16 कलाओं के स्वामी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव की धूम दुनिया भर में देखने को मिल रही है। भगवान श्रीकृष्ण के बारे में कहा जाता है कि वह संपूर्णावतार थे और मनुष्य में निहित सभी सोलह कलाओं के स्वामी थे। जैसे भगवान राम को 12 कलाओं का ज्ञान था। साधारण मनुष्य में पांच कलाएं और श्रेष्ठ मनुष्य में आठ कलाएं होती हैं। वैसे ही भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं में निपुण थे। तो चलिए आज जानते हैं कि कौन सी हैं कान्हाजी की ये 16 कलाएं।
श्री-धन संपदा
प्रथम कला के रूप में धन संपदा को स्थान दिया गया है। जिस व्यक्ति के पास अपार धन हो और उसके घर से कोई भी खाली हाथ नहीं जाए वह प्रथम कला से संपन्न माना जाता है। धन संपदा से परिपूर्ण श्री कृष्ण भगवान ही हैं, इनके द्वार मांगने वाला कभी ना तो खाली गया है और ना ही कभी जाएगा।
भू संपदा
जिसके भीतर पृथ्वी पर राज करने की क्षमता हो तथा जो पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो, वह भू कला से संपन्न माना जाता है। ऐसी शक्ति भगवान श्री कृष्ण के पास ही हैं वे अचल संपत्ति पर राज करने वाले हैं। पूरा संसार श्री कृष्ण की ही मुट्ठी में है।
कीर्ति संपदा
कीर्ति यानि की ख्याति, प्रसिद्धि अर्थात जो देश दुनिया में प्रसिद्ध हो। लोगों के बीच लोकप्रिय हो और विश्वसनीय माना जाता हो। भगवान कृष्ण जी कीर्ति, यश और सुख को देने वाले है, भक्त अपनी हर समस्या उनके आगे रख समाधान पाते हैं।
वाणी सम्मोहन
कुछ लोगों की आवाज में सम्मोहन होता है, जिनके बोलने के अंदाज का हर कोई मुरीद हो जाता है। ऐसे लोग वाणी कला युक्त होते हैं, इन पर मां सरस्वती की विशेष कृपा होती है। भगवान श्री कृष्ण की वाणा को सुनकर भी व्यक्ति अपनी सुध बुध भूलकर शांत हो जाता है।
लीला
इस कला से युक्त व्यक्ति चमत्कारी होता है और उसके दर्शनों से ही एक अलग ही आनंद मिलता है। भगवान श्री कृष्ण धरती पर लीलाधर के नाम से भी जाने जाते हैं क्योंकि इनकी बाल लीलाओं से लेकर जीवन की घटना रोचक और मोहक है। इनकी लीला कथाओं सुनकर कामी व्यक्ति भी भावुक और विरक्त होने लगता है।
कांति
कांति वह कला है जिससे चेहरे पर एक अलग नूर पैदा होता है, जिससे देखने मात्र से आप सुध-बुध खोकर उसके हो जाते हैं। इस कला के कारण पूरा ब्रज मंडल कृष्ण को मोहिनी छवि को देखकर हर्षित होता था। गोपियां कृष्ण को देखकर उन्हें पति रूप में पाने की कामना करने लगती थीं।
विद्या
विद्या से संपन्न व्यक्ति वेदों का ज्ञाता, संगीत व कला का मर्मज्ञ, युद्ध कला में पारंगत, राजनीति व कूटनीति में माहिर होता है। संपूर्ण विद्या से परिपूर्ण श्री कृष्ण भगवान ही है. जिनके पास सरस्वती की विद्या कला है. वह हर प्रकार से वेद के ज्ञाता है और वे अपनी बल-बुद्धि से बड़ी-बड़ी बाधाओं को दूर करने वाले हैं.
