राजस्थान में हाल ही में एक गायनेकोलॉजिस्ट डॉक्टर अर्चना शर्मा ने अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए आत्महत्या कर ली। दरअसल, उनपर आरोप था कि उन्होंने एक गर्भवती महिला की हत्या की है लेकिन उस महिला की मौत का कारण लापरवाही नहीं बल्कि PPH यानी पोस्टपार्टम हेमरेज यानि डिलीवरी के वक्त अधिक खून बहने की वजह से हुई। महिलाओं को इस बारे में बहुत कम जानकारी होती है। आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 38% और पूरी दुनियाभर में 25% मौतों का कारण पोस्टपार्टम हेमरेज है। चलिए आज अपने इस आर्टिकल में हम आपको पोस्टपार्टम हेमरेज के बारे में सबकुछ बताते हैं, जिसके बारे में जानना महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है।
क्या है पोस्टपार्टम हेमरेज?
दरअसल, डिलीवरी के वक्त यूट्रस, प्लेसेंटा को बाहर निकालने के लिए सिकुड़ता है, जिससे ब्लीडिंग होती है। ऐसा डिलीवरी के वक्त होता ही है। मगर, कई बार यूट्रस सिंकुड़ना बंद कर देता है, जो प्राइमरी PPH का एक कॉमन कारण है। इसकी वजह से प्लेसेंटा के छोटे-छोटे टुकड़े गर्भाशय में रह जाते हैं और बहुत अधिक ब्लीडिंग होने लगती है। इसकी वजह से महिला की मृत्यु हो जाती है।
कब माना जाता है पीपीएच की स्थिति को
. नॉर्मल डिलीवरी के वक्त करीब 500 मि.ली. से ज्यादा और सिजेरियन डिलीवरी के बाद करीब 1000 ml से ज्यादा ब्लीडिंग को PPH माना जाता है। WHO के मुताबिक, हर 24 घंटे की अवधि में 1,000 मि.ली. से अधिक रक्त बहना 'गंभीर पीपीएच' माना जाता है, जो महिलाओं के लिए घातक है।
. वहीं, अगर महिला में खून कम हो तो 300ml से ज्यादा को भी PPH की कैटगिरी में गिना जाता है।
हो तरह का होता है पीपीएच
यह दो तरह से हो सकता है: प्राइमरी, जिसमें डिलीवरी के 24 घंटों में अधिक ब्लड लॉस होता है। दूसरी सैकेंडरी, जिसमें प्रसव के 24 घंटे गुजरने और 6 हफ्ते बीतने के बाद भी ब्लड लॉस हो सकता है।
इन महिलाओं को अधिक खतरा
जिन महिलाओं को बहुत लंबा तेजी से लेबर हुआ हो उन्हें पोस्टपार्टम हेमरेज का खतरा अधिक रहता है। इसके अलावा दूसरी डिलीवरी के वक्त भी महिलाओं को पोस्टपार्टम हेमरेज का डर रहता है। इसके अलावा
- मोटापा
- गंभीर इन्फेक्शन
- ब्लड डिसऑर्डर जैसे कि हीमोफीलिया
- प्लासेंटल इश्यू
- हाई ब्लड प्रेशर के कारण
- प्लेसेंटल अब्रप्शन, जिसमें प्लेसेंटा पहले ही गर्भाशय से अलग हो जाए
- प्लेसेंटा प्रीविया, जिसमें प्लेसेंटा खिसक कर सर्विक्स की ओपनिंग तक आ जाए
- मल्टीपल प्रेगनेंसी (गर्भ में एक से अधिक भ्रूण का होना)
- बच्चे का आकार बड़ा होने से गर्भाशय के बहुत ज्यादा खिंचने की संभावना रहती है।
- अगर महिला की उम्र 40 वर्ष से अधिक है तो भी उसे पोस्टपार्टम हेमरेज की संभावना रहती है।
पोस्टपार्टम हेमरेज के लक्षण
. डिलीवरी के बाद अधिक मात्रा में ब्लीडिंग होना
. ब्लीडिंग लगातार होना
. बीपी बहुत अधिक कम हो जाना
. दिल की धड़कनें बढ़ना
. आरबीसी यानी रेड ब्लड सेल काउंट कम होना
. जेनिटल एरिया में सूजन
. वैजाइना और पेरिनियल रीजन के आसपास के टिशूज में असहनीय दर्द
. चक्कर आना या बेहोश हो जाना
. योनि और आसपास की जगह पर सूजन दिखना
. वैजाइना के आसपास दर्द महसूस होना
मां की देखभाल है जरूरी
जरूरी नहीं कि इस मामले में महिला को गर्भाशय निकलवाना ही पड़े। कई बार सर्जिकल उपकरण से भी यह समस्या खत्म हो जाती है। पोस्टपार्टम हेमरेज से जूझ चुकी महिलाओं को अपना खास ध्यान रखने की जरूरत होती है क्योंकि खून की कमी के कारण उनके शरीर में कमजोरी आ जाती है। इसके लिए डाइट में आयरन से भरपूर फूड्स लें। साथ ही हरी सब्जियां, ताजे फल, जूस, मेवे आदि खाएं।
कब करें डॉक्टर से संपर्क?
अगर डिलीवरी के बाद भी ब्लीडिंग बंद ना हो तो डॉक्टर से संपर्क करें क्योंकि लापरवाही सेहत पर भारी पड़ सकती है।
. अगर ब्लीडिंग अचानक तेज हो जाए और एक घंटे में एक से ज्यादा पैड इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े
. ब्लीडिंग के साथ ही खून के थक्के भी आना
. डिलीवरी के 4 दिन बाद भी लगातार ब्लीडिंग होना
. बेहोशी या चक्कर महसूस होना
. दिल की धड़कन तेज होने लगे या फिर रेगुलर न हो तो तुरंत चेकअप करवाएं।