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भारत की पहली महिला वकील की कहानी: जिन्होंने सहे कई अत्याचार, झेली पर्दा प्रथा लेकिन रूकी नहीं

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 25 Jan, 2021 05:37 PM
भारत की पहली महिला वकील की कहानी: जिन्होंने सहे कई अत्याचार, झेली पर्दा प्रथा लेकिन रूकी नहीं

आज का जमाना तो काफी बदल गया है। लोग अपनी बेटियों को आगे लाने के लिए और उनके अच्छे भविष्य के लिए उन्हें पूरा सपोर्ट करते हैं। लेकिन पुराने समय में एक लड़की के लिए खुद के पैरों पर खड़े होने इतना आसान नहीं था। एक तरफ तो उन्हें परिवार वालों की बातें सुननी पड़ती थी तो वहीं दूसरी ओर समाज के कईं रीति रिवाज भी अपनाने पड़ते थे। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला के बारे में बता रहे हैं जो है भारत की पहिली महिला वकील लेकिन उनके लिए इस मुक्काम को पाना आसान नहीं था। 

कोर्नेलिया सोराबजी थी भारत की पहली महिला वकील 

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हम जिस जाबाज महिला की बात कर रहे हैं उनका नाम है कोर्नेलिया सोराबजी। वो महिला जिस ने देश का नाम तो रोशन किया ही लेकिन इसके लिए उन्हें कईं समस्याएं भी देखनी पड़ी। पर्दा प्रथा से लेकर मर्दों के अत्याचारों तक सब कुछ सहन करना पड़ा। खुद का तो नाम रोशन किया ही साथ ही बाकी महिलाओं की भी जिंदगी बचाई। 

औरतों को दिलाया इंसाफ 

कहते हैं न कि जिंदगी में अगर आप कुछ पाने की चाह रखते हो तो इसके लिए आपको कईं कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और फिर जाकर आपको सफलता मिलती है और ऐसा ही कुछ हुआ था कोर्नेलिया सोराबजी के साथ। जिन्होंने न सिर्फ खुद के लिए बल्कि तमाम महिलाओं के लिए लड़ाई लड़ी। इस काम के लिए उन्हें कोई सरकारी मदद भी नहीं मिली और उन्होंने अकेले ही इस लड़ाई को लड़ा और अपनी जान तक को जोखिम में डाला। तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कौन है कोर्नेलिया सोराबजी। 

बॉम्बे यूनिवर्सिटी में दाखिला पाने वाली पहली महिला बनीं 

कोर्नेलिया का जन्म नाशिक में हुआ था। बचपन में ही कोर्नेलिया पढ़ाई में सबसे आगे थी। कोर्नेलिया के माता पिता तो पारसी थे लेकिन बाद में उन्होंने ईसाई धर्म को ग्रहण कर लिया। उस समय ब्रिटिश राज हुआ करता था। इतना ही नहीं कोर्नेलिया बॉम्बे  यूनिवर्सिटी में दाख़िला पाने वाली पहली महिला थीं। 

मर्दों के साथ बैठकर परीक्षा देने की नहीं दी गई इजाजत लेकिन वह लड़ी 

कोर्नेलिया ने ब्रिटेन में अपनी आगे की पढ़ाई की और वह पहली महिला थीं जिन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में कानून की पढ़ाई की। लेकिन समस्या इस बात पर आई कि उन्हें  अंतिम परीक्षा में मर्दों के साथ बैठकर परीक्षा देने की इजाज़त नहीं दी गई लेकिन वह रूकी नहीं और इसके खिलाफ अपील की। लड़ाई की और आखिरकार यूनिवर्सिटी ने अपने नियमों में बदलाव  किया और उन्हें परीक्षा देने की इजाजत दे दी गई।  इसी तरह वह पहली महिला बनीं जिसे ब्रिटेन में बैचलर ऑफ़ सिविल लॉ परीक्षा में बैठने की अनुमति मिली। 

ब्रिटेन के बाद भारत में आकर हुई परेशानियां 

एक समय ऐसा था जब महिलाओं को पर्दे में रखा जाता था। उन्हें कहीं आने जाने की इजाजत नहीं हुआ करती थी। आज तो महिलाएं पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही लेकिन एक समय ऐसा था कि उन्हें लड़कों से बात तक करने की इजाजत नहीं थी और ऐसा ही कुछ देखा कोर्नेलिया ने। ब्रिटेन से वापिस भारत आने के बाद वह  बैरिस्टर के तौर पर काम करके अपना जीवन चलाना चाहती थीं लेकिन उस समय भारत और ब्रिटेन में महिलाओं को वकील के तौर काम करने और प्रैक्टिस करने का अधिकार नहीं था। 

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औरतों के साथ होते थे जुल्म 

कोर्नेलिया जब भारत वापिस लौंटी तो उन्होंने देखा कि महिलाओं के साथ यहां काफी अत्याचार होते हैं। उन्हें अपने लिए कुछ बोलने का अधिकार नहीं है और उन्हें परिवार वालों की हुकूमत में ही रहना पड़ता है। उस समय में तो महिलाओं को संपत्ति में भी अधिकार नहीं दिया जाता था। अगर कोई महिला आवाज उठाए भी तो उसे मार दिया जाता था। 

