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Raksha Bandhan: तिलक से लेकर राखी बांधने तक, जानिए पारंपरिक पूजा-विधि

  • Edited By neetu,
  • Updated: 20 Aug, 2021 06:28 PM
Raksha Bandhan: तिलक से लेकर राखी बांधने तक, जानिए पारंपरिक पूजा-विधि

रक्षाबंधन का पर्व इस साल सावन मास की पूर्णिमा तिथि यानि 22 अगस्त को मनाया जाएगा। इस खास पर्व पर बहनें अपने भाइयों की कलाई में राखी बांधकर उनके सुखी व खुशहाल जीवन की कामना करती है। चलिए आज हम आपको पारंपरिक तरीके से राखी बांधने की पूरी विधि बताते हैं...

कुमकुम के साथ अक्षत का तिलक लगाने का महत्व

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माथे पर लाल चंदन, श्वेत चंदन, कुमकुम, हल्दी, भस्म आदि का तिलक लगाना शुभ होता है। मगर रक्षाबंधन के त्योहार में खासतौर पर चावल व कुमकुम का तिलक लगाने की प्रथा है। मान्यताओं के अनुसार, अक्षत यानि चावल को बेहद ही पवित्र अन्न माना जाता है। इसलिए इसे पूजा-पाठ व हवन आदि में देवी-देवताओं को विशेषतौर पर अर्पित किया जाता है। इसका तिलक करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसके साथ ही कच्चे चावल का तिलक जीत, मान-सम्‍मान और वर्चस्व का प्रतीक कहलाता है।

राखी थाली में रखें ये सामग्री

रोली, कुमकुम, अक्षत (साबुत चावल), दही, फूल, दीपक, राखी, मिठाई और भाई के लिए कपड़े या रूमाल।

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राखी बांधने की व‍िध‍ि

. बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधने तक व्रत रखें।
. सबसे पहले भाई के माथे पर दही का तिलक करें।
. उसके बाद कुमकुम से भाई को टिका लगाएं।
. इसके बाद अक्षत यानि चावल और फूल लगाएं।
. थाली में दीपक जलाएं। फिर आंखें बंद करके भाई की लंबी उम्र की प्रार्थना करें।
. अब भाई के दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांधकर उसकी आरती करें।
. आखिर में भाई को मिठाई खिलाकर उसका मुंह मीठा करवाएं।
. अगर बहन बड़ी है तो भाई को उसके पैर छूकर आशीर्वाद लेना चाहिए।

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राखी बांधने की सही जगह व दिशा 

हिंदू मान्याओं अनुसार, बेड, सोफा आदि पर बैठकर राखी नहीं बांधनी चाहिए। इसके लिए बेहतर होगा कि आप किसी लकड़ी की कुर्सी या किसी चीज पर भाई को बिठाकर राखी बांधें। इस दौरान भाई का मुख पूर्व दिशा और आपका मुंह पश्चिम दिशा की ओर हो।

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राखी बांधते दौरान बहनें पढ़े यह मंत्र

राखी बांधते समय बहनें को भाई की मंगल कामना के लिए रक्षा सूत्र पढ़ना बेहद ही शुभ माना जाता है। ऐसे में आप भी महाभारत में वर्णित इस रक्षा सूत्र को पढ़ सकती है।

"ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि प्रति बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।:"

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