भारत की सामाजिक कार्यकर्ता उषा चौमार (जन्म 1978) अलवर राजस्थान की रहने वाली हैं। वह सुलभ इंटरनेशनल की गैर-लाभकारी शाखा, सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की अध्यक्ष हैं। साल-2020 में सामाजिक कार्य के क्षेत्र में अहम योगदान देने के लिए उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। कभी मैला ढोने वाली उषा चौमर पद्म श्री विजेता बन हर किसी राष्ट्रपति के हाथो सम्मानित होने वाली उषा चौमर कभी मैला ढोने का काम करती थीं लेकिन आज वो हर किसी के लिए मिसाल हैं। चलिए आपको बताते हैं उनकी लाइफस्टोरी
अछूत मान लोगों ने किया अलग
ऊषा बताती हैं कि 10 साल की छोटी उम्र में ही उनकी शादी कर दी गई। चूंकि उनके ससुराल वाले यही काम करते थे इसलिए उन्हें भी यही करना पड़ा। काम से लौटने के बाद उनकी भूख भी मर जाती थी। लोग उन्हें मंदिर में भी घुसने नहीं देते थे, ना ही दुकान से सामान खरीदने देते थे क्योंकि उन्हें दलित होने के कारण उन्हें अछूत माना जाता था। लोग हमे कचरे की तरह समझने लगे थे। मगर, सुलभ इंटरनेशनल के एनजीओ ने उनकी जिंदगी बदल दी।
एनजीओ से मिली नई दिशा
उषा चौमर ने कहा, "मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव आया है। पहले, मैं एक मैनुअल स्कैवेंजर (मैला ढोना) के रूप में काम करता था। यह डॉ बिंदेश्वर पाठक, संस्थापक थे सुलभ इंटरनेशनल, जिन्होंने उस काम से बाहर आने में मेरी मदद की।" बता दें कि उषा चौमर, जो अब सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन की अध्यक्ष के रूप में काम करती हैं, को सामाजिक कार्यों में उनकी उत्कृष्ट सेवा के लिए सम्मानित किया गया है।
कई महिलाओं का बनी हौंसला
उषा ने कहा, "मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं कभी भी हाथ से मैला ढोने का काम छोड़ पाऊंगा लेकिन डॉ पाठक ने मेरे लिए ऐसा किया। मैंने 2003 में हाथ से मैला ढोने का काम छोड़ दिया। मैं प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से चार बार मिला और मैंने उन्हें राखी भी बांधी है। वह वही हैं जिन्होंने स्वच्छता के मुद्दे पर बार-बार जागरूकता बढ़ाई है।" अब ऊषा भी हाथ से मैला ढोने के खिलाफ जागरूकता फैलाती हैं और कई महिलाओं की मदद भी करती हैं।
उषा ने कहा, "मेरे परिवार के सदस्य पुरस्कार से बहुत खुश हैं और वे कहते हैं कि मैंने पूरे अलवर को गौरवान्वित किया है।" महिलाओं को संदेश देते हुए उषा चौमर ने कहा, "किसी को भी हाथ से मैला ढोने का काम नहीं करना चाहिए, क्योंकि इससे अस्पृश्यता होती है और जो लोग इस काम को करते हैं उन्हें समाज द्वारा नीचा देखा जाता है।"
समाज से कुप्रथा खत्म करने की है इच्छा
यही नहीं, ऊषा आप मैला ढोने वाली कुप्रथा के खिलाफ भी आवाज उठाती हैं। वह अमेरिका, साउथ अफ्रीका और देशों में जा चुकी है और उन्होंने अंग्रेजी भी सीखी। आज वह बिना किसी डरे लोगों के सामने बेबाक बोल सकती है। उनका सपना समाज से इस कुप्रथा को खत्म करना है। बता दें कि उनके पति अब मजदूरी करते हैं। उनके तीन बच्चे दो बेटे और एक बेटी है, जिसमें से एक बेटी ग्रेजुएशन और बेटा पिता के साथ ही मजदूरी करता है।