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न हाथों की मेहंदी छूटी थी न ही पैरों का आल्ता...जब एक रानी ने पति को निशानी के तौर पर  भिजवा दिया अपना सिर

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 23 Feb, 2023 06:21 PM
न हाथों की मेहंदी छूटी थी न ही पैरों का आल्ता...जब एक रानी ने पति को निशानी के तौर पर  भिजवा दिया अपना सिर

न हाथों की मेहंदी छूटी थी और न ही पैरों का आल्ता,  जब एक रानी ने  मातृभूमि के लिए अपना सिर खुद अपने हाथों से काट कर  रणभूमि में भिजवा दिया था, ताकि उसका पति नयी नवेली पत्नी की खूबसूरती में उलझ कर कर्तव्य पथ से भटक न जाये। आज भी उस रानी का वह रूप याद कर सिहर जाते हैं लोग। यह कहानी है  हाड़ी रानी की जो बूंदी के हाडा शासक की बेटी थी और उदयपुर (मेवाड़) के सलुम्बर ठिकाने के रावत लुणा जी चुण्डावत की रानी थी  


शादी के हफ्ते बाद रानी की जिंदगी में आया तूफान

उनकी शादी उदयपुर (मेवाड़) के सलुम्बर ठिकाने के रावत रतन सिंह चुण्डावत से हुई थी। शादी को एक हफ्ता ही बीता था कि एक सुबह रावत रतन सिंह को मेवाड़ के महाराणा राज सिंह (1653-81) को औरंगजेब के खिलाफ मेवाड़ की रक्षा के लिए युद्ध का संदेश मिला।  एक क्षण की भी देर न करते हुए हाड़ा सरदार ने अपने सैनिकों को कूच करने का आदेश दे दिया था और अपनी पत्नी से अंतिम विदाई लेने के लिए उनके पास पहुंच गए। 

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राजा ने मांगी थी रानी की निशानी

केसरिया पोशाक पहने युद्ध वेश में सजे पति को देख कर हाड़ी रानी चौंक पड़ी, वह अचंभित थी। इस दौरान रानी के पति ने कहा-  मुझे हंसते-हंसते विदा दो़ पता नहीं फिर कभी भेंट हो या न हो। हाड़ा सरदार का मन आशंकित था़ सचमुच ही यदि न लौटा तो मेरी इस अर्धांगिनी का क्या होगा? हाड़ा सरदार के मन में रह-रह कर यह ख्याल आ रहा था कि कहीं मेरी नयी-नवेली पत्नी मुझे भुला न दे!उन्होंने आधे मार्ग से अपने विश्वस्त सैनिकों से रानी को संदेश भिजवाया कि मुझे भूलना मत, मैं जरूर लौटूंगा़ साथ ही, हाड़ा सरदार ने पत्र वाहक के हाथों रानी से उनकी कोई प्रिय निशानी भी मंगवाई। 


पति को मोह से बाहर निकालना चाहती थी रानी

सेवक के निशानी मांगने पर रानी ने यह सोच कर कि कहीं उसके पति पत्नीमोह में युद्ध से विमुख न हो जाए या वीरता नही प्रदर्शित कर पाए इसी आशंका के चलते इस वीर रानी ने अपना शीश काट कर ही निशानी के तौर पर भेज दिया ताकि उसका पति अब उसका मोह त्याग निर्भय होकर अपनी मातृभूमि के लिए युद्ध कर सके। शीश काटने से पहले वह सैनिक से बोलीं- मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी दे रही हूं। इसे थाल में सजा कर, सुंदर वस्त्र से ढंक कर अपने वीर सरदार के पास पहुंचा देना लेकिन ध्यान रहे, इसे कोई और न देखे़, साथ में मेरा यह पत्र भी उन्हें दे देना। 

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मरने से पहले राजा के लिए लिखा पत्र 

राजा को भेजे पत्र में रानी ने लिखा था- " प्रिय! मैं तुम्हें अपनी अंतिम निशानी भेज रही हूं। तुम्हारे मोह के सभी बंधनों को काट रही हूं। अब बेफ्रिक होकर अपने कर्तव्य का पालन करें, मैं तो चली अब स्वर्ग में तुम्हारी राह देखूंगी। पलक झपकते ही हाड़ी रानी ने अपने कमर से तलवार निकाल एक झटके में अपना सिर काट डाला। धड़ से अलग होकर वह धरती पर लुढ़क पड़ा यह सब देखकर सैनिक के आंसू नहीं रूक पाए। 

 

सोने की थाल में सजाया रानी का सिर

सैनिक ने रानी के आखिरी संदेश को मानते हुए-  सोने की थाल में  कटे सिर को सजाया, सुहाग की चुनरी से उसे ढंका और उसे ले कर भारी मन से युद्ध भूमि की ओर दौड़ पड़ा। कांपते हाथों से उसने थाली राजा को पकड़ा दी।  हाड़ा सरदार फटी आंखों से पत्नी का सिर देखते रह गये़ उनके मुख से केवल इतना निकला, ओह रानी! तुमने यह क्या कर डाला? आपने तो हद कर दी !! अपने प्यारे पति को इतनी बड़ी सजा दे डाली! खैर, मैं भी तुमसे मिलने आ रहा हूं.

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राजा को युद्ध में मिली थी जीत

कहा जाता है कि उस वक्त राजा के  मोह के सारे बंधन टूट चुके थे़ अपनी रानी का सिर गले में लटका कर वह शत्रुओं पर टूट पड़े़ उन्होंने ऐसा अप्रतिम शौर्य दिखाया कि उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है़। अपनी आखिरी सांस तक वह लड़ते रहे़ औरंगजेब की सेना को उन्होंने तब तक आगे बढ़ने नहीं दिया, जब तक मुगल बादशाह मैदान छोड़ कर भाग नहीं गया था।  दूसरे राजपूतो के की भांति वो भी वीर गति को प्राप्त होकर एक अमर कहानी लिख गए। 

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