हिंदू धर्म में किसी भी व्रत की कथा सुनना बहुत ही जरुरी होता है। बिना कथा के कोई भी व्रत पूरा नहीं होता। इसलिए पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, हर प्रकार के व्रत और त्योहार को लेकर कई सारे पुरानी कथाएं हैं। व्रत की बात करें तो महिलाओं को पवित्र उपवास करवाचौथ की कथा भी ग्रंथों में प्रचलित है। व्रत रखने वाली महिलाओं को यह करवाचौथ की कथा जरुर सुननी चाहिए। इससे व्रत का पूरा लाभ मिलता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, करवाचौथ सनातन काल से चल रहा है ऐसे में उसकी कथा भी उसी काल से सुनी जा रही है। कल पूरे भारत में करवाचौथ मनाया जाएगा। ऐसे में आज आपको बताते हैं त्योहार की पूरी कथा।
यह है करवाचौथ की कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक साहुकार हुआ करते थे। उस साहुकार के सात बेटे और एक बेटी थी। बेटी की शादी होने के बाद वह अपने ससुराल चली गई थी। सातों भाई अपनी बहन से बहुत ही प्यार करते थे। एक बार करवाचौथ वाले दिन साहूकार के सातों बेटे अपनी बहन से मिलने के लिए उसके घर गए। जब वह अपनी बहन के घर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि उनकी बहन ने निर्जला उपवास किया है और उसने पूरे दिन से अन्न जल भी ग्रहण नहीं किया हुआ है। उन्होंने अपनी बहन को पानी पीने के लिए कहा लेकिन उसने कहा कि वह चांद निकलने के बाद ही पानी पी सकती है। भाई ने देखा आसमान में चांद नहीं निकला हुआ था। यह सब देखकर छोटे भाई से रहा नहीं गया और उसने दूर से जाकर एक पेड़ पर दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख दिया। इससे यह लगने लगा कि चंद्रमा निकल आया है। उसके कहने पर उसकी बहन ने चांद देखकर व्रत खोल लिया। उसने जैसा ही अपने मुंह में पहला निवाला डाला तो उसे छींक आ गई, वहीं जैसे ही बहन ने दूसरा निवाला डाला तो उसमें बाल निकल आया और जैसे ही बहन ने तीसरा निवाला डाला तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया। पति के निधन के बाद साहूकार की बेटी इतनी दुखी हो गई कि उसने यह फैसला लिया कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार ही नहीं करेगी।
एक साल तक पति का शव रखा अपने पास
वहीं उस लड़की ने ठान लिया था कि वह अपने सतीत्व से वह अपने पति को पुर्नजीवन दिलवाकर ही रहेगी। इसके बाद वह एक साल तक अपने पति का शव लेकर वहीं पर बैठी रही। इसके बाद वह उसके ऊपर उगने वाली घास इकट्ठी करती रही। एक साल के बाद करवाचौथ के दिन उसने चतुर्थी का व्रत किया और पूरे विधि-विधान के साथ निर्जला उपवास रखा।
दोबारा जीवित हो गया पति
शाम को सुहागिनों से वह वही घास देकर प्रार्थना करती रही कि घास लेकर उसे उसके पति की जान दे दे और दोबारा से सुहागिन बना दें। उसकी कठिन तपस्या और व्रत देखकर भगवान के आशीर्वाद से साहूकार की बेटी का पति दोबारा से जीवित हो गया। पौराणिक कथा के अनुसार, इस कथा को सुनने से जैसे साहूकार की बेटी का पति जिंदा हो गया वैसे ही करवाचौथ की कथा सुनने से सारी सुहागिन महिलाओं का सुहाग जिंदा रहता है।