नारी डेस्क: पिछले कुछ वर्षों, विशेषकर कोरोना महामारी के बाद से, अभिभावकों की शिकायतें बढ़ी हैं कि उनके बच्चे अधिक समय मोबाइल पर बिता रहे हैं, जिसका नकारात्मक असर उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, अब दो राज्यों के विज्ञानी मिलकर इस पर शोध करने जा रहे हैं। भारतीय काउंसिल ऑफ साइंस एंड सोशल रिसर्च (आईसीएसएसआर) ने "स्कूली बच्चों में पोषण की स्थिति और मनोवैज्ञानिक संकट पर स्क्रीन टाइमिंग का प्रभाव, एक डिजिटल डिटॉक्स मॉडल" से एक प्रोजेक्ट शुरू करने का निर्णय लिया है। इस प्रोजेक्ट को पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) और हिमाचल प्रदेश की चौधरी सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय (सीएसके एचपीकेवी) पालमपुर के साथ मिलकर लागू किया जाएगा।
प्रोजेक्ट का बजट
इस महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट के लिए 17 लाख रुपये का बजट मंजूर किया गया है। प्रोजेक्ट का मुख्य उद्देश्य बच्चों में मोबाइल की लत और इसके स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन करना है। इस प्रोजेक्ट के तहत, पंजाब के माझा, मालवा, और दोआबा क्षेत्रों में स्थित सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले एक हजार विद्यार्थियों, और हिमाचल प्रदेश के विभिन्न जिलों के सरकारी और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले आठ सौ विद्यार्थियों को शामिल किया जाएगा। इन विद्यार्थियों की उम्र 13 से 15 वर्ष के बीच होगी।
सर्वेक्षण और डेटा संग्रहण
प्रोजेक्ट के तहत एक समग्र सर्वेक्षण कार्यक्रम तैयार किया गया है, जिसमें बच्चों के स्क्रीन टाइमिंग और उसकी मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया जाएगा। सर्वेक्षण के दौरान, विद्यार्थियों की मोबाइल उपयोग की आदतों, उनके शारीरिक स्वास्थ्य, और मनोवैज्ञानिक संकट का गहराई से अध्ययन किया जाएगा।
डिजिटल डिटॉक्स मॉडल का निर्माण
सर्वेक्षण के परिणामों के आधार पर, बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने या स्क्रीन टाइम को कम करने के लिए एक डिजिटल डिटॉक्स मॉडल तैयार किया जाएगा। इस मॉडल के तहत स्कूलों को संवेदनशील बनाने की योजना बनाई जाएगी, ताकि बच्चों को मोबाइल के नकारात्मक प्रभावों से बचाया जा सके और उनका स्वास्थ्य बेहतर किया जा सके।
उम्मीदें और लक्ष्य
इस शोध प्रोजेक्ट से उम्मीद की जा रही है कि यह बच्चों में मोबाइल की लत के कारणों और उसके प्रभावों को समझने में मदद करेगा। साथ ही, इससे एक प्रभावी मॉडल तैयार होगा जो स्क्रीन टाइमिंग को कंट्रोल करने में सहायक हो सकेगा। इस पहल से न केवल बच्चों के स्वास्थ्य में सुधार होगा, बल्कि उनके सामाजिक और शैक्षिक जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यह शोध प्रोजेक्ट दो राज्यों के विश्वविद्यालयों की साझेदारी का एक अच्छी उदाहरण है, जो बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए मिलकर काम कर रहे हैं।