जहां कोरोना मामलों में कमी देखने को मिल रही है वहीं इसके नए-नए म्यूटेशन सामने आ रहे हैं। इस खतरनाक बीमारी से बचने के लिए डाॅक्टर वैक्सीन लगवाने की सलाह दे रहे हैं। हालांकि अभी भी कुछ लोग ऐसे हैं जो कोरोना वायरस जैसी महामारी को हल्के में लेते हुए वैक्सीन नहीं लगवा रहे। जिस का परिणाम उन्हें भुगतना पड़ रहा है। ब्रैडफ़ोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ रिसर्च के प्रमुख, डाॅक्टर John Wright ने एक डायरी लिखी जिसमें ऐसे ही मरीजों के बारे में उन्होंने बताया जिन्हें कोरोना वैक्सीन न लगवाना भारी पड़ गया।
उन्होंने बताया कि ब्रैडफोर्ड रॉयल इन्फर्मरी में कोविड -19 के इलाज के लिए मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। जिनमें से लगभग आधे लोगों ने टीकाकरण नहीं करने का विकल्प चुना था। जिसका अब उन्हें गहरा अफसोस हो रहा है। उन्होंने एक मरीज के बारे में बताया, 54 साल के सुपर-फिट फैसल बशीर को वैक्सीन की पेशकश की गई थी लेकिन उन्होंने इसे स्वीकार नहीं किया। फैसल बशीर का कहना था, 'मैं जिम जा रहा था, साइकिलिंग करता था, सैर करता था और दौड़ लगाता था। यह देखते हुए कि मैं मजबूत और स्वस्थ था, मुझे नहीं लगता था कि मुझे इसकी आवश्यकता है लेकिन सच्चाई यह थी कि मैं वायरस से बच नहीं सका। मुझे नहीं पता कि कैसे और कहां।'
उन्होंने कहा, 'अस्पताल में एक सप्ताह तक ऑक्सीजन लेने के बाद मुझे छुट्टी दे दी गई। इसके साथ ही फैसल ने दूसरों को ऐसी गलती न करने की चेतावनी दी।' वह ब्रैडफोर्ड रॉयल इन्फर्मरी में कोविड रोगियों की चौथी लहर में से एक है। मेरे सहयोगी डॉ आबिद अज़ीज़ ने मुझे बताया, 'कुछ को दो टीके लगे हैं और इसलिए उन्हें मामूली बीमारी है। वे सीपीएपी (ऑक्सीजन के साथ गैर-आक्रामक वेंटिलेशन) पर जीवित हैं, जबकि टीके के बिना वे शायद मर जाते।'
वहीं ऐसा ही कुछ 60 वर्षीय विज्ञान शिक्षक अब्दर्रहमान फादिल के साथ भी हुआ। वे कहते हैं, 'मेरी पत्नी के पास टीका था लेकिन मैंने नहीं लगवाया। मैं खुद को समय दे रहा था, मैं सोच रहा था कि मैं अपने जीवन में वायरस, बैक्टीरिया के साथ रहा हूं, और मुझे लगा कि मेरी प्रतिरक्षा प्रणाली काफी अच्छी है। महामारी की शुरुआत में मुझे कोविड के लक्षण थे। मुझे लगा कि मेरी प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस को पहचान लेगी और मेरे पास बचाव होगा।'
वह आगे कहते हैं, 'यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी। मैंने अपने जीवन में कई मूर्खतापूर्ण निर्णय लिए हैं, लेकिन यह सबसे खतरनाक और गंभीर था।' अब्दर्रहमान ने लगभग एक महीने पहले अस्पताल छोड़ दिया, लेकिन अभी भी ठीक नहीं है। वह कहता हैं, 'काश, मैं हर उस व्यक्ति के पास जा पाता जो टीका लगाने से इनकार करता है और उनसे कहता 'देखो, यह मृत्यु और जीवन की बात है। क्या आप जीना चाहते हैं या मरना चाहते हैं? यदि आप जीना चाहते हैं तो फिर जाओ और टीका लगवाओ।''