नवरात्रि के 6वें दिन आदिशक्ति श्री दुर्गा के छठे स्वरूप कात्यायनी की अराधना होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, आदिशक्ति ने महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके यहां जन्म लिया था इसलिए उन्हें कात्यायनी कहा जाता है। सच्चे मन से माता की आरधना करने पर रोग-दोष, शोक, संताप, डर आदि सबकुछ समाप्त हो जाता है।
मां कात्यायनी की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, महर्षि कात्यायन ने कठिन तपस्या कर माता दुर्गा से उनके घर पुत्रि रूप में जन्म लेने की इच्छा जाहिर की। मां ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और जब महिषासुर राक्षस का आतंक बढ़ गया तब त्रिदेव के अंश से देवी ने महर्षि के घर जन्म लिया और राक्षस का अंत किया। महर्षि कात्यायन ने भी देवी की पूजा की और इसलिए वह देवी कात्यायनी कहलाईं। दिव्य स्वरूप वाली मां कात्यायनी का वर्ण सोने की तरह चमकीला है। सिंह पर सवार मां कात्यायनी के दाहिना हाथ में अभय मुद्रा और नीचले दाहिने हाथ वरदमुद्रा में है। वहीं, ऊपर वाले बांए हाथ में तलवार और नीचले हाथ में कमल का फूल पकड़ा हुआ है।
मां कात्यायनी की पूजा विधि
सबसे पहले देवी की प्रतिमा को स्थापित करें और फिर मां कात्यायनी की पूजा करें। पूजा की विधि शुरू करने पर हाथों में फूल लेकर मंत्र का जाप करते हुए प्रणाम करें। देवी की पूजा के बाद महादेव और उनके परम पिता की पूजा जरूर करें।
कैसे करें मां को प्रसन्न
योगसाधना में आज्ञाचक्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है मां के चरणों में अर्पित करने के साथ सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। देवी मां को लाल रंग बहुत पसंद है इसलिए उन्हें इसी रंग के फूल चढ़ाए। साथ ही पांचवे दिन लाल रंग के कपड़े ही पहनें। मां कात्यायनी को शहद चढ़ाया जाता है। इससे उपवासक की आकर्षण शक्ति बढ़ती है।
मां कात्यायनी का ध्यान मत्र
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
मां कात्यायनी का स्तोत्र पाठ
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