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राम मंदिर बनाने के लिए नहीं इस्तेमाल हुआ लोहा और स्टील, ये है मुख्य कारण

  • Edited By palak,
  • Updated: 24 Jan, 2024 10:12 AM
राम मंदिर बनाने के लिए नहीं इस्तेमाल हुआ लोहा और स्टील, ये है मुख्य कारण

अयोध्या में राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा कार्यक्रम समाप्त हो गया है। मंदिर भक्तजनों के लिए भी खुल गया है। भव्य राम मंदिर पारंपरिक भारतीय विरासत वास्तुकला का एक बहुत ही शानदार उदाहरण है। मंदिर को बनाने के लिए कुछ ऐसी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल  किया गया है कि यह मंदिर सदियों तक खराब नहीं होगा। वहीं सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात यह है कि राम मंदिर को बनाने के लिए लोहा और स्टील बिल्कुल भी इस्तेमाल नहीं हुई है। श्री राम जन्मभूमि मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने बताया कि मंदिर एक हजार साल से ज्यादा समय तक चलने के हिसाब से बनाया गया है। उन्होंने बताया कि वैज्ञानिकों ने मंदिर का स्ट्रक्चर इस हिसाब से तैयार किया है जैसे पहले कभी भी नहीं किया गया। 

नागर शैली के अनुसार बनाया गया है मंदिर 

चंद्रकांत सोमपुरा ने राम मंदिर के आर्किटेक्चर डिजाइन को नागर शैली के अनुसार बनाया है। आपको बता दें कि 15 पीढ़ियों से उनका परिवार 100 से ज्यादा मंदिरों को डिजाइन कर चुका है। मंदिर का डिजाइन नागर शैली के मुताबिक बनाया गया है। सोमपुरा ने बताया कि वास्तुकला के इतिहास में राम मंदिर जैसा आर्किटेक्चर न सिर्फ भारत में बल्कि इस दुनिया की किसी भी जगह पर शायद ही कभी देखा गया होगा। वहीं मंदिर के समिति अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्रा ने कहा कि - तीन मंजिल के मंदिर का कुल क्षेत्रफल 2.7 एकड़ है और इसे 57,000 वर्ग फीट में बनाया गया है। इसे बनाने के लिए लोहे या स्टील का इस्तेमाल भी नहीं हुआ है क्योंकि लोहे की उम्र सिर्फ 80-90 साल होती है। मंदिर की ऊंचाई 161 फीट यानी की कुतुब मीनार की ऊंचाई के लगभग 70% होगी। 

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ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगरमरमर पत्थर हुआ है इस्तेमाल 

आपको बता दें कि राम मंदिर को बनाने के लिए सबसे अच्छी क्वालिटी वाले ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और संगरमरमर का इस्तेमाल किया गया है। इसको जोड़ने के लिए सीमेंट या चूने का इस्तेमाल नहीं हुआ है। पूरा स्ट्रक्चर बनाने के लिए पेड़ों का इस्तेमाल एक ताला और चाबी तंत्र का प्रयोग किया गया है। सीबीआरआई ने कहा कि 3 मंजिल मंदिर को 2500 साल में भूकंप से सुरक्षित रखने के अनुसार ही डिजाइन किया गया है। 

दक्षिण भारत से निकाले गए ग्रेनाइट पत्थर हुए हैं इस्तेमाल

नृपेंद्र मिश्रा ने कहा कि सरयू नदी होने के कारण से मंदिर के नीचे की जमीन रेतिली और अस्थिर थी ऐसी जगह पर मंदिर तैयार करना बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन वैज्ञानिकों ने इसका बहुत अच्छा समाधान ढूंढा। सबसे पहले पूरे मंदिर क्षेत्र की मिट्टी 15 मीटर की गहराई तक खोदी गई। क्षेत्र में 12-14 मीटर क गहराई तक इंजीनियर्ड मिट्टी बिछाई गई कोई स्टील या री-बार का इस्तेमाल नहीं हुआ। इसे ठोस चट्टान जैसा बनाने के लिए 47 परत वाले बेस्ड को कॉम्पेक्ट किया गया। फिर ऊपर 1.5 मीटर मोटी एम-35 ग्रेड मेटल फ्री कंक्रीट राफ्ट बिछाया गया है। नींव को मजबूत बनाने के लिए दक्षिण भारत से निकाले गए 6.3 मीटर मोटे ठोस ग्रेनाइट पत्थर बिछाए गए हैं। 

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ग्राउंड फ्लोर पर कुल 160 स्तंभ

वहीं राम मंदिर का ऊपर से दिखने वाला हिस्सा राजस्थान से मंगवाए गए गुलाबी बलुआ पत्थर से बना है। सीबीआरआई की मानें तो ग्राउंड फ्लोर पर कुल 160 स्तंभ हैं। पहली मंजिल पर 132 और दूसरी मंजिल 74 खंभे हैं। ये सभी बलुआ पत्थर से बने हुए हैं और बाहर की तरफ नक्काशी की गई है। मंदिर का गर्भगृह राजस्थान के सफेद मकराना संगरमरमर से बना है।

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