मशहूर गायक व संगीतकार बप्पी लहरी का निधन हो गया है। बीती रात 11 बजे मुंबई के एक अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली। इस दुखभरी खबर को सुनकर हर कोई सदमे में है। डॉक्टर्स के मुताबिक, बप्पी लहरी जी ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया की बीमारी से जुझ रहे थे और इसी के कारण उनकी मौत हो गई। वैसे तो यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। मगर कुछ कारणों से स्लीप एपनिया का शिकार होने का खतरा बढ़ जाता है। चलिए आज हम आपको इस आर्टिकल में ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया (OSA) के बारे में बताते हैं...
ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया
हेल्थ एक्सपर्ट अनुसार, यह नींद से संबंधित एक ब्रीदिंग डिसऑर्डर है। इसमें सोते दौरान मरीज की सांस बार-बार रूकती व चलती है। इस दौरान मरीज की सांस कुछ सेकेंड से 1 मिनट तक रूक सकती है। इसके साथ ही व्यक्ति की नींद में जाग खुल जाती है और उसे महसूस भी नहीं होता हैं। एक्सपर्ट अनुसार, नींद से जुड़ी स्लीप एपनिया की बीमारी कई तरह की होती है। मगर इनमें ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया लोगों में आम देखने को मिलती है। हम यूं भी कह सकते हैं कि लोग इसके ज्यादा शिकार होते हैं। ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया तब होता है जब गले की मांसपेशियां नींद के दौरान ढीली पड़ने लगती है। इसके साथ ही इसके कारण एयर फ्लो में रुकावट आने लगती है। इसी कारण रोगी तेज-तेज खर्राटे लेता है। मगर यहां आपको बता दें, कि खर्राटे लेने वाला हर व्यक्ति इस बीमारी से पीड़ित नहीं माना जा सकता है। स्लीप एपनिया में श्वासनली के ऊपरी मार्ग में रुकावट आने से वायु के प्रवाह में रुकावट आने लगती है। सांस लेने में रुकावट देर तक रहने पर खून में ऑक्सीजन के स्तर में कमी होने लगती है। इस कमी के कारणर रोगी की जान जाने का खतरा रहता है।
ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया के लक्षण
. दिन के समय नींद आना
. तेज आवाज में खर्राटे लेना
. नींद दौरान सांस रुकी हुई महसूस होना
. हांफते हुए या घुटन के साथ अचानक जाग खुलना
. बार-बार मुंह सूखना या गले में खराश
. एकाग्रता शक्ति में कमी आना
. सुबह के समय सिरदर्द की शिकायत रहना
. बार-बार मूड में बदलाव आना
. ब्लड प्रेशर हाई रहना
. यौन इच्छा में कमी आना
. तनाव व डिप्रेशन
ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया के कारण
वैसे तो स्लीप एपनिया की बीमारी किसी को भी घेर सकती है। मगर कुछ कारणों से इस बीमारी की चपेट में आने का खतरा अधिक रहता है। चलिए जानते हैं उन कारणों के बारे में...
. मोटापा
हेल्थ एक्सपर्ट अनुसार, वजन बढ़ने पर इस बीमारी की चपेट में आने की संभावना अधिक रहती है। दरअसल, श्वास नली के ऊपरी हिस्से में फैट जमा होने के कारण सांस लेने में दिक्क्त आ सकती है। इसके साथ ही मोटापे से जुड़ी बीमारियां जैसे-हाइपोथायरॉइड और पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम होने के कारण मरीज को ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया हो सकता है।
. उम्र बढ़ना
जैसे की हर कोई जानता है कि उम्र बढ़ने से शरीर कमजोर होने लगता है। इस दौरान बीमारियों की चपेट में आने का खतरा भी कई गुणा अधिक हो जाता है। एक्सपर्ट अनुसार, 60 साल के बाद स्लीप एनपिया होने का खतरा भी रहता है।
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संकरी (छोटी या संकुचित) श्वासनली
कई लोगों की बचपन में किसी वजह से श्वासनली संकरी हो जाती है। इसके अलावा टॉन्सिल्स बढ़ने से भी श्वासनली का रास्ता संकुचित व बाधित हो जाता है। इसके कारण सांस लेने में दिक्कत आने लगती है।
हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज
हेल्थ एक्सपर्ट अनुसार, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज के मरीजों को स्लीप एपनिया होने का खतरा अधिक रहता है।
धूम्रपान
जैसे की सभी जानते हैं कि धूम्रपान करने से फेफड़े खराब होने लगते हैं। इसके कारण सांस से जुड़ी समस्याएं होने का खतरा रहता है। वही धूम्रपान करना स्लीप एपनिया होने की भी एक वजह है।
अनुवांशिक
हेल्थ एक्सपर्ट अनुसार, अन्य बीमारियों की तरह अगर परिवार में कोई स्लीप एपनिया से पीड़ित हैं तो अन्य सदस्यों को इसकी चपेट में आने का खतरा रहता है।
मेनोपॉज के बाद
40 की उम्र के बाद महिलाओं को मेनोपॉज यानि पीरियड्स रुक जाते हैं। ऐसे में इस दौरान महिलाओं को स्लीप एपनिया होने की संभावना रहती है।
अस्थमा
कई अध्ययनों मुताबिक अस्थमा की बीमारी और ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया के बीच भी संबंध है। ऐसे में अस्थमा की बीमारी से जूझ रहे लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं।
इलाज करने का तरीका
एक्सपर्ट अनुसार, इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है। इसें ऐसे डिवाइस का इस्तेमाल होता है जो सोते समय व्यक्ति के वायुमार्ग को खुला रखने का काम करता है। इसके अलावा एक और इलाज का तरीका है। इसमें एक माउथपीस की मदद से मरीज के निचले जबड़े पर दबाव डाला जाता है। वहीं कई मामलों में सर्जरी द्वारा इलाज संभव होता है। इस बीमारी दौरान रोगी को पीठ के बल सोने पर ज्यादा खर्राटे आने की समस्या सताती है। मगर करवट लेने पर खर्राटे शात हो सकते हैं।
कब करना चाहिए डॉक्टर से संपर्क?
. नींद दौरान सांस रुकना या उठते ही हांफने लग जाना
. बहुत ऊंची आवाज में खर्राटे लेना
. बिना कोई ज्यादा काम किए थकान, कमजोरी महसूस होना
. स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना
ऐसे लक्षण दिखने पर मरीज को तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।