मां बनना हर महिला के लिए सुखद अहसास है। शादी के बाद जब महिला उल्टी, थकावट या जी मचलाना जैसे लक्षण महसूस करती हैं, तो बड़े-बुजुर्ग उसे प्रेगनेंसी समझ लेते हैं। मगर, कई बार प्रेगेनेंसी टेस्ट करने पर रिजल्ट नेगेटिव आता है। ऐसे में यह फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण हो सकते हैं।
क्या है फॉल्स प्रेगनेंसी?
दरअसल, इसमें महिलाएं प्रेग्नेंट नहीं होतीं बल्कि उनमें प्रेगनेंसी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं, जैसे उल्टी, जी मिचलाना, थकान, ब्रेस्ट में सूजन आदि। इसमें गर्भाधान (conception) और गर्भ में भ्रूण नहीं होता। मगर, फिर भी महिला को लंबे समय तक ऐसे लक्षण नजर आ सकते हैं, जिसकी वजह से लगता है कि वह प्रेग्नेंट है। मेडिकल की भाषा में इसे स्यूडोसाइसिस भी कहा जाता है।
फॉल्स प्रेगनेंसी के कारण
. बार-बार मिसकैरेज होना
. कंसीव न कर पाना
. हार्मोन्स में परिवर्तन
. काल्पनिक गर्भावस्था व आईपीएस
. भावनात्मक रूप से कमजोर होना
कब-कब हो सकती है फॉल्स प्रेग्नेंसी
-मानसिक स्वास्थ्य प्रोफेशनल्स के मुताबिक, महिलाओं में फॉल्स प्रेगनेंसी के लक्षण गर्भवती होने की तीव्र इच्छा या डर की वजह से हो सकते हैं। इससे एंडोक्राइन सिस्टम को प्रभावित होता है, जिससे प्रेगनेंसी जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। वहीं, बार-बार गर्भपात होना, बांझपन (Infertility) या शादी करने की इच्छा होना जैसे स्थिति में वह प्रेगनेंसी के लक्षण महसूस कर सकती हैं।
-इसके अलावा नर्वस सिस्टम में कुछ रासायनिक बदलाव होने की वजह से भी ऐसे लक्षण दिख सकते हैं, जिन्हें डिप्रेसिव डिसऑर्डर कहा जाता है।
- कई बार केमिकल प्रेगनेंसी की वजह से आपको गर्भवती वाले लक्षण दिखाई देते हैं। यह वह स्थिति है जब एक फर्टाइल अंडा विकसित नहीं हो पाता है।
- एक्टोपिक प्रेगनेंसी को भी फॉल्स प्रेग्नेंसी के नाम से जाना जाता है क्योंकि इसमें फर्टिलाइज अंडा यूट्रस के मुख्य कैविटी वॉल के बाहर विकसित नहीं हो पाता, जिससे ये स्थिति बनती है।
फॉल्स प्रेग्नेंसी के लक्षण
-पेट में गैस बनना
-कमर के पास फैट जमना
-पेशाब अधिक लगना
-सिरदर्द रहना
-अनियमित पीरियड्स
-कुछ दिनों तक सुबह में उल्टी महसूस होना।
-ब्रेस्ट सॉफ्ट होना या अनियमित बढ़ना।
-वजन और भूख बढ़ना
-यूट्रस का बढ़ना
-सर्विक्स का नर्म होना।
फॉल्स प्रेगनेंसी का इलाज
झूठी या फैंटम प्रेगनेंसी का इलाज महिला की शारीरिक कारण पर निर्भर होता है। वहीं, अगर मामला सिस्टिक ओवरीज का हो तो एक्सपर्ट लाइफस्टाइल में बदलाव, मेडिटेशन की सलाह देते है। अगर कारण मनोवैज्ञानिक हो तो उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है।