विमला
विमल यानी छल-कपट, भेदभाव से रहित निष्पक्ष जिसके मन में किसी भी प्रकार मैल ना हो, कोई दोष न हो, जो आचार-विचार और व्यवहार से निर्मल हो। महारास के समय भगवान ने अपनी इसी कला का प्रदर्शन किया था। इन्होंने राधा और गोपियों के बीच कोई फर्क नहीं समझा। सभी के साथ सम भाव से नृत्य करते हुए सबको आनंद प्रदान किया था।
उत्कर्षिणि शक्ति
उत्कर्षिणि का अर्थ है प्रेरित करने की क्षमता। जो लोगों को उनके कर्तव्यों के प्रति जागृत करे और उन्हें प्रेरित करे। जो लोगों को मंजिल पाने के लिए प्रोत्साहित कर सके। भगवान श्री कृष्ण ने भी युद्धभूमि में हथियार डाल चुके अर्जुन को गीतोपदेश से प्रेरित किया था। ऐसी क्षमता रखने वाला व्यक्ति उत्कर्षिणि शक्ति से संपन्न व्यक्ति माना जाता है।
नीर-क्षीर विवेक
ऐसा ज्ञान रखने वाला व्यक्ति जो अपने ज्ञान से न्यायोचित फैसले लेता है। ऐसा व्यक्ति विवेकशील तो होता ही है साथ ही वह अपने विवेक से लोगों को सही मार्ग सुझाने में भी सक्षम होता है। भगवान श्री कृष्ण ने कई सारे राक्षसों का सर्वनाश किया जो अपनी कला विवेक का प्रयोग करते हुए ही किया था.
कर्मण्यता
जिस प्रकार उत्कर्षिणी कला युक्त व्यक्ति दूसरों को अकर्मण्यता से कर्मण्यता के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है व लोगों को लक्ष्य प्राप्ति के लिये कर्म करने के लिये प्रेरित करता है वहीं इस गुण वाला व्यक्ति सिर्फ उपदेश देने में ही नहीं बल्कि स्वयं भी कर्मठ होता है। ऐसा ही चरित्र श्री श्यामसुंदर का है जो सभी गुणों में परिपूर्ण होने के बाद ही अपने भक्तों को मार्ग दिखाते है।
योगशक्ति
योग भी एक कला है। योग का साधारण शब्दों में अर्थ है जोड़ना यहां पर इसका आध्यात्मिक अर्थ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने के लिये भी है। श्री कृष्ण भगवान योग कलाओं से परिपूर्ण है और अपने भक्तों पर कृपा करके उन्हें योग कला भी देते हैं। इस कला के कारण वह योगेश्वर कहलाते हैं
विनय
इसका अभिप्राय है विनयशीलता यानी जिसे अहं का भाव छूता भी न हो। जिसके पास चाहे कितना ही ज्ञान हो, चाहे वह कितना भी धनवान हो, बलवान हो मगर अहंकार उसके पास न फटके। भगवान कृष्ण संपूर्ण जगत के स्वामी हैं। संपूर्ण सृष्टि का संचलन इनके हाथों में है फिर भी इनमें कर्ता का अहंकार नहीं है।
सत्य धारणा
विरले ही होते हैं जो सत्य का मार्ग अपनाते हैं और किसी भी प्रकार की कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सत्य का दामन नहीं छोड़ते। इस कला से संपन्न व्यक्तियों को सत्यवादी कहा जाता है। श्री कृष्ण धर्म की रक्षा के लिए सत्य को परिभाषित करना भी जानते हैं यह कला सिर्फ उनमें ही थी।
आधिपत्य
आधिपत्य का तात्पर्य ऐसा गुण है जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व ही ऐसा प्रभावशाली होता है कि लोग स्वयं उसका आधिपत्य स्वीकार कर लें, क्योंकि उन्हें उसके आधिपत्य में सरंक्षण का आभास व सुरक्षा का विश्वास होता है। कृष्ण ने अपने जीवन में कई बार इस कला का भी प्रयोग किया जिसका एक उदाहरण है मथुरा निवासियों को द्वारिका नगरी में बसने के लिए तैयार करना।
अनुग्रह क्षमता
जिसमें अनुग्रह की क्षमता होती है वह हमेशा दूसरों के कल्याण में लगा रहता है, परोपकार के कार्यों को करता रहता है। उनके पास जो भी सहायता के लिये पंहुचता वह अपने सामर्थ्यानुसार उक्त व्यक्ति की सहायता भी करते हैं। भगवान कृष्ण कभी भक्तों से कुछ पाने की उम्मीद नहीं रखते हैं लेकिन जो भी इनके पास इनका बनाकर आ जाता है उसकी हर मनोकामना पूरी करते हैं।