नारी डेस्क: इस साल भारत में सामान्य से अधिक ठंड पड़ने की संभावना है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) ने अनुमान लगाया है कि ला नीना के कारण इस बार सर्दियों में कड़ाके की ठंड होगी। हालांकि, दिल्ली में अक्टूबर और नवंबर के महीनों में असामान्य गर्मी देखने को मिली है, जिससे अनुमान की सटीकता को लेकर सवाल उठ रहे हैं। आइए जानते हैं कि इस साल के ठंड के पूर्वानुमान और मौसमी घटनाओं के बारे में विस्तार से।
ला नीना का क्या है असर?
ला नीना एक मौसमी घटना है जो प्रशांत महासागर के मध्य और पूर्वी हिस्सों में समुद्र सतह का तापमान घटने से उत्पन्न होती है। इसके कारण समुद्र से ठंडी हवाएं उठती हैं और ट्रोपिकल वायुमंडल बनता है। ला नीना के असर से भारत में ठंडी हवाएं चलती हैं, जिससे सर्दी बढ़ती है। इसका असर आमतौर पर बारिश, तापमान और हवाओं के पैटर्न में परिवर्तन के रूप में देखा जाता है।
इस बार कड़ाके की ठंड का पूर्वानुमान
इस साल WMO ने भविष्यवाणी की है कि भारत में सामान्य से अधिक ठंड पड़ेगी। भारत के मैदानी क्षेत्रों में ठंडक अधिक महसूस होगी, खासकर दिल्ली और उत्तर भारत में। इसके साथ ही, पहाड़ी क्षेत्रों में भी अच्छी बर्फबारी की संभावना है, जो ठंड को और बढ़ा सकती है। इस बार समुद्र तटीय इलाकों में बारिश भी हो सकती है, जिससे ठंड का असर अन्य हिस्सों में भी महसूस किया जाएगा।
क्या कहते हैं पिछले रिकॉर्ड?
ला नीना घटना भारत में पहले भी हो चुकी है। 1950-51, 1974-75, और 1988-89 में ला नीना के दौरान भारत में कड़ाके की ठंड पड़ी थी। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले कई दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण इन घटनाओं का प्रभाव बढ़ गया है। जब भी ला नीना एक्टिव होता है, भारत में ठंड और बारिश का असर बढ़ जाता है।
इस बार क्यों है देरी से ठंड?
हालांकि, इस बार सर्दी के असर में कुछ देरी हो रही है। अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में गर्मी का रिकॉर्ड टूटा है। NOAA, ABM, और भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने पहले अनुमान लगाया था कि अक्टूबर के बाद ठंड बढ़ेगी, लेकिन अब नए अनुमानों के अनुसार नवंबर के अंत या दिसंबर की शुरुआत में ही ठंड का प्रभाव अधिक होगा।
मौसम में बदलाव और भविष्यवाणी पर सवाल
विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की घटनाओं में बदलाव हो रहे हैं। WMO महासचिव के अनुसार, ला नीना और अल नीनो जैसे पैटर्न्स, जलवायु परिवर्तन का परिणाम हैं, जो दुनिया भर में तापमान में बढ़ोतरी कर रहे हैं। हालांकि, इन बदलावों से मौसमी भविष्यवाणियों की सटीकता में भी बदलाव आ सकता है।