कौन कहता है कि बेटियां एक बेटे की जगह नहीं ले सकती हैं , कौन कहता है कि एक बेटी घर की जिम्मेदारी नहीं संभाल नहीं सकती। आज हम आपको एक ऐसी बेटी की कहानी बताने जा रहे हैं जिसने ये डॉयलॉग सच साबित कर दिया , ' हमारी छोरी क्या छोरों से कम है? हम बात कर रहे हैं अहमदाबाद की अंकिता शाह की, जो कि बचपन से दिव्यांग है और वो अहमदाबाद की पहली दिव्यांग महिला ऑटो ड्राइवर है।
बचपन से पोलियों की शिकार
बचपन से पोलियो का शिकार हुई अंकिता का एक पैर नहीं है लेकिन इसके बावजूद वो अपने बीमार पिता के इलाज के लिए ऑटो चलाती है और अपने पिता के इलाज के लिए पैसे जुटा रही है।
छोड़ दी कॉल सेंटर की नौकरी
आपको बता दें कि अंकिता अपने 5 भाई-बहनों में से सबसे बड़ी है। अर्थशास्त्र के विषय में डिग्री हासिल करने वाली अंकिता ऑटो रिक्शा चलाने से पहले एक कॉल सेंटर में काम करती थी लेकिन अपने पिता के लिए अंकिता ने वो नौकरी छोड़ दी। दरअसल अंकिता के पिता कैंसर की बीमारी से जूझ रहे हैं जिनके इलाज के लिए अंकिता ने अपनी कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ कर ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया। अंकिता के अनुसार, उसे अपनी नौकरी से इतने पैसे नहीं मिलते थे कि वो अपने पिता का इलाज करवा सके और अपना घर संभाल सके और तो और वो नौकरी भी घर से दूर थी जिसके कारण अंकिता कोे छुट्टीयां भी बहुत मुश्किल से मिलती थी इसलिए अंकिता ने अपनी कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ दी।
दिव्यांग होने के बाद नहीं मिली कहीं नौकरी
अंकिता के अनुसार उन्होंने कॉल सेंटर की नौकरी छोड़ने के बाद काफी कंपनियों को इंटरव्यू भी दिए लेकिन दिव्यांग होने के कारण उसकी सेलेक्शन कहीं भी नहीं हुई। इसलिए अंकिता ने खुद के बलबूते पर कुछ करने की ठानी और पिता का इलाज करवाने के लिए खुद का ऑटो चलाना शुरू किया।
पिता के इलाज के लिए शुरू किय़ा ये काम
अंकिता के अनुसार जब उसे कहीं भी नौकरी नहीं मिल रह थी तो उसके मन में एक मलाल था कि वो अपने पिता का इलाज नहीं करवा पा रही है और उस दौर में घर का गुजारा करना भी आसान नहीं था इसलिए अंकिता ने ऑटो रिक्शा चलाने की सोची।
कमा लेती हैं 20 हजार रूपए
8 घंटे ऑटो चलाने वाली अंकिता इस काम से महीने का तकरीबन 20 हजार कमा लेती हैं जिसे वो अपने पिता के इलाज के लिए इस्तेमाल करती है । हम अंकिता के इन न हारने वाले हौसलों को सलाम करते हैं।
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