जहां एक ओर किसान पास हुए कृषि बिलों के खिलाफ दिल्ली में अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं वहीं उनकी फसलों व घर की जिम्मेदारी महिलाओं व बच्चियों ने अपने कंधों पर ले ली है। किसानों की युवा बेटियों ने जिम्मेदारी ली है और पढ़ाई के अलावा हर तरह का काम देख रही हैं। इसी बीच जब मीरपुर मारी गांव के एक किसान रूपिंदर सिंह सिंघू सीमा पर विरोध कर रहे थे तो उनकी 12 वर्षीय बेटी रावजोत कौर उनके तीनों घोड़ों की जिम्मेदारी संभाल रही हैं।
पिता की गैर-मौजूदगी में की घोड़ों की देखभाल
रावजोत कौर जो एक घोड़ा सवार है अपने पिता रूपिंदर सिंह की अनुपस्थिति में उनके घोड़ों की देखभाल कर रही हैं। जब उन घोड़ों में से एक बीमार हो गया तो रावजोत ने उसे 'हिमालयन बतीसा' और एक होम्योपैथी दवा भी दी और उसकी देखभाल में लगी रही।
बिना ट्रेनिंग कर लेती हैं घुड़सवारी
उन्होंने कहा कि मैंने यह सुनिश्चित किया कि घोड़ों को एक उचित आहार दिया जाए और वो दैनिक व्यायाम करें। मैं अपने पिता के साथ जुड़ना चाहती थी लेकिन फिर घोड़ों की देखभाल कौन करता?” बता दें कि रूपिंदर का परिवार पीढ़ियों से घोड़ों को रखता आ रहा है और उनकी बेटी को भी घोड़ों से बहुत प्यार है। यही नहीं, वह इतनी कम उम्र में बिना किसी प्रशिक्षण के घोड़ों की सवारी भी कर सकती हैं।
पिता को बेटी पर गर्व
रूपिंदर सिंह ने कहा, "जब मैं दूर था, उसने घोड़ों की देखभाल की और अपनी मां के साथ खेतों में जाना शुरू कर दिय। उन्हें यह जानकर राहत मिली कि उनकी बेटी इतनी कम उम्र में परफेक्शन तरीके से घोड़ों की देखरेख कर सकती है।"
पिता के खेतों की देखभला कर रही सिमरन
यही नहीं, पासिरन गांव के रहने वाले किसान निर्मल सिंह भी जब दिल्ली में अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं तब उनकी गैर-मौजूदगी में उनकी बेटी खेतों की देखभाल कर रही हैं। 20 वर्षीय सिमरन कौर फिजियोथेरेपी की पढ़ाई कर रही हैं, जिनके पिता 15 एकड़ खेत के मालिक हैं। जब उन्होंने सिंघू सीमा पर विरोध करते हुए आठ दिन बिताए तब उनकी बेटी ने खेतों की देखरेख की। वह सुबह 4 बजे उठकर खेतों में पानी लगाती थी। कभी-कभी, वह शाम को अपने कॉलेज से वापिस आने के बाद भी अपनी मां के साथ खेतों में काम करने जुट जाती थी। उन्होंने कहा, 'मुझे कोई अनुभव नहीं है लेकिन मैं अपने पिता से मार्गदर्शन लेती हूं।'