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250 साल पूराने इस मंदिर में स्वंय करती हैं मां तारा वास, भक्तों को मिलता है धुने की राख का प्रसाद

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 21 Nov, 2023 03:50 PM
250 साल पूराने इस मंदिर में स्वंय करती हैं मां तारा वास, भक्तों को मिलता है धुने की राख का प्रसाद

देवों की भूमि हिमाचल प्रदेश न सिर्फ अपने खूबसूरत पहाड़ों और वादियों के लिए जानी जाती हैं, बल्कि यहां पर पावन धार्मिक स्थालों की भी भरमर है। इसी में से एक है हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमाल में मौजूद तारा देवी मंदिर। शिमाल के शोघी इलाके की ऊंची पहाड़ी पर मां तारा विराजमान हैं। यहां मां तारा के दर्शन करने लोग दूर- दूर से आते हैं। मान्यता है कि जो भक्त मां तारा के दरबार में पहुंचते है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। अपनी दिव्य सुंदरता और आध्यात्मिक शांति के लिए प्रसिद्ध ये मंदिर हिमाचल के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। तारा देवी मंदिर शिमला ने लगभग 18 किलोमीटर दूरी पर है। शोघी की पहाड़ी पर बना ये मंदिर समुद्र तल से 1 हजार 851 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। श्रद्धालुओं के लिए ये मंदिर तक पहुंचने के लिए बेहतरीन सड़क सुविधा है, लेकिन कुछ लोग यहां वादियों की सुंदरता लेने के लिए मंदिर ट्रैकिंग कर के भी पहुंचते हैं। 

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250 साल पुराना है मंदिर का इतिहास

तारा देवी मंदिर का इतिहास लगभग 250 साल पुराना है। कहा जाता है कि एक बार बंगाल के सेन राजवंश के राजा शिमला आए थे। यहां पर वो घने जंगल में शिकार करते थक कर सो गए। सपने में राजा ने मां तारा के साथ उनके साथ द्वारपाल श्री भैरव और भगवान हनुमान को आम और आर्थिक रूप से अक्षम आबादी के सामने उनका अनावरण करने का अनुरोध करते देखा। सपने से प्रेरित होकर राजा भूपेंद्र सेन ने 50 बीघा जमीन दान कर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया। इस मंदुर में मां की मूर्ति लकड़ी से तैयार की गई।

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कौन हैं मां तारा

मान्यता है कि माता तारा, दुर्गा मां की नौवीं बहन है। तारा एकजुट और नील सरस्वती माता तारा के तीन स्वरूप हैं। बृहन्नील ग्रंथ में माता तारा के तीन स्वरूपों के बारे में बताया गया है। सबको तारने वाली मां तारा की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों ही धर्मों में की जाती है। नवरात्रों में माता के दरबार में श्रद्धालु बड़ी संख्या में आते हैं। नवरात्र में माता की दिव्य मूर्ति के दर्शन पाने के लिए यहां लोग दूर- दूर से आते हैं।

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भक्तों को दिया जाता है धुने की राख का प्रसाद

मंदिर के एक छोटे से कमरे में लकड़ी का लट्ठा लगातार जलता रहता है, जिसे बाबा की धूना भी कहा जाता है। मान्यता है कि बाबा आज भी यहां ध्यान लगाकर बैठे हैं। मंदिर में धुने की राख को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।


 

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