मंदिर में भगवान को प्रसन्न करने के लिए लोग उन्हें फूल, फूलहार अर्पित करते हैं। मगर, भगवान को अर्पित किए हुए उन फूलों को बाद में कचरे के डिब्बे में फेंक दिया जाता है। ऐसे में भगवान को चढ़ाए फूल वेस्ट ना हो इसलिए दो सहेलियों ने एक अनोखा स्टार्टअप शुरू किया है। हम बात कर रहे हैं हैदराबाद की रहने वाली माया विवेक और मीनल दालमिया की, जो मंदिर में चढ़े हुए फूलों से अगरबत्तियां तैयार कर रही हैं।
चलिए आपको बताते हैं इनकी इंस्पायरिंग स्टोरी...
मंदिरों के वेस्ट से बना रहीं अगरबत्ती, साबुन
मीनल और माया पिछले 10 सालों से एक दूसरे को जानती हैं। इनकी दोस्ती इनके बच्चों के जरिए स्कूल कैंपस में हुई। लगभग डेढ़ साल पहले दोनों ने Oorvi Sustainable Concepts की शरूआत की, जिसमें वह मंदिरों में फूल और वेस्ट को इकट्ठा करके अगरबत्ती, खाद, धूपबत्ती और साबुन तैयार कर रही हैं। उनके ये प्रोडक्ट्स Holy Waste ब्रांड के नाम से मार्केट में बिकते हैं।
कैसे आया वेस्ट को रिसाइकल करने का आइडिया
माया लगभग 19 साल कॉपर्रेट सेक्ट में काम कर चुकी हैं। वहीं मीनल फैमिली बिजनेस में अपना हाथ बंटाती हैं। दोनों में ही समाज के लिए कुछ करने की चाह थी, जिसकी वजह से आज वह इस मुकाम पर है। फिर एक दिन माया ने कानपुर के स्टार्टअप हेल्प-अस ग्रीन के बारे में सुना और उसके कॉन्सेप्ट को जाना। उन्होंने पढ़ा कि हर शहर, राज्य में ना जाने कितना जैविक वेस्ट पानी में बहाया जाता है। फिर उन्होंने सोचा कि क्यों ना कानपुर स्टार्टअप की तरह अपने शहर के लिए भी कुछ किया जाए। फिर क्या.. माया ने मीनल से बात की और इसके बाद उन्होंने मंदिरों के फूलों को इकट्टा करके उन्हें रिसाइकल करना शुरू कर दिया।
पहले घर से ही शुरू किया था काम
मीनल और माया ने फूलों को इकट्ठा करके घर पर ही इनकी प्रोसेसिंग शुरू की। वह पहले फूलों को सुखाती और फिर उन्हें पीसकर आगे की प्रक्रिया के लिए देती। 1-2 ट्रायल के बाद वह अगरबत्ती बनाने में सफल हुई, जिसके बाद उन्होंने इसे आगे बढ़ाने की सोची। उन्होंने हैदराबाद के नजदीक मेढ़चल में अपनी प्रोसेसिंग यूनिट सेटअप करके महिलाओं को काम पर रखा। धीरे-धीरे उनके पास मंदिरों से जैविक कचरे का ढेर आने लगा और इससे उनका काम भी बढ़ता गया।
महिलाओं को रोजगार दे रही मीनल और माया
माया और मीनल को मंदिर कार्यरस पुजारियों को मनाने में भी ज्यादा मुश्किल नहीं हुई। क्योंकि मंदिर से वेस्ट ले जाने के लिए पुजारियों को पैसे देने पड़ते थे लेकिन कोई फ्री में उसे ले जाए तो भला उन्हें दिक्कत क्यों होगी। हालांकि कचरे को अलग-अलग करने में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता था लेकिन अब वह इसमें एक्सपर्ट हो चुकी हैं। फिलहाल वह 40 मंदिरों से वेस्ट मेटेरियल मंगवाकर उसे रिसाइकल करती हैं। वह हर महीने करीब 6 टन फूलों के वेस्ट को प्रोसेस करती हैं और अगरबत्ती जैसी चीजें बनाती हैं। लॉकडाउन के कारण उनका काम ना के बराबर हो गया था लेकिन अब 4 महिलाएं काम पर आ रही हैं। उनका कहना कि हम आगे भी रोजगार उत्पन्न करने की कोशिश करेंगे।
करीब 200 कि.लो. फ्लोरल वेस्ट होता है रिसाइकल
माया और मीनल ने कई मंदिरों में अपने डस्टबिन रखवा दिए हैं, जिन्हें लाने का काम कामगारों को सौंपा गया है। मंदिरों के अलावा माया और मीनल शादी-ब्याह, फंक्शन या किसी समारोह से भी फ्लोरल वेस्ट को इकट्ठा कर रिसाइकल करती हैं। उनके इस काम से रोजाना करीब 200 कि.लो. फ्लोरल वेस्ट नदी-नाले में जाने से बच जाता है।
ग्रीन इंडिया अवॉर्ड्स से सम्मानित
हैदराबाद के संगठन, A-IDEA (Association for Innovation Development of Entrepreneurship in Agriculture) से उनके स्टार्टअप को काफी मदद मिली। यही नहीं, इस बेहतरीन इको-फ्रेंडली आइडिया के लिए उन्हें ग्रीन इंडिया अवॉर्ड्स 2019 से भी सम्मानित किया जा चुका है।
उनका यह स्टार्टअप ना सिर्फ पर्यावरण को बचाने में मदद कर रहा है बल्कि इससे कई महिलाओं को रोजगार भी मिल रहा है।