नियति को देवता मानकर न जाने कितने लोग मेहनत करना छोड़ देते है। वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जिन्हें किस्मत को हराना आता है। अपने मनोबल और प्रतिभा के दम पर सबकुछ हासिल करने वाली देविका मलिक आज किसी पहचान की मोहताज नहीं है। दिव्यांग होने के बाद भी उन्होंने कभी अपनी राह में आ रहे बाधाओं से हार नहीं मानी। वो औरत का ऐसा स्वरूप है जिसके जीवन का हर पड़ाव एक नया सीख है। आज हम आपको देविका के संघर्ष की कहानी बताएंगे।
पांच सालों के सफर में जीते कई इनाम
28 वर्षीय देविका मलिक का सफर साल 2011 से शुरु हुआ। यह सफर 2016 तक पहुंचते-पहुंचते उनके नाम कई खिताब दे गया। इस दौरान उन्होंने पारा-एथलेटिक्स में आठ राष्ट्रीय और तीन अंतरराष्ट्रीय पदक जीते। वहीं ‘व्हीलिंग हैप्पीनेस’ संस्था की सह-संस्थापक भी है। उनका जीवन में एक ही मकसद है और वो है कि दिव्यांगों की आवाज बनना। वो उनकी बेहतरी के लिए हमेशा आगे आई है। बतादें कि वो भारत को कई जगह रिप्रेजेंट कर चुकी है। वो कहती है कि-‘लोगों की जिंदगी को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने का अहसास बहुत संतुष्टि देता है। अपने काम की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी खुशी देती है।’
एक एक्सीडेंट की वजह से हुआ था उनका बायां हिस्सा लकवाग्रस्त
‘प्री-मेच्योर बेबी’ होने के कारण देविका को जन्म लेते ही जॉन्डिस हो गया। जैस वो ठीक हुई। लगा कि सबकुछ नार्मल हो गया। लेकिन उन्होंने जैसे ही चलना सीखा वो बिजी रोड पर यूं ही घूमने निकल गई। वहां एक मोटरसाइकिल ने उन्हें धक्क्क मारा और उनका एक्सीडेंट हो गया। रिपोर्ट्स में आया कि 'उनके मस्तिष्क के दाहिने हिस्से पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा और शरीर का बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया।'वो हेमिप्लेजिया की शिकार हो गयी। लेकिन उन्होंने जिंदगी से हार नहीं मानी। वो बचपन से ही ऑक्युपेशनल थेरेपी और फिजियोथेरेपी करवाने लगी। इस वजह से देविका के शरीर का बायां हिस्सा 60 प्रतिशत नार्मल हो गया।
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मां है उनकी प्रेरणा
मां ने बचपन से उन्हें लड़ना सिखाया है हारन नहीं। इसलिए शायद उन्होंने 60 प्रतिशत के बाद भी पारा-एथलीट जैसा स्पोर्ट्स चुना। आज वो सोशल वर्कर भी है। सयकोलॉजिस्ट और डिसेबिलिटी स्पोट्र्स रिसर्च स्कॉलर भी है। बतादें कि उनकी मां दीपा मलिक पैरालंपिक कमेटी ऑफ इंडिया की प्रेसिडेंट है और दीपा ने रियो पैरालंपिक में देश के लिए सिल्वर मेडल भी जीता था।
बिना शोर किए लोगों की करती है मदद
आपने देखा होगा कि कई लोग लाचार लोगों की मदद तो करते है। लेकिन वो हर जगह अपनी इस मदद का ढिंढोरा पीटते है। लेकिन देविका बिन बताए हर किसी की मदद करती है। फाउंडेशन डिसएबिलिटी स्पोर्ट्स फंड ही इकत्रित नहीं करती बल्कि अपने लोगों को खाना भी खिलाती है। वो इस बात का पूरा ध्यान रखती है कि कोई भी मजदूर भूखा न रह जाए।
फॉर्ब्स-30 की अंडर-30 एशिया लिस्ट में हुई है शामिल
बतादें कि देविका इस वजह से सुर्खियों में आई है क्योंकि वो फॉर्ब्स-30 की अंडर-30 एशिया लिस्ट में शामिल हुई है। इससे पहले यह नाम गुमनाम नहीं था बस सबसे छिपा हुआ था। इनके साथ-साथ भारतीय पैरा एथलीट संदीप चौधरी को भी शामिल है।