भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को पितृ पक्ष कहा जाता है। हर साल इसी महीने में पितृ पक्ष मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार, व्यक्ति को किसी भी देवता की पूजा करने से पहले अपने पूर्वजों की पूजा करनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इससे सारे देवता प्रसन्न होते हैं। इसलिए भारतीय समाज में बड़े बुजुर्गों को बहुत ही सम्मान दिया जाता है और मरने के बाद उनकी पूरे विधि-विधान के साथ पूजा भी करवाई जाती है। जिन पितरों की मृत्यु पूर्णिमा की दिन होती है उनका श्राद्ध भी पूर्णिमा तिथि के दिन ही किया जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि श्राद्ध क्यों मनाए जाते हैं और यह कब से शुरु हो रहे हैं...
10 सितंबर को शुरु हो रहे हैं पितृ पक्ष के श्राद्ध
शास्त्रों के अनुसार, इस साल श्राद्ध 10 सितंबर से शुरु हो रहे हैं। पहला श्राद्ध 10 सितंबर यानी की शनिवार को मनाया जाएगा। विधि-पूर्वक पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है और पितृ अपने सारे वंश को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद भी देते हैं। मान्यताओं के अनुसार, पितृ धरती पर एक कौवे के रुप में धरती पर विराजमान होते हैं।
क्या है पितृपक्ष के श्राद्ध का महत्व?
पूर्वजों की तीन पीढ़ियों की आत्माएं पितृलोक में ही निवास करती हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पितृ पक्ष का यह क्षेत्र मृत्यु के देव यम के द्वारा शासित है। यही मरते हुए व्यक्ति की आत्मा को पृथ्वी से पितृलोक तक लेकर जाते हैं। जब अगली पीढ़ी का कोई व्यक्ति मर जाता है तो पहली पीढ़ी स्वर्ग में जाती है और जाकर फिर भगवान के साथ मिल जाती है। इसलिए इस दौरान श्राद्ध का प्रसाद नहीं दिया जाता। इसी तरह पितृलोक में सिर्फ तीन पीढ़ियों का ही श्राद्ध संस्कार दिया जाता है। इन श्राद्धों में यम की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। हिंदू ग्रंथों के अनुसार, पितृ पक्ष की शुरुआत में ही सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं।
पितृ पक्ष के श्राद्ध से जुड़ी हुई पौराणिक कथाएं
प्राचीन मान्यताओं के मुताबिक, जब महाभारत के युद्ध में महान दानवीर कर्ण की मृत्यु हुई थी तो उनकी आत्मा स्वर्ग में चली गई थी। स्वर्ग में उन्हें भोजन के रुप में सोना और रत्न चढ़ाए गए थे। कर्ण को इस सोने और रत्न परोसने का कारण समझ में नहीं आया क्योंकि उसे आहार की तलास थी। इसी कारण कर्ण ने स्वर्ग के स्वामी इंद्र से भोजन के रुप में सोने परोसने का कारण पूछा। इंद्र ने कर्ण से कहा कि उसने जीवन भर सोना दान दिया था, परंतु कभी भी श्राद्ध के रुप में अपने पूर्वजों को कभी भी भोजन नहीं दिया, कभी भी उनकी याद में कुछ दान नहीं किया। जिसके बाद गलती को सुधारने के लिए कर्ण को सिर्फ 15 दिनों के लिए पृथ्वी पर लौटने की अनुमति दी गई, ताकि वह श्राद्ध कर सके और उनकी याद में भोजन और पानी का दान कर सके। तभी से इसी काल को पितृ पक्ष के नाम से जाना जाता है।
श्राद्ध की महत्वपूर्ण तिथियां
पहला श्राद्ध - शनिवार, 10 सितंबर
दूसरा श्राद्ध - रविवार, 11 सितंबर
तीसरा श्राद्ध - सोमवार, 12 सितंबर
चौथा श्राद्ध - मंगलवार, 13 सितंबर
पांचवा श्राद्ध - बुधवार, 14 सितंबर
छठा श्राद्ध - वीरवार, 15 सितंबर
सातवां श्राद्ध - शुक्रवार, 16 सितंबर
आठवां श्राद्ध - शनिवार, 17 सितंबर
नौवां श्राद्ध - रविवार, 18 सितंबर
दसवां श्राद्ध - सोमवार, 19 सितंबर
ग्याहरवां श्राद्ध - रविवार, 20 सितंबर
बारहवां श्राद्ध - सोमवार, 21 सितंबर
तैरहवां श्राद्ध - मंगलवार, 22 सितंबर
चौदवां श्राद्ध - बुधवार, 23 सितंबर
पंद्रहवां श्राद्ध - वीरवार, 24 सितंबर
अमावस्या श्राद्ध - शुक्रवार, 25 सितंबर