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सलाम तो बनता है! नेत्रहीन ज्योत्सना ने रचा इतिहास, बनीं सबसे कम उम्र में PhD करने वाली महिला

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 15 Feb, 2021 03:00 PM
सलाम तो बनता है! नेत्रहीन ज्योत्सना ने रचा इतिहास, बनीं सबसे कम उम्र में PhD करने वाली महिला

जिंदगी में कईं बार भगवान हमारी कदम-कदम पर परीक्षा लेता है लेकिन इसका अर्थ यह तो नहीं है कि हम हार मान जाए और जिंदगी में कभी आगे ही न बड़े। हां इस बात में भी कोई शक नहीं है कि भगवान सभी को सारी चीजें नहीं देता है। हमारे आस-पास बहुत से ऐसे लोग हैं जो शारीरिक रूप से कमजोर होते हैं और ऐसी हालत में वो हार मान जाते हैं। लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ही लड़की की कहानी बताएंगे जिसने यह साबित कर दिया कि आप किसी से कमजोर नहीं हैं। 

दृष्टिहीन ज्योत्सना फनीजा आज सभी के लिए है मिसाल 

जिंदगी में दृष्टिहीन होना शायद आपकी सफलता में रूकावट बन सकता है लेकिन ऐसी स्थिती में भी हैदारबाद की ज्योत्सना फनीजा रूकी नहीं। यही कारण है कि आज  25 साल की उम्र में ज्योत्सना ने वो मुक्काम हासिल कर लिया जिसके लिए लोगों को काफी समय लग जाता है। दरअसल ज्योत्सना सबसे कम उम्र में पीएचडी पूरी करने वाली महिला बनी है और ऐसा करके उन्होंने अपने नाम रिकॉर्ड बना लिया है। 

अंग्रेजी साहित्य में की पीएचडी

मीडिया रिपोर्टस की मानें तो हैदराबाद की ज्योत्सना ने भारतीय विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की है और ऐसा करने वाली वह सबसे कम उम्र की महिला बन गई है। खबरों की मानें तो ज्योत्सना बचपन से ही नेत्रहीन है लेकिन इसके बावजूद हार मानने की जगह ज्योत्सना इस स्थिती में भी डटी रही। ज्योत्सना ने अंग्रेजी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय (EFLU), हैदराबाद से डॉक्टरेट की पढ़ाई पूरी की है।

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कॉलेज ने एडमिशन देने से इंकार किया 

कहते हैं न कि जबतक आपको गहरे घाव नहीं मिलते हैं तब तक आपको सफलता नहीं मिलती है। ज्योत्सना के लिए भी यह सब आसान नहीं था। वह शुरू से ही पढ़ाई में अच्छी थी लेकिन इस मुक्काम को हासिल करना उनके लिए किसी मुश्किल से कम नहीं था। दरअसल ज्योत्सना इतिहास, अर्थशास्त्र और नागरिक शास्त्र पढ़ना चाहती थी लेकिन कॉलेज वालों ने उन्हें एडमिशन ही देने से इंकार कर दिया जिसके बाद ज्योत्सना को काफी सदमा पहुंचा लेकिन इसे उन्होंने दिल पर नहीं लगाया और इसे चुनौती समझा। 

धीरे-धीरे बड़ी आगे 

हार न मानने वाली ज्योत्सना ने साल 2011 में राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा पास की। इतना ही नहीं पुस्तकों और पत्रिकाओं में दस शोध लेख भी प्रकाशित किए लेकिन इसके बावजूद उन्हें लोगों का अपमान भी सहना पड़ा लेकिन वो रूकी नहीं और आज वह वो महिला बन गई हैं जिसने 25 साल की उम्र में ही अपने नाम एक रिकॉर्ड बना लिया है।  फिलहाल ज्योत्सना ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्रों को इंग्लिश पढ़ाती हैं।

सच में आज ज्योत्सना उन सभी के लिए एक मिसाल है जो खुद को दूसरों से कम समझते हैं। 

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