेंगे या फिर जिसने मुझे नियुक्त किया है वो मुझे पर चोरी करने या समय बर्बाद करने का आरोप लगाएगा।'
गुड़गांव के सेक्टर 43 में रहने वाली 16 वर्षीय लड़की ने नवंबर में अपने पिता की मृत्यु होने तक एक महीने तक लोगों के घरों में काम किया। उसने बात करते हुए बताया कि - 'मेरी मां ने अपनी नौकरी खो दी क्योंकि हमें अंतिम संस्कार के लिए घर वापस जाना था हम दिसंबर के पहले हफ्ते में वापिस आए और नौकरी की तलाश कर रहे हैं। उसकी मां पांच घरों में काम करती थी और उन्हें हर महीने 20,000 रुपये मिलते थे। उसके पिता मचान का काम करते थे। काम करते हुए उनके ऊपर मचान का काम करते हुए चादर गिर गई और उनकी मौत हो गई। जब एक चादर उनके ऊपर से गिर गई और उनकी मौत हो गई। हमें अभी तक दुर्घटना के लिए ठेकेदार से मुआवजा नहीं मिला है।'
सरकार बना रही है कई नीतियां
हालांकि अभी संसद के शीतकालीन सत्र में श्रम एवं रोजगार मंत्रालय(The Minsitry Of Labour And Employement) से पूछा गया था कि क्या सरकार के पास बाल श्रम के आंकड़े हैं और क्या इसे रोकने के लिए कोई कदम उठाए गए हैं। श्रम और रोजगार राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने जवाब दिया सरकार ने बाल श्रम को रोकने के लिए कई सारे विभिन्न उपाय किए हैं और प्रयास किए हैं जिनमें पुर्नवास रणनीति, मुफ्त शिक्षा, विधायी उपाय का अधिकार , सामान्य सामाजिक आर्थिक विकास शामिल है। मंत्री ने राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को बताते हुए कहा कि देश में बाल और श्रम अधिनियम 1986 के तहत 2020, 2021 और 2022 के दौरान 476, 613 और 715 मामले थे। इसी बीच घरेलू काम करने वाली यूनियन की संयोजक माया जॉन ने कहा कि उन्हें चार्टर पर गुड़गांव प्रशास से अभी तक कोई भी जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि उन्हें चार्टर पर गुड़गांव प्रशासन से अभी तक जवाब नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि यदि वे अगले तीन दिनों में नहीं पहुंचते हैं तो हम विरोध प्रदर्शन करेंगे।
गुड़गांव जैसे शहर में मजदूर कर्जे में डूबे हुए हैं जिनकी देखभाल करने के लिए परिवार है उन्हें ऐसी संभावनाओं को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जाता है ऐसे मामलों में संविधान के अनुच्छेद 23 का उल्लंघन किया जाता है। लड़कियां और महिलाएं एक नियोक्ता के घर में प्रवेश करती हैं और जनता की नजरों के लिए अदृश्य हो जाती हैं क्योंकि वे उन्हें पूरी तरह से नियंत्रित करते हैं। उनकी आवाजाही प्रतिबंधित है घंटों की संख्या बहुत ही ज्यादा है जिससे वे न्यूनतम मजदूरी से काम करते हैं जिससे मजबूर श्रम के माहौल को बढ़ावा मिलता है। ऐसे में सामाजिक सेवा संगठन शक्ति वाहिनी के ऋषि कांत ने कहा कि जबरन पलायन मुख्य रुप से कोविड के बाद और गैर पंजीकृत प्लेसमेंट एजेंसियां जो झूठे वादों के साथ पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे राज्यों के गांवों में पहुंचते हैं उन्हें परिणामस्वरुप ऐसी नौकरियों में नाबालिगों को रोजगार मिलता है। गुड़गांव और नोएडा जैसे शहरों में विनियमन की कमी के कारण इसी तरह के कई मामले हैं। एजेंसियां घरेलू काम के लिए कई लड़कियों को काम देती हैं और उनकी मासिक आय भी ले लेती हैं। लेकिन यह अधिकार आरडब्लूयए के पास होना चाहिए।