चैत्र नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। मां कालरात्रि देवी दुर्गा के सातवें स्वरुप में जानी जाती है। विधि-विधान के साथ मां की पूजा करने से काल का नाश होता है। देवी दुर्गा का यह स्वरुप वीरता और साहस का प्रतीक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त मां की पूजा करते हैं वह भयमुक्त रहते हैं उन्हें अग्नि, जल, शत्रु किसी भी चीज का डर नहीं होता। तो चलिए आपको बताते हैं कि आप मां की पूजा कैसे कर सकते हैं ....
कैसे करें पूजा?
सुबह स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें। इसके बाद मां कालरात्री को चावल, धूप, गंध, रातरानी के फूल, गुड़, नैवेद्य अर्पित करें। मां को माला के रुप में नींबुओं की माला अर्पित करें फिर मां के आगे घी का दीपक जलाएं। गुड़ का भोग मां को अर्पित करें। इसके बाद मां के मंत्रों और दुर्गा सप्तशती का पाठ करें।
पार्वती जी ने दुर्गा अवतार लिया था कालरात्रि का रुप
पौराणिक कथा के अनुसार, शुंभ निशुंभ और रक्तबीज नाम के राक्षसों ने तीनों लोकों में आतंक मचाना शुरु कर दिया था। उनके आतंक से देवतागण परेशान होकर भगवान शिव के पास पहुंचे। इसके बाद भगवान शंकर ने देवी पार्वती से राक्षसों का वध करके देवतागओं की रक्षा करने के लिए कहा। फिर मां पार्वती ने देवी दुर्गा का रुप धारण करके राक्षस शुभ-निशुंभ का वध किया। परंतु जैसे ही मां ने रक्तबीज का वध किया तो उसके शरीर से निकली लाल खून की बूंदों से लाखों रक्तबीज उत्पन्न हुए। तब मां दुर्गा ने कालरात्रि के रुप में अवतार लिया। मां कालरात्रि ने अपने इस अवतार के साथ रक्तबीज का संहार किया और उसके शरीर में से निकले रक्त को अपने मुंह में भर लिया।
ऐसा है मां का स्वरुप
मां कालरात्रि देखने में बहुत ही भयंकर हैं परंतु उनका हृदय बहुत ही कोमल हैं। मां की नाक से आग की भयंकर लपटें निकलती हैं। मां की सवारी गधा है। मां का दायां हाथ हमेशा ऊपर की ओर उठा होता है जिसका अर्थ है कि वह सबको आशीर्वाद दे रही हैं। वहीं मां कालरात्रि के निचले दाहिने हाथ की मुद्रा भक्तों के भय को दूर करती है। मां के बाएं हाथ में लोहे का कांटेदार अस्त्र है निचले बाएं हाथ में कटार है।
गुड़ करें मां को अर्पित
मां को गुड़ का भोग लगाना शुभ माना जाता है। मां कालरात्रि को गुड़ बहुत ही पसंद है। भोग लगाने के बाद गुड़ का सेवन प्रसाद के रुप में करें।