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Roopkund Lake: मछलियां से नहीं नर कंकालों से भरी है ये झील, वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए रहस्य

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 26 Nov, 2022 11:32 AM
Roopkund Lake: मछलियां से नहीं नर कंकालों से भरी है ये झील, वैज्ञानिक भी नहीं सुलझा पाए रहस्य

झीलाें का नजारा व्यक्ति को शांति और सुकून का अहसास कराता है। यही वजह है कि लोग छुट्टियों में ऐसी जगहों पर जाना पसंद करते हैं, जहां पहाड़ियों के बीच झील हों। जरा सोचिए, आप भी किसी सुंदर झील देखने गए हैं और आपको अचानक से यहां मछलियों की जगह नर कंकाल तैरते हुए दिख जाएं, तो क्या होगा? जाहिर सी बात है कि आप वहां से डर के भाग जाएंगे। हिमालय के रूपकुंड झील की कहानी भी कुछ ऐसी है। यहां एक अरसे से इंसानाें की हड्डियां तैर रही हैं। इसलिए इसे कंकालों वाली झील भी कहा जाता है। तो आइए जानते हैं इस कंकालों वाली झील का रहस्य।

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बर्फ पिघलने पर दिखाई देते हैं कंकाल 

रूपकुंड की झील उत्तराखंड में लगभग 5,029 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक ग्लेशियर झील है। जब बर्फ पिघलती है, तो सैकड़ों मानव कंकाल पानी में या सतह के नीचे तैरते दिखाई देते हैं। झील की खोज पहली बार 1942 में एक गेम रिजर्व रेंजर ने की थी। शुरुआत में यह अनुमान लगाया गया था कि यह अवशेष जापानी सैनिकों के थे जो इस क्षेत्र में घुस गए थे। अंग्रेजों ने तुरंत एक टीम को यह पता लगाने के लिए भेजा कि ये कंकाल किसके हैं। जांच करने पर, यह पता चला कि लाशें जापानी सैनिकों की नहीं हो सकतीं, क्योंकि ये काफी पुरानी हो चुकी थीं।

कंकालों के पीछे की कहानी

इसके पीछे कई कहानियां बताई जाती हैं। एक राजा रानी की कहानी सदियों पुरानी है। इस झील के पास एक नंदा देवी का मंदिर है। माना जाता है कि राजा रानी ने मंदिर के दर्शन के लिए पहाड़ चढ़ने का फैसला किया। लेकिन वो यहां अकेले न जाकर नौकर चाकर साथ ले गए। यह सब देखकर देवी को गुस्सा आया। उनका गुस्सा बिजली बनकर उन सब पर ऐसा गिरा कि वे सभी मौत के मुंह में समा गए।

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ज्यादातर समय रहती जमी रहती है बर्फ

दिलचस्प बात है कि यह झील साल के ज्यादातर समय जमी रहती है। मौसम के हिसाब से भी इस झील का आकार कभी घटता तो कभी बढ़ता है। जब झील पर जमा बर्फ पिघलती है, तो यहां मौजूद इंसानी कंकाल आसानी से दिखाई दे जाते हैं। इन्हें देखकर एक बार तो व्यक्ति चौंक सकता है। इतना ही नहीं, यह झील इतनी भयावह है कि कई बार तो कंकाल की जगह पूरे इंसानी अंग भी होते हैं, इन्हें देखकर वास्तव में ऐसा लगता है कि उन्हें अच्छी तरह से संरक्षित किया गया हो। इस झील में अब तक 600-800 इंसानी कंकाल पाए जा चुके हैं।

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कैसे पहुंचे रूपकुंड?

मई के आखिरी सप्ताह और सितंबर-अक्टूाबर के बीच यहां जाना सबसे अच्छा है। मई की शुरूआत में बर्फ पर ट्रेकिंग कर सकते हैं। जुलाई और अगस्त में यहां जाने से बचना चाहिए, क्योंकि यहां बहुत ज्यादा बारिश होती है। 

सड़क  : यहां पहुंचने के लिए दिल्ली से देबल जाना होगा और यहां से फिर 3 दिन का ट्रेक है। दिल्ली से देबल की दूरी 477 किमी है और बाय रोड करीब 13 घंटे लगेंगे।

ट्रेन : रूपकुंड झील का निकट रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है। ऋषिकेश से रूपकुंड के बीच कई बसें और प्राइवेट कैब चलती हैं।

फ्लाइट : रूपकुंड का पास का हवाई अड्डा देहरादून का जॉली ग्रांट हवाई अड्डा है। हवाई अड्डे से, आप देवल पहुंचने के लिए बस या कार से जा सकते हैं। यहां से ट्रेक शुरू होता है।

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