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Debina ने 14 महीने की बेटी को भेजा Play School, जानिए बच्चों को प्री-स्कूल भेजने के फायदे

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 18 Apr, 2024 11:54 AM
Debina ने 14 महीने की बेटी को भेजा Play School, जानिए बच्चों को प्री-स्कूल भेजने के फायदे

टीवी एक्ट्रेस देबीना बनर्जी को बहुत ही कम अरसे के गेप में 2 बेटियां हो गई हैं। हालांकि वो एक सुपरमॉम हैं और बहुत ही बेहतरीन तरीके से अपने 2 बच्चों का ख्याल रख रही हैं। पिछले साल उन्होंने अपनी 14 महीने की बेटी लियाना चौधरी को प्लेस्कूल में दखिला दिला दिया। ये बात कई लोगों को अजीब लग सकती है क्योंकि ज्यादातर लोग बच्चों के 2-3 साल होने के बाद ही उन्हें प्लेस्कूल में दखिला दिलवाते हैं। 14 महीने बहुत ही कम उम्र है। हालांकि देबिना चाहती हैं कि उनके बच्चों को कम उम्र में ही दुनिया के बारे में पता चले। इसी वजह से उन्होंने ये कदम उठाया है। वहीं भारतीय शिक्षा प्रणाली के हिसाब से प्री- स्कूल शुरू करने की सही उम्र 1.5 से 3 साल है। अगर आप भी अपने बच्चे को प्ले- स्कूल भेजना चाहते हैं तो आइए आपको बताते हैं इसकी सही उम्र...

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कितनी उम्र में बच्चों को भेजें प्ले स्कूल

जहां सरकार 1.5 से 3 साल के बच्चों को प्ले स्कूल भेजने की इजाजत देती है। वहीं प्री- स्कूल ढाई साल की उम्र को एडमिशन की परमिशन देते हैं। लेकिन ऐसा नहीं है कि जो भी इस उम्र का बच्चा वहां जाए उनको एडमिशन मिल जाएगी। हर बच्चा अलग है, उनका शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक विकास अलग- अलग स्तर पर होता है। 

बच्चे को प्ले स्कूल में डालने से पहले उन पहलुओं में जरूर विचार करें। वैसे बच्चों को यहां भेजना फायदेमंद है।

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- जो बच्चे प्री- स्कूल में 6 घंटे बिताते हैं, उनके लैंग्वेज और गणित के स्किल्स अच्छे होते हैं। इससे बच्चे स्कूल में बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं।

- स्कूल में अपनी उम्र के बच्चों और टीचर से बात करने से बच्चे के कॉग्नीटिक फंक्शन में सुधार आता है। कुछ स्टडीज के हिसाब से बच्चों की भाषा और vocabulary में सुधार आता है। जितना बच्चा घर पर बोलना नहीं सीख पाता, उससे कहीं ज्यादा प्ले स्कूल में शब्द बोलना और पहचानना सिखता है।

- प्ले स्कूल में जाने वाले बच्चे कई तरह की एक्टिविटीज में भी भाग लेते हैं। इससे दिमाग, हाथों और आंखों का कॉर्डिनेशन इम्प्रूव होता है। ये ही नहीं, ड्रॉइंग से लेकर स्लाइड पर चढ़ने तक और सीढ़ी में उतरने- चढ़ने तक सारी गतिविधियों से बच्चे दिमागी तौर पर शॉर्प बनते हैं।

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