'कॉमनवेल्थ गेम्स' आजादी से पहले साल 1930 में शुरु हुए थे, तब इसे ‘ब्रिटिश एंपायर के गेम्स’ के नाम से जाना जाता था और क्योंकि भारत अंग्रजों के शासन में था तो भारतीयों ब्रिटिश झंडे के साथ खुद को रिप्रेजेंट करते हैं। सबसे पहले भारतीय जिन्होनें भारत को गोल्ड मेडल दिलाया वो थे 'द फ्लाइंग सिख’ मिल्खा सिंह। लेकिन क्या आप जानते हैं कि कॉमनवेल्थ गेम्स में सबसे पहले गोल्ड मेडल जीतनेवाली महिला एथलीट कौन हैं? वह है भारतीय शूटर रूपा उन्नीकृष्णन जिन्होंने महज 20 साल की उम्र में कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान कायम की।
रूपा उन्नीकृष्णन का बचपन
रूपा उन्नीकृष्णन मूल रूप से चेन्नई की रहनेवाली हैं। उन्होंने महज 12 साल की उम्र में शूटिंग करनी शुरू कर दी थी। उनके पिता एक पुलिस अधिकारी रहे हैं। उन्होंंने पुलिस शूटिंग रेंज से ही पढ़ाई के साथ-साथ अपनी शूटिंग ट्रेनिंग लेनी शुरू की थी।वह नियमित तौर पर 2-3 घंटे शूटिंग प्रैक्टिस किया करती थीं। रूपा ने वीमंस क्रिश्चिन कॉलेज, चेन्नई से स्नातक की डिग्री हासिल की और एथिराज कॉलेज, चेन्नई से एमए किया है। उसके बाद वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से भी पढ़ी हैं। रूपा, ऑक्सफोर्ड वीमंस शूटिंग की कप्तान भी रह चुकी हैं। उनके नेतृत्व में ऑक्सफोर्ड शूटिंग टीम ने यूनिवर्सिटी लीग का खिताब जीता था।
बनीं पहला स्वर्ण पदक जीतने वाली महिला
वैसे तो रूपा कई महत्वपूर्ण खिताब अपने नाम कर चुकी थीं। लेकिन 1998 में कुआलालंपुर में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में गोल्ड मेडल जीतकर उन्होंने हमेशा के लिए इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। इससे पहले वो 1994 में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में 50 मीटर स्मॉल बोर राइफल थ्री पोजीशन इवेंट में रजत पदक और टीम इवेंट में कांस्य पदक भी जीत चुकी हैं। साल 1999 में उन्हें भारत के सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘अर्जुन अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।
खेलों में भेदभाव के चलते बदली करियर की राह
रूपा ने कई जगह भारत में खेलों में भेदभाव के बारे में कहा है। उन्होनें भारतीय कंपनियों से स्पॉन्सरशिप लेने की कोशिश की, लेकिन किसी को आकर्षण नज़र नहीं आया। इस घटना के बाद उन्होंने करियर के तौर पर दूसरा पेशा चुनना तय किया। उसके बाद वह न्यूयार्क जाकर रहने लगी और वहीं श्रीनाथ श्रीनिवासन से शादी कर ली। आज वो एक कामयाब बिजनेस वीमन हैं। 2017 में रूपा उन्नीकृष्णन की ‘द करियर कैटापल्ट’ के नाम से लिखी एक किताब भी प्रकाशित हो चुकी हैं।