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पिता की बीमारी से ध्यान हटाने के लिए शुरु की पेंटिंग, 63 की उम्र में बनी आर्टिस्ट

  • Edited By khushboo aggarwal,
  • Updated: 03 Jan, 2020 12:24 PM
पिता की बीमारी से ध्यान हटाने के लिए शुरु की पेंटिंग, 63 की उम्र में बनी आर्टिस्ट

दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा दिखानी की कोई उम्र नहीं होती बस आपके अंदर एक जज्बा और कला होनी चाहिए। ऐसी ही है नलिनी मिश्रा तैयबजी। जिन्होंने कला जगत में अपना पहला कदम 63 साल की उम्र में 2014 में एक प्रदर्शनी के माध्यम से रखा था जिसमें उन्होंने उल्लू को समर्पित अपने चित्र प्रदर्शित किए थे। वह महसूस करती हैं कि उल्लू के पास सर्वाधिक अर्थपूर्ण चेहरों में से एक हैं। अभी भी उनके कार्यों में इस पक्षी की हिस्सेदारी हैं, वहीं इन 5 सालों में उनकी प्रदर्शनियों में अन्य चीजों की भागीदारी भी बढ़ी हैं। गत दिनों उनकी एक सोलो प्रदर्शनी में 208 पेंटिंग्स प्रदर्शित की गईं। फॉर्म डॉट लैस शीर्षक वाली यह तैयबजी की 10 वीं सोलो प्रदर्शनी थी जिसमें पहली बार भाववाचक चित्रों का प्रदर्शन किया गया। इनके अलावा विभिन्न देवी- देवता, सूर्य चंद्रमा, पक्षी, पशु और पेड़ वाले चित्र भी थें। 

 

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नलिनी कहती हैं कि वास्तविक कला कुछ ऐसा बनाने में निहित है जिसका अस्तित्व न हो। अन्य चित्रों में उन्होंने मोनो प्रिंटिंग जेलीप्लेट विधि से 16 एबस्ट्रैक्ट्स की रचना की। इसमें आमतौर पर एक्रैलिक रंगों का इस्तेमाल कई परतों में होता है जिन्हें बाद में ब्रश और उंगली या अन्य माध्यम से तराशा जाता  है। कागज को प्लेट पर रख कर नीचे दबाया जाता है जिससे रंग और डिजाइन उस पर उभर आते है। 

धार्मिक और लोक कलाओं से प्रभावित 

कला की उनकी सबसे पहली यादें उनके पिता के घर की दीवार थीं, जब वह एक छोटी बच्ची थीं। वह सभी तरह की धार्मिक तथा लोक कलाओं से प्रभावित हुई हैं, चाहे वह वार्ली हो या मधुबनी। परंपरागत तौर पर वह न तो धार्मिक हैं और न ही रस्मों-रिवाज में विश्वास रखने वाली। वह अपनी भावना को व्यक्त करने का प्रयास करती हैं और यह उन्हें अपने आस-पास हर चीज और हर व्यक्ति से जुड़ने का गहरा अहसास करवाता है। 

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इस तरह शुरु हुआ चित्रकारी का सफर 

कला में उनकी हमेशा से रूचि थी लेकिन कला जगह में तैयबजी का आना पूरी तरह से संयोगवश था। उन्होंने बताया कि जब उनके पिता कैंसर से लड़ रहे थे, तब उन्होंने अपना ध्यान उस स्थिति से हटाने के लिए पेंटिंग्स बनानी शुरु कीं। अपने पिता को दिखाने के लिए रोज वह एक पेंटिंग बनाती थी। कुछ ही समय में उन्होंने बहुत सारी पेंटिंग्स बना डालीं तो उनके एक मित्र ने उन्हें एक शो के लिए प्रेरित किया। देखने में उनका कार्य भले ही धर्म से प्रभावित हुआ लगता हो, मगर तैयबजी का काम कहीं अधिक व्यापक है। वह कहती है उनके अनुसार कोई न कोई ताकत, कोई नियम ऐसा है जो हर रोज सूर्य को चकमने और अस्त होने देता है। उनके अनुसार परमात्मा एक शब्द है जिसके बारे में लोग पूरी ताकत के तौर पर अनुमान लगाते है और उस ताकत की कोई आकृति होना आवश्यक नहीं है।

 

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उल्लु के बाद भगवान कृष्ण से हुई प्रेरित

उल्लुओं के बाद वह भगवान कृष्ण से प्रेरित हुई मगर उनके लिए कृष्ण भी एक विचार हैं। सालों के दौरान उनके विचारों और कार्य में एक स्वाभाविक विकास हुआ है। हालिया प्रदर्शनियों में उन्होंने दशावतार और भगवान विष्णु की पेंटिंग्स शामिल की। वह कहती हैं कि अब उन्होंने दशावतार पर कार्य शुरु किया, वह बहुत सी चीजों के बारे में स्पष्ट नहीं थी। 

 

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