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भगवान शिव का अनोखा मंदिर... यहां शिवलिंग के पानी में डूबते ही हो जाती है बारिश

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 25 Sep, 2023 03:45 PM
भगवान शिव का अनोखा मंदिर... यहां शिवलिंग के पानी में डूबते ही हो जाती है बारिश

उत्तर प्रदेश के भदोही जिले में भगवान शिव शंकर भोलेदानी का एक ऐसा अनोखा मंदिर जहां शिवलिंग को पानी में डूबने से मेघ बरसने को विवश होते थे। बारिश के लिए शिव भक्त द्वारा अपनाया जाने वाला यह तरीका ईश्वरीय सत्ता को नकारने वालों के लिए खुली चुनौती साबित हुई थी। भदोही जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर काशी-प्रयाग के मध्य बसुही नदी के तट पर स्थित सदियों पुराना शिव मंदिर संगोनाथ के नाम से ख्याति प्राप्त है। जहां पूरे वर्ष भर दूरदराज से पहुंचे श्रद्धालु भगवान शिव के लिंग का दर्शन पूजन कर इच्छित कामनाओं की पूर्ति करते हैं। 

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रामायण जैसे ग्रथों में अकाल जैसी विभिषिका से निजात पाने के लिए राजा जनक के राज्य में महिलाओं द्वारा हल चलाने की परंपराएं उल्लेखित हैं। कलयुग में भी अवर्षा की स्थिति में महिलाओं द्वारा हल चलाने की परंपरा का उल्लेख कभी-कभार मीडिया की सुर्खियों में सुनने को मिल ही जाता है। ऐसी परंपराओं को भले ही विज्ञान जगत अंधविश्वास व कोरी बकवास करार देता हो लेकिन कुछ देवस्थानों के चमत्कार ईश्वरीय सत्ता में विश्वास करने वाले लोगों के लिए रामबाण साबित हुए हैं। बसुही नदी के तट पर स्थित सदियों पुराना ऐतिहासिक शिव मंदिर इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। 

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अक्सर देखा गया कि जब कभी सूखे के कारण अकाल जैसी स्थिति उत्पन्न हुई भक्त द्वारा संगोनाथ स्थित शिवलिंग को पानी में डूबने से बारिश हुई है। स्थानीय बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि शिव भक्त भागवत ने बारिश के लिए कई बार यह अनूठा तरीका आजमाया था। बताते हैं कि वर्षा के लिए इस भक्त ने जब कभी भी संगोनाथ मंदिर के पानी निकासी द्वार को बंद कर पूरे गर्भगृह को पानी से भरकर शिवलिंग को डुबोया है। तब तब घनघोर बारिश हुई है।

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ग्रामीणों ने बताया कि 1981 में भयंकर सूखा पड़ा था। उस समय क्षेत्रीय लोगों के आग्रह पर भागवत ने शिव लिंग को नदी के पानी से भरकर डुबो दिया। बताया जाता है कि उस समय इतनी घनघोर बारिश हुई की नदियां उफान पर हो गई। कई गांव बाढ़ के पानी से जलमग्न होकर डूबने लगे। चारों तरफ बारिश के पानी से भयंकर तबाही का मंजर उत्पन्न हो गया। हालांकि बाढ़ से बचाव के लिए नदी के पानी से डूबे शिवलिंग को जब सुखाया गया तो इंद्रदेव पूरी तरह शांत हो गए। 

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बताया जाता है कि बारिश का यह अनूठा प्रयोग एक नहीं कई बार भागवत द्वारा किया गया। क्षेत्रीय बुजुर्ग इस अनूठे प्रयोग के विषय में चर्चा करने मात्र से पूरी कथा विस्तार से सुनते हैं। हालांकि लगभग 90 वर्ष की आयु में पहुंचे भागवत का करीब दो दशक पहले निधन हो गया उसी समय से बारिश के लिए की जाने वाली यह अनूठी परंपरा भी सदा सदा के लिए समाप्त हो गई। 


 

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