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जगन्नाथ मंदिर के 4 दरवाजों की कहानी, जो लंबे इंतजार के बाद खुले श्रद्धालुओं के लिए

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 13 Jun, 2024 04:40 PM
जगन्नाथ मंदिर के 4 दरवाजों की कहानी, जो लंबे इंतजार के बाद खुले श्रद्धालुओं के लिए

ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों की मौजूदगी में वीरवार सुबह पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर के सभी चार द्वार श्रद्धालुओं के लिए फिर से खोल दिए गए। कोविड-19 महामारी के बाद से बंद किए गए 12वीं सदी के मंदिर के तीन द्वार भगवान जगन्नाथ की 'मंगल आलती' अनुष्ठान के बाद फिर से खोल दिए गए हैं। 

कोराेना में बंद हुए थे द्वार

'शपथ ग्रहण समारोह के बाद, भाजपा सरकार ने बुधवार की शाम को मंदिर के सभी चार द्वारों को फिर से खोलने का अपना पहला निर्णय लिया था। आज, 'मंगल आलती' अनुष्ठान के बाद सुबह छह बज कर तीस मिनट पर द्वार फिर से खोल दिए गए।'' मंदिर के सभी द्वार खोलना भाजपा के चुनाव घोषणापत्र में एक प्रमुख वादा था। पिछली बीजू जनता दल (बीजद) सरकार ने कोविड-19 महामारी के बाद से मंदिर के चार में से तीन द्वार बंद रखे थे। 

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 श्रद्धालुओं को रही असुविधा

श्रद्धालुओं को केवल सिंहद्वार से प्रवेश की अनुमति दी गई, जबकि मंदिर के अन्य तीन तरफ स्थित द्वार बंद रहे, जिससे श्रद्धालुओं को असुविधा हुई। पुरी का श्री जगन्नाथ मन्दिर भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण) को समर्पित है।  भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा, इस मंदिर के मुख्य देव हैं। इनकी मूर्तियां, एक रत्न मण्डित पाषाण चबूतरे पर गर्भ गृह में स्थापित हैं। इतिहास अनुसार इन मूर्तियों की अर्चना मंदिर निर्माण से कहीं पहले से की जाती रही है। 

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चारों द्वार की कहानी

जगन्नाथ मंदिर के बाहरी दीवार पर पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी चार द्वार हैं। पहले द्वार का नाम सिंहद्वार (शेर का द्वार), दूसरे द्वार का नाम व्याघ्र द्वार (बाघ का द्वार),  तीसरे द्वार का नाम हस्ति द्वार (हाथी का द्वार) और चौथे द्वारा का नाम  अश्व द्वार (घोड़े का द्वार) है।  इन सभी को धर्म, ज्ञान, वैराग्य और ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है। 


सिंह द्वार- सिंह द्वार मंदिर की पूर्व दिशा में है, जो सिंह यानी के नाम पर है. ये जगन्नाथ मंदिर में एंट्री करने का मुख्य द्वार है और इसे मोक्ष का द्वार भी कहा जाता है।

व्याघ्र द्वार- इस दरवाजे का नाम बाघ पर है, जिसे आकांक्षा का प्रतीक माना जाता है. ये गेट पश्चिम दिशा में है और इस गेट से संत और खास भक्त एंट्री लेते हैं।

हस्ति द्वार- हस्ति द्वार का नाम हाथी पर है और यह उत्तर दिशा में है। कहा जाता है कि इस द्वार पर दोनों तरफ हाथी की आकृति बनी हुई है, जिन्हें मुगल काल में उन्हें क्षतिग्रस्त कर दिया गया।

अश्व द्वार- अश्व द्वार दक्षिण दिशा में है और घोड़ा इसका प्रतीक है। इसे विजय का द्वार भी कहा जाता है और जीत की कामना के लिए योद्धा इस गेट का इस्तेमाल किया करते थे।

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मंदिर में है कुल 22 सीढ़ियां

पुरी के जगन्नाथ धाम मंदिर में कुल 22 सीढ़ियां हैं। धार्मिक मान्यता के मुताबिक, ये सभी सीढ़ियां बहुत ही रहस्यमयी हैं.  जो भी भक्त इन सीढ़ियों से होकर गुजरता है, तो तीसरी सीढ़ी का खास ध्यान रखना होता है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मंदिर की तीसरी सीढ़ी पर पैर नहीं रखना होता।अगर इस पर पैर रख दिया तो समझो कि सारे पुण्य धुल गए और फिर बैकुंठ की जगह यमलोक जाना पड़ेगा। 

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 भारत की सबसे बड़ी रसोई है यहां

 जगन्नाथ मंदिर का एक बड़ा आकर्षण यहां की रसोई है। यह रसोई भारत की सबसे बड़ी रसोई के रूप में जानी जाती है। इस विशाल रसोई में भगवान को चढाने वाले महाप्रसाद को तैयार करने के लिए 500 रसोईए तथा उनके300 सहयोगी काम करते हैं। इस मन्दिर का वार्षिक रथ यात्रा उत्सव प्रसिद्ध है। इसमें मन्दिर के तीनों मुख्य देवता, भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भ्राता बलभद्र और भगिनी सुभद्रा तीनों, तीन अलग-अलग भव्य और सुसज्जित रथों में विराजमान होकर नगर की यात्रा को निकलते हैं।

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