बंगलादेश में पिछले कुछ दिनों से जारी भारी तनाव के बीच प्रधानमंत्री शेख हसीना सोमवार को देश छोड़कर सुरक्षित स्थान के लिए रवाना हो गयी और उनके चले जाने की खबर मिलते ही हजारों प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को उनके सरकारी आवास गणभवन पर धावा बोल दिया। सुश्री हसीना अपराह्न करीब 14:30 बजे सैन्य हेलिकॉप्टर से राजधानी ढाका से रवाना हुईं। उनके साथ उनकी छोटी बहन शेख रेहाना भी थीं।
दृढ़ता और संकल्प के साथ नेतृत्व करने को लेकर शेख हसीना को "लौह महिला" कहा जाता था। उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें "बंगबंधु" (बंगाल के मित्र) के नाम से भी जाना जाता है, बांग्लादेश की स्वतंत्रता के नायक माने जाते हैं। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के लोगों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। 16 दिसंबर 1971 को, बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की। इस संघर्ष के दौरान, शेख मुजीबुर रहमान को गिरफ्तार कर लिया गया था और पाकिस्तान भेज दिया गया था, लेकिन उनकी नेतृत्व की भावना ने बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाई।
15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की हत्या कर दी गई थी। उस समय शेख हसीना और उनकी बहन शेख रिहाना जर्मनी में थीं, जिससे वे इस हमले से बच गईं। इसके बाद, उन्होंने कई वर्षों तक भारत में निर्वासन में समय बिताया। शेख हसीना ने बांग्लादेश की राजनीति में एक मजबूत और स्थिर नेतृत्व प्रदान किया है। उन्होंने अपने पिता की हत्या के बाद बांग्लादेश की राजनीति में प्रवेश किया और बांग्लादेश अवामी लीग का नेतृत्व किया। अपने राजनीतिक करियर के दौरान, उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया, जिसमें राजनीतिक हिंसा, हत्या के प्रयास, और विरोधी दलों के साथ संघर्ष शामिल हैं। इसके बावजूद, उन्होंने अपने सिद्धांतों और नीतियों पर कायम रहीं।
शेख हसीना के शासनकाल में, बांग्लादेश ने आर्थिक विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य, और महिला सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण प्रगति की है। उनके नेतृत्व में बांग्लादेश ने गरीबी कम करने और बुनियादी ढांचे में सुधार के कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। उन्होंने आतंकवाद और उग्रवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की और देश में शांति और सुरक्षा बनाए रखने के लिए कठोर कदम उठाए। शेख हसीना और उनके पिता, शेख मुजीबुर रहमान, दोनों ने बांग्लादेश की राजनीति और स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके साहस, दृढ़ता, और नेतृत्व के गुणों ने उन्हें और उनके परिवार को बांग्लादेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है। हालांकि देश के लिए इतने साल सेवा करने के बावजूद उन्हें यहां से भागना पड़ा।