पुरुष हो या नारी, आज के इस तेज रफ्तार जमाने में हर कोई अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है। महिलाएं, शादी से पहले ही आत्मनिर्भरता के सपने देखने लगती हैं और ऐसे ही ख्वाब देखती थी शिल्पा। वह एक गृहिणी ही नहीं बल्कि एक आत्मनिर्भर गृहिणी बनने की इच्छा रखती थी। सिर्फ शिल्पा ही नहीं हजारों ऐसी महिलाएं हैं जो आत्मनिर्भर बनने का सपना देखती है और मायके ही नहीं ससुराल के प्रोत्साहन के पंख पाकर हिम्मत की उड़ान भरना चाहती हैं लेकिन हर किसी के यह सपने हकीकत नहीं हो पाते क्योंकि बिना इनकी स्पोर्ट के सफलता की सीढ़ी चढ़ पाना काफी चुनौतियों पूर्ण हो जाता है।
घर परिवार की जिम्मेदारी में सास की भागीदारी
बहुत सारी महिलाएं पढ़ी-लिखी होने के बावजूद हाउसवाइफ बनकर रह जाती हैं जिसका मलाल उन्हें सारी उम्र रहता है क्योंकि उनकी गैर हाजिरी में घर व बच्चों को संभालने वाला नहीं मिलता हालांकि कुछ औरतें घर परिवार व नौकरी दोनों संभाल कर चुनौतियों भरा व्यस्त जीवन जी भी रही हैं लेकिन अगर ऐसे में सास का छोटा-छोटा स्पोर्ट मिल जाए तो उन्हें भी व्यवस्तता भरे जीवन से थोड़ी राहत मिले और दो पल खुद के लिए बिताने का मौका। जैसे बच्चों के लालन-पालन व घर के कामकाज में हाथ बंटा दें तो काम काफी आसान हो जाए। इस काम जल्दी भी होगा और सास बहू के बीच अच्छा तालमेल भी बनेगा।
पति का सहयोग बहुत जरूरी
हर वर्किंग वुमन की कहानी लगभग शिल्पा की तरह ही होती है कि अगर वह काम करना चाहती है तो उसकी इस इच्छा का पति सम्मान करें और अपना सहयोग दें। इसमें कोई बुराई भी नहीं अगर वह पढ़-लिख कर आगे बढ़ना चाहती हैं और कुछ करना चाहती।
पति का सहयोग पत्नी की हिम्मत बनता है। वहीं बात घर संभालने की तो यह जिम्मेदारी भी सिर्फ पत्नी की नहीं है। पति भी इस जिम्मेदारी को पत्नी के तालमेल से अच्छे से निभा सकते हैं। बच्चों को संभालने से लेकर किचन में हाथ बंटाने तक, पति का स्पोर्ट अगर पत्नी को मिल जाए तो काम आसान भी हो जाता है और रिश्तों की डोर और मजबूत भी।
ननद भी करें पूरा स्पोर्ट
लड़कियां अगर इस बात को समझ जाए कि महिला ही महिला की ताकत है तो कोई उन्हें उंचाइयां हासिल करने से रोक नहीं सकता। ननद-भाभी की तरह नहीं बहनों और सहेलियों की तरह स्थिति को समझकर एक दूसरे को राय और अपना सहयोग दें। भाभी हो या ननद अपने पैरों पर खड़ा होकर कुछ करना चाहती हैं तो उसे प्रोत्साहन दें। ऐसा कर आप सिर्फ अपनी नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी को भी एक प्रेरणा और सीख मिलती है।
माता-पिता की आत्मनिर्भरता की सीख
बेटा बेटी में कोई अंतर नहीं इस बात की सीख माता-पिता को बचपन से ही देनी होगी ताकि आत्मनिर्भरता और निडरता के गुण बचपन से ही हो। बच्चियों को शिक्षित करना अति आवश्यक है क्योंकि जब एक बेटी शिक्षित होती हैं तो वह अपने से साथ जुड़े कई परिवारों को शिक्षित करती हैं इसलिए महिला सशक्तिकरण होना अति अनिवार्य है।
पुरुष के काम को महिला से ज्यादा त्वज्जो
बड़ी समस्या पुरुष को महिला से ज्यादा त्वज्जो देना। हमारे समाज में यह समस्या आज भी हैं कि परिवार में पुरुष की नौकरी को महिला की नौकरी से ज्यादा त्वज्जो दी जाती है फिर भले ही महिला पुरुष से ज्यादा वेतन पर हो या अच्छे पद पर नियुक्त।
इगो को धक्का लगना
बहुत सारे पुरुष महिला से नौकरी करवाना अपनी इगो को ठेस पुहंचाना समझते हैं क्योंकि पत्नी अगर पति से ज्यादा कमाए तो इससे पुरुष के लिए शर्म की बात समझा जाता है हालांकि बदलते समय के साथ लोगों की इस सोच में बदलाव आना शुरू हुआ है लेकिन कुछ महिलाएं आज भी इस सोच की शिकार हैं।
मां बनने के बाद 73 प्रतिशत महिलाएं छोड़ देती हैं नौकरी
बच्चे की जिम्मेदारी और काम को एक साथ मैनेज करना काफी कठिन काम है और भारत जैसे पुरुष प्रधान देश में तो और भी अधिक चुनौतियों पूर्ण। साल 2018 के एक सर्वे के मुताबिक, 73 प्रतिशत औरतें मां बनने के बाद नौकरी छोड़ देती हैं और भारत में इसका आंकड़ा 50 प्रतिशत का है। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, 50 प्रतिशत कामकाजी महिलाएं महज 30 वर्ष की उम्र में अपने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ देती हैं।
अशोका यूनिवर्सटी के जेनपैक्ट सेंटर फॉर वूमेंस लीडरशिप (GCWL) ने 'प्रिडिकामेंट ऑफ रिटर्निंग मदर्स'नाम से एक रिपोर्ट जारी की थी जिसके मुताबिक, महज 27 प्रतिशत महिलाएं मां बनने के बाद करियर बना पाती है।
नौकरी छोड़ने के पीछे कई कारण
भारतीय वर्क कल्चर में भी पुरुषों को ज्यादा अहमियत दी जाती हैं। घर हो या कामकाज, महिला को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ती हैं जैसे प्रेग्नेंसी, बच्चों का जन्म, बच्चों की देखभाल, वृद्धों की देखभाल, पारिवारिक समर्थन की कमी और ऑफिस का माहौल जैसी कई बातें हैं जो महिला को नौकरी छोड़कर घर बैठ जाने को विवश करती है।
-वंदना डालिया