भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले पितृ पक्ष के दौरान पितरों की आत्मा तृप्ति के लिए पंच बलि भोग में कौवे के भोग का बहुत महात्म माना गया है। श्राद्ध में पितरों की आत्मा को तृप्त करने के लिए देव, गाय, कौआ और श्वान बलि भोग दिया जाता है। इस भोग को ग्रहण कर पितृ तृप्त होते हैं। पितृ कुटुम्ब के सदस्यों को स्नेह पूर्वक आशीर्वाद देकर धराधाम से उर्ध्व धाम को चले जाते हैं।
स्कंद पुराण के अनुसार देवता और पितर गंध और रस तत्व से भोजन ग्रहण करते हैं। इनको ग्रास न/न देने से श्राद्ध कर्म अधूरा ही माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कौओं को देवपुत्र भी माना गया है। कौए को भविष्य में घटने वाली घटनाओं का पहले से ही आभास हो जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौए को खाना खिलाने से पितरो को तृप्ति मिलती है। गरुण पुराण के अनुसार, पितृपक्ष में अगर कौआ श्राद्ध का भोजन ग्रहण कर लें तो पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और यम भी खुश होते हैं और उनका संदेश पितरों तक पहुंचाते है।
पितृ पक्ष में श्वान और कौए पितर का रूप होते हैं इसलिए उन्हें भोजन खिलाने का विधान है। प्राचीन शास्त्रों के अनुसार यम ने कौवे को वरदान दिया था कि तुम्हें दिया गया भोजन पूर्वजों की आत्मा को शांति देगा। तब से यह प्रथा चली आ रही है। प्रयाग धर्म संघ के अध्यक्ष और तीर्थपुरोहित राजेन्द्र पालीवाल ने बताया कि पितर हमारे अद्दश्य सहायक होते हैं। पुराण, रामायण, महाकाव्यों एवं अन्य धर्म शास्त्र और प्राचीन ग्रन्थों में पितृपक्ष में कौवों की महत्ता को विस्तृत रूप से बताया गया है। इससे जुडी कई रोचक कथाएं एवं मान्यतायें वर्णित हैं। भारत के अलावा दूसरे देशों की प्राचीन सभ्यताओं में भी कौए को महत्व दिया गया है। गरुड़ पुराण में बताया है कि कौवे यमराज के संदेश वाहक होते हैं।
शास्त्रों में वर्णित है कि कौआ एक मात्र ऐसा पक्षी है जो पितृ-दूत कहलाता है। यदि पितरों के लिए बनाए गए भोजन को यह पक्षी चख ले, तो पितृ तृप्त हो जाते हैं। कौआ सूरज निकलते ही घर की मुंडेर पर बैठकर यदि वह कांव-कांव की आवाज निकाल दे, तो घर शुद्ध हो जाता है। इसलिए पितृ पक्ष के दौरान कौवों को भोजन कराना शुभ माना जाता है। पुराणों में कौए को शुभ-अशुभ का संकेत देने वाला बताया गया है। धर्म शास्त्र श्राद्ध पारिजात में वर्णन है कि पितृपक्ष में गौ ग्रास के साथ काक बलि प्रदान करने की मान्यता है। इसके बिना तर्पण अधूरा माना गया है। मृत्यु लोक के प्राणी द्वारा काक बलि के तौर पर कौओं को दिया गया भोजन पितरों को प्राप्त होता है। रामायण में कागभुसुंडी का वर्णन मिलता है।