केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में वार्षिक श्री अमरनाथ यात्रा के 29 जून से शुरू होने की संभावना है। चुनावों को देखते हुए इस बार अमरनाथ यात्रा के दिनों में कटौती की गई है, बताया जा रहा है कि इस साल 45 दिन ही भक्त बाबा के दर्शन कर पाएंगे। अगर आप भी अमरनाथ यात्रा में जाने की योजना बना रहे हैं तो बता दें कि इसका रजिस्ट्रेशन 15 अप्रैल से शुरू हो रहा है।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि उपराज्यपाल एवं श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष मनोज सिन्हा ने यात्रा की व्यवस्था और तैयारियों पर चर्चा के लिए राजभवन में एक बैठक की अध्यक्षता की। यह वार्षिक तीर्थयात्रा 29 जून को शुरू होने के बाद 19 अगस्त को रक्षाबंधन के दिन समाप्त होगी। आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि-‘‘लोकसभा चुनाव के समापन के बाद प्रशासन श्री अमरनाथ यात्रा कि तैयारी जुट जाएगी, यात्रा 29 जून से शुरू होकर 19 अगस्त को समाप्त होने की संभावना है।''
बताया जा रहा है कि यात्रा के लिए पंजीकरण अगले महीने के अंत में विभिन्न बैंकों की शाखाओं में शुरू होने की उम्मीद है। यात्रा की आरती का सीधा प्रसारण जुलाई माह से शुरू होगा। गौरतलब है कि पिछले वर्ष बालटाल और पहलगाम मार्गों से एक जुलाई को शुरू हुई अमरनाथ यात्रा के दौरान 4.5 लाख तीर्थयात्रियों ने बफार्नी बाबा के दर्शन किये थे।
यहां की प्रमुख विशेषता पवित्र गुफा में बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग का निर्मित होना है। प्राकृतिक हिम से निर्मित होने के कारण इसे स्वयंभू हिमानी शिवलिंग भी कहते हैं। आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। श्रावण पूर्णिमा को शिवलिंग पूरे आकार में आ जाती है और अमावस्या तक धीरे-धीरे छोटी होने लगती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग अलग हिमखंड हैं।
गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई देता है, जिन्हें अमर पक्षी माना गया हैं। वे भी अमरकथा सुनकर अमर हुए हैं। ऐसी मान्यता भी है कि जिन श्रद्धालुओं को कबूतरों को जोड़ा दिखाई देता है, उन्हें शिव पार्वती अपने प्रत्यक्ष दर्शनों से निहाल करके उस प्राणी को मुक्ति प्रदान करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने अद्र्धागिनी पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था। यह कथा कालांतर में अमरकथा नाम से विख्यात हुई।