भारत की आजादी को इस 15 अगस्त को 76 साल पूरे हो जाएंगे। पूरे देश में इस दिन का उत्साह का माहौल रहता है। दिलों में देशभक्ति की भावना और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए सम्मान लिए लोग ध्वजारोहण करते हैं और शहीदों को नमन करते हैं। ऐसे मौके में कई सारे लोग घूमने जाते हैं। 1947 से पहले भारत के कोने कोने में आजादी की मांग उठी। हर राज्य और शहर से कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की मांग को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी। अगर आप उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं तो आपको पता होना चाहिए कि राज्य के किन शहरों का अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आंधी चली और जिसका परिणाम 15 अगस्त में तब्दील हुआ। यूपी की उन जगहों पर 15 अगस्त के दिन आजादी का जश्न मनाएं जो स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों की याद दिलाते हैं।
मेरठ
देश की आजादी के लिए पहली क्रांति 1857 में हुई। इस विद्रोह की शुरुआत 10 मई को मेरठ से हुई थी। मेरठ में 10 मई की शाम को चर्च का घंटा बजा, जिसकी आवाज सुन लोग घरों से निकल कर एकत्र हो गएं और सदर बाजार में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नारेबाजी करने लगे। आजादी के लिए सबसे पहले यहीं से बिगुल बजा, जिसकी आवाज देखते ही देखते दिल्ली तक पहुंच गई।
झांसी
रानी लक्ष्मीबाई का नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा चुका है। जब भी इतिहास की सबसे साहसी, निडर और क्रांतिकारी महिलाओं का जिक्र होगा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। झांसी से लक्ष्मीबाई ने ही 1857 की क्रांति की अगुवाई की। 22 वर्ष की उम्र में ही रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं। उनकी शहादत ने देश के हर महिला और पुरुष को आजादी की लड़ाई में बिना डरे लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
लखनऊ
1857 की क्रांति की कमान लखनऊ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पहली पत्नी बेगम हजरत महल ने संभाली। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया। पराजय के बाद भी वह ग्रामीण इलाकों में क्रांति की आग जलाती रहीं। 21 मार्च 1858 को अंग्रेजों ने लखनऊ पर अधिकार कर लिया। यहां रेजीडेंसी में आज भी भारतीय सैनिकों के खून के छींटे दिख जाते हैं।
प्रयागराज
आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीर सपूतों में एक चंद्रशेखर आजाद भी हैं, जिनकी वीरगाथा पूरे भारतवर्ष को पता है। 15 अगस्त के मौके पर चंद्रशेखर आजाद को नमन करने के लिए इलाहाबाद जा सकते हैं। यहां अल्फ्रेड पार्क शहीद चंद्रशेखर आजाद की वीरगाथा गाता है। 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों ने जब आजाद को घेर लिया तो उन्होंने अंग्रेजों की गोली से मारे जाने से बेहतर खुद को गोली मारना समझा और अपनी जान क्रांति के लिए न्यौछावर कर दी।