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India Abortion Law : कभी भारत में भी गैरकानूनी होता था गर्भपात, जानिए कब बना कानून

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 05 Jul, 2022 01:08 PM
India Abortion Law : कभी भारत में भी गैरकानूनी होता था गर्भपात, जानिए कब बना कानून

अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में गर्भपात को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश पारित कर बवाल खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने  50 साल पहले के ‘रो बनाम वेड’ मामले में दिए गए फैसले को पलटते हुए गर्भपात के लिए संवैधानिक संरक्षण को समाप्त कर दिया था। अदालत का फैसला अधिकतर अमेरिकियों की इस राय के विपरीत है कि 1973 के रो बनाम वेड फैसले को बरकरार रखा चाहिए जिसमें कहा गया था कि गर्भपात कराना या न कराना, यह तय करना महिलाओं का अधिकार है।


गर्भपात के हैं कुछ  कानूनी प्रावधान

1973 के रो बनाम वेड फैसले से अमेरिका में महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात का अधिकार मिल गया था, अब कोर्ट ने इसे पलट दिया है। दरअसल गर्भपात एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें गर्भवती महिला अपनी इच्छा से  इसे करवा सकती है। लेकिन इसके कुछ कानूनी प्रावधान हैं उस आधार पर ही अबॉर्शन को वैध माना जाता है, जैसे जेंडर के आधार पर अबोर्शन कराना अवैध है। भारत की बात करें तो यहां का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात की अनुमति देता है।

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भारत में बढ़ा दी गई है गर्भपात की सीमा

 2021 में एक संशोधन के माध्यम से, गर्भपात की सीमा को बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दिया गया था, लेकिन केवल विशेष श्रेणी की गर्भवती महिलाओं जैसे कि बलात्कार या अनाचार से बचे लोगों के लिए, वह भी दो पंजीकृत डॉक्टरों की मंजूरी के साथ। नए नियम में मानसिक रूप से बीमार महिलाओं, भ्रूण में ऐसी कोई विकृति या बीमारी हो जिसके कारण उसकी जान को खतरा हो या फिर जन्म लेने के बाद उसमें ऐसी मानसिक या शारीरिक विकृति होने की आशंका हो जिससे वह गंभीर विकलांगता का शिकार को यह अधिकार मिलते हैं। 

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कब बना कानून?

25 अगस्त 1964 में केंद्रीय परिवार नियोजन बोर्ड ने सिफारिश की जिसके बाद इस पर कानून बनाया गया इसपर विचार करने के बाद 1971 में मेडिकल ट्रमिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट पारित किया गया। कहा जाता है कि भारत में 1960 के दशक में शांतिलाल शाह कमेटी की रिपोर्ट के बाद 1971 में मैडीकल टर्मीनेशन ऑफ प्रैग्नैंसी एक्ट (एम.टी.पी.) का क़ानून बना था। इसमें पिछले साल संशोधन के बाद गर्भपात करवाने के लिए मान्य अवधि को 20 हफ़्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया है। गर्भावस्था की समाप्ति का सबसे सही समय 8 से 12 हफ्ते तक होता है लेकिन कानून संशोधन के बाद ये अवधी 20 सप्ताह हो गई है। 

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ये था भारत का कानून

साल 1971 से पहले भारत में भी किसी तरह का गर्भपात भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 के सेक्शन 312 के अनुसार आपराधिक गतिविधि माना जाता था। उस समय भी अगर महिला की जान बचाने के लिए गर्भपात किया गया है तो उसकी इजाजत थी। एबॉर्शन एक दंडनीय अपराध था और गर्भपात कराने में मदद करने वाले व्यक्ति के लिए तीन साल की सजा और दंड का प्रावधान था, जबकि एबॉर्शन कराने वाली महिला को सात साल तक की सजा और जुर्माना भी भरना पड़ता था। 

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गैर कानूनी तरीके से होते हैं लाखों गर्भपात

एक रिपोर्ट के अनुसार सन् 2015 में भारत में 1.56 करोड़ गर्भपात हुए। भारत सरकार ने इस समस्या के निदान के लिए साल 1964 में शांतिलाल शाह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया कमेटी ने भारत में गर्भपात कानून का ड्राफ्ट तैयार किया और 1970 में संसद ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी बिल को पेश किया गया। संसद ने 1971 में इसे मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के रूप में पास कर दिया। भारत में गैर कानूनी और अवैध तरीके से 8 लाख से ज्यादा सालाना गर्भपात होते हैं, जिनकी वजह से महिलाओं की स्वास्थ्य सुरक्षा को भारी खतरा है।

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क्या है भारत की स्थिति ?

इस सब के बीच सवाल यह है कि क्या भारत में बच्चा पैदा करने से जुड़े फ़ैसले का हक महिलाओं के हाथ में है? इसका जवाब शायद ना होगा, क्योंकि कानून की वैधता के बावजूद भी हमारे देश में गर्भपात या अबॉर्शन के मुद्दे को स्वास्थ्य से न जोड़कर इसके रुढ़िवादी सामाजिक पहलू को ज्यादा तरहीज दी जाती है। गर्भपात को ‘हत्या और पाप’ बताकर संस्कृति और पंरपरा के खिलाफ बताया जाता है। यानि की भारत में महिलाओं को गर्भपात का अधिकार जरूर है, लेकिन ये कहना सही नहीं होगा कि अमेरिकी महिलाओं के मुक़ाबले यहां स्थिति बेहतर है

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आज भी होते हैं असुरक्षित गर्भपात

गटमैचर इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट के मुताबिक युवा महिलाओं के 78 फीसद अनचाहे गर्भ के लिए असुरक्षित गर्भपात का इस्तेमाल किया जाता है। यदि भारत में सुरक्षित गर्भपात किया जाए, उसके बाद सही देखभाल की जाए तो इससे संबधित मृत्यु में 97 फीसद की गिरावट देखी जा सकती है। लैंसेट की साल 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2015 के दौरान 15.6 मिलियन गर्भपात हुए, जिनमें से 78 प्रतिशत स्वास्थ्य सुविधाओं के बाहर किए गए। 


 

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