मुंबई जाने वाले ज्यादातर लोग ‘गेटवे ऑ कफ इंडिया’ देखने जरूर जाते हैं और इसकी स्थापत्य कला और भव्यता से प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। लेकिन इस बात से बहुत कम लोग वाकिफ हैं कि गुलाम देश को उपकृत करने दो दिसंबर 1911 को पहली बार यहां आए ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जार्ज पंचम और रानी मैरी का धन्यवाद करने और उनकी यात्रा की याद में देश की वाणिज्यिक राजधानी में समुद्री मार्ग के प्रवेश द्वार के तौर पर ‘गेटवे ऑफ इंडिया’ का निर्माण किया गया।
दक्षिण मुंबई में समुद्र तट के पास स्थित यह 26 मीटर ऊंचा द्वार है, जो प्रसिद्ध वास्तुशिल्पी जॉर्ज विंसेंट के नेतृत्व में 1924 में बनकर तैयार हुआ। समुद्र के रास्ते मुंबई आने पर सबसे पहले महानगर की जो इमारत दिखाई देती है वह गेटवे आफ इंडिया ही है। खास बात है कि इसका निर्माण भारत के अंदर आने और बाहर जाने वाले दरवाजे के तौर पर हुआ था। जब अंग्रेज भारत छोड़कर गए थे तो उनका आखिरी जहाज यहीं से गया था।
गेटवे ऑफ़ इंडिया का पूरा इतिहास
-गेटवे ऑफ़ इंडिया की रूपरेखा जार्ज विटेट ने तैयार की थी।
-इसका निर्माण किंग जार्ज और क्वीन मैरी ने 1911 में करवाया था।
-मुंबई के कोलाबा में स्थित गेटवे ऑफ़ इंडिया वास्तुशिल्प का चमत्कार है
-इसकी ऊंचाई लगभग आठ मंजिल के बराबर है।
-गेटवे ऑफ इंडिया पीले बेसाल्ट और कंक्रीट से बनाया गया था।
-यहां के गुम्बद निर्मित करने में 21 लाख रुपए का खर्च आया था
-गेटवे ऑफ इंडिया की नींव का काम 1920 में पूरा किया गया था
-निर्माण 1924 में समाप्त हो गया था।
-गेटवे ऑफ इंडिया 4 दिसंबर, 1924 को वायसराय द्वारा खोला गया।
यह ताजमहल पैलेस और टॉवर होटल के सामने एक कोण पर तट पर स्थित है और अरब सागर को देखता है । ये स्मारक मुंबई शहर का पर्याय है, और इसके प्रमुख पर्यटक आकर्षणों में से एक है। दुनिया भर से दूर दूर से आने वाले लोग जब मुंबई की यात्रा पर आते हैं तो गेट ऑफ इंडिया जरूर जाते हैं अरब सागर के किनारे पर बने होने के कारण गेटवे ऑफ इंडिया के पास लोगों की भीड़ हमेशा देखने को मिलती है। यहा आने के बाद आप एलिफेंटा की गुफ़ाओं में घूमने भी जा सकते हैं। इन गुफ़ाओं को देखने के लिए समुद्री रास्ते से नाव में बैठकर जाना पड़ता है गेटवे ऑफ इंडिया के पास एलिफेंटा की गुफ़ाओं के लिए नाव मिल जाएगी।