गणेश चतुर्थी का पवित्र त्योहार हर साल भादपद्र महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक इस साल यह पावन त्योहार 22 अगस्त दिन शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान गणपति के जन्मोत्सव के तौर पर हर जगह पर बड़ी धूमधाम के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। इस दिन भगवान गणपति की मूर्ति लाकर लोग अपने- अपने घरों में स्थापित करते हैं। बड़े प्यार और श्रद्धा से उनकी भक्ति करते हैं। भगवान श्रीगणेश जी अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि-सिद्धि और शुभ लाभ के साथ विराजते हैं। मान्यता है कि किसी भी शुभ काम को करने से पहले भगवान श्रीगणेश जी की पूजा करने से सफलता मिलती है। जीवन के सभी दुख- कष्ट दूर हो घर में खुशहाली आती है। मगर क्या आप जानते हैं कि किसी भी शुभ काम को करने से पहले भगवान श्रीगणेश जी को क्यों पूजा जाता है? तो चलिए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर क्यों गणपति देव को प्रथम पूजनीय कहा जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार देवताओं को किसी परेशानी ने घेर लिया था। ऐसे में अपनी समस्य का हल निकालने के लिए सभी देवतागण एक साथ भगवान शिव के पास पहुंचे। संयोगवश कुमार कार्तिकेय और भगवान गणेश भी भगवान शिव जी के पास थे। ऐसे में देवताओं ने अपनी परेशानी देवों के देव महादेव के सामने रखी। तभी शिव जी ने अपने दोनों बच्चों यानि भगवान गणपति और कार्तिकेय से सवाल किया कि आप दोनों में से इनकी समस्या को कौन सुलझा सकता है? ऐसे में पिता की बात सुनते ही दोनों ने तुंरत हां में उत्तर दे दिया। मगर अब सभी के सामने यह प्रश्न आया की समस्या का निवारण कौन करेगा? यानि किस की बात मानी जाएं।
भगवान गणेश और कार्तिकेय के बीच रखी गई प्रतियोगिया
ऐसे में इस बात का हल निकालने के लिए गणपति देव और कुमार कार्तिकेय के बीच एक प्रतियोगिता रखी गई। दोनों को शिव जी ने आदेश दिया कि जो भी पहले पृथ्वी और आकाश के चक्कर लगाकर कैलाश पर लौटेगा। उसे ही सर्वश्रेष्ठ माना जाएगा। ऐसे में वह ही देवतागण की समस्या का हल निकालने के लिए सुझाव देगा। बात अगर कार्तिकेय की करें तो उनका वाहन मोर था। ऐसे में उन्होंने सोचा कि वे तो बड़ी आसानी से ही आकाश और धरती के चक्कर लगा कर गणेश से पहले कैलाश पहुंच जाएंगे। ऐसे में बिना देरी किए वे जल्दी ही अपने वाहन पर बैठे और परिक्रमा करने चले गए। मगर भगवान श्रीगणेश जी का वाहन तो छोड़ा सा मूषक यानि चूहा था। उसपर बैठकर तो वे जल्दी से पृथ्वी और आकाश की परिक्रमा करने में सक्षम नहीं थे। ऐसे में गणेश जी ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए अपने मूषक पर सवार हो माता पार्वती और भगवान शिव के चारों ओर सात परिक्रमा लगा ली। उसके बाद माता- पिता का आशीर्वाद लेकर उनके पास खड़े हो गए।
भगवान श्रीगणेश जी चुने गए प्रथम पूजनीय
वहीं जब पूरी पृथ्वी और आकाश की परिक्रमा करने के बाद कुमार कार्तिकेय वापस आए तो उन्होंने सोचा कि वे ही विजेता है। मगर जब उन्होंने अपने से पहले वहां गणेश जी को खड़ा पाया तो वे सोचने लगे कि आखिर गणेश जी परिक्रमा करने के लिए क्यों नहीं गए। फिर अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए उन्होंने यहीं सवाल गणपति जी से पूछा। मगर जबाव में गणेश जी ने उन्हें कहा कि उन्होंने परिक्रमा पूरी कर ली है। साथ ही उन्होनें से अपने बड़े भाई कार्तिकेय को कहा कि माता को पूरी पृथ्वी और पिता का स्थान आकाश के बराबर माना जाता है। ऐसे में उनके चारों तरफ परिक्रमा करने से पृथ्वी और आकाश की परिक्रमा करने के बराबर फल मिलता है। गणेश जी इस उत्तर को सुनकर शिव जी ने उनसे खुश होते हुए उन्हें विजेता घोषित किया दिया। साथ ही भगवान गणेश जी को देवताओं की समस्या पर अपना सुझाव देने की भी आज्ञा दी। ऐसे में उन्हें भगवान शिव और सभी देवतागण द्वारा प्रथम पूजनीय माना जाने लगा। भगवान शिव जी ने उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहा कि जो भी किसी कार्य को शुरू करने से पहले गणेश जी पूजा करेगा उसके सारे काम बिना किसी विघ्न के पूरे हो जाएंगे। साथ ही उसे हर राह पर सफलता मिलेगी। इसतरह बिना बल लगाए सिर्फ बुद्धि का इस्तेमाल कर भगवान श्रीगणेश को प्रथम पूजनीय कह कर पूजा जाने लगा।