कोर्नेलिया ने इन महिलाओं की मदद करने के लिए ठानी 

महिलाओं पर लगातार बढ़ रहे अत्याचारों को देखते हुए कोर्नेलिया ने इन महिलाओं की मदद करने के लिए ठानी। इतना ही नहीं कोर्नेलिया ने  सरकार से अपील तक भी की कि वह हिंदू और मुस्लिम समुदाय की औरतों पर हो रहे लगातार ज़ुल्म को रोकने के लिए और जिंदगी में उन्हें इंसाफ दिलाने के लिए उन्हें सरकार का कानूनी सलाहकार बनाया जाए। लेकिन इस कदम पर को उठाने के बावजूद कोर्नेलिया को सफलता नहीं मिली। 

वकील के साथ-साथ जासूस की भूमिका भी निभाई 

जब किसी भी ओर से मदद नहीं मिली तो कोर्नेलिया ने अकेले ही इन महिलाओं को इंसाफ दिलाने की सोची। उन्होंने वकील के साथ-साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता की भूमिका भी निभाई और 600 से ज्यादा महिलाओं को इंसाफ दिलाया और उनका हक दिलाया। इसके लिए उन्होंने समय-समय पर एक जासूस की भी भूमिका निभाई। वह ऐसे परिवारों में शामिल हो जाती और उन मासूम महिलाओं से दोस्ती करती और उनके हालातों के बारे में सब कुछ पता करवाती और फिर उन्हें पुलिस अधिकारियों से मदद दिलवाती थी। 

जब बचाई महिला की जान 

कोर्नेलिया हमेशा से महिलाओं के लिए लड़कियों के लिए कुछ न कुछ करना चाहती थी। उन्होंने एक महिला की जान तक भी बचाई। दरअसल कोर्नेलिया का दिमाग तो पहले से ही तेज था और वह कोई भी गड़बड़ी को आसानी से पकड़ लेती थी और एक बार ऐसा ही हुआ। दरअसल एक बार कोर्नेलिया एक महिला की क़ानूनी मदद कर रही थीं। उस महिला को उसके ससुराल वालों ने गुज़ारा भत्ता देने से इनकार कर दिया था लेकिन उस महिला के लिए कोर्नेलिया  आगे आईं। कोर्नेलिया के प्रयासों से ही लड़की के ससुराल वाले महिला से मिलने के लिए तैयार हुए। उन्होंने महिला के लिए एक पोशाक भी तैयार करवाई थी और परिवार वालों ने ऐसा दिखाया कि उनका मन बदल गया है लेकिन कोर्नेलिया को कुछ ठीक नहीं लगा। और आखिरकार वहीं हुआ जिसे कोर्नेलिया को शक था। कोर्नेलिया ने जब पोशाक की जांच करवाई तो पता चला कि पूरी पोशाक में ज़हर रगड़ दिया गया है। 

जब एक शाही परिवार ने की मारने की कोशिश 

कोर्नेलिया का एक ही मकसद था कि वह महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों को रोके। लेकिन उस समय पुरूष महिलाओं को अपने कदमों के नीचे रखना चाहते थे लेकिन कोर्नेलिया ने हमेशा उनके हक के लिए आवाज उठाई जिसके बाद कईं रियासते उनके खिलाफ हो गई थीं। इसी लिए सभी उनकी जान के जोखिम हो गए थे और एक बार तो कोर्नेलिया एक शाही परिवार में मेहमान के तौर पर गई जहां उनके कमरे में सुबह का नाश्ता भिजवाया लेकिन कोर्नेलिया को उस नाश्ते से कुछ गड़बड़ लगी और उन्होंने वो खाना नहीं खाया। बाद में जब उसकी जांच करवाई तो पता चला कि उसमें जहर मिला था।

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ऐसे बनीं वकील 

कड़े और लगातार संघर्ष के बाद आखिरकार साल 1919 में ब्रिटेन ने कानून में बदलाव किया और महिलाओं को भी कानून के क्षेत्र में आने की इजाजत दे दी। इस इजाजत के बाद महिलाओं के लिए वकील और जज बनने का रास्ता भी साफ हो गया था। नियमों में बदलाव हुए तो कोर्नेलिया के लिए भी रास्ता साफ हुआ और इस तरह वह भारत की पहली महिला वकील बनीं। 

वकील बनने के बाद भी समस्या नहीं हुई खत्म 

कोर्नेलिया की परेशानी वकील बनने के बाद भी खत्म नहीं हुई। चाहे कोर्नेलिया ने महिलाओं के हक के लिए लड़ाई की लेकिन वकील बनने के बाद भी उनकी राह आसान नहीं थी। उस समय महिलाओं को कहां सम्मान दिया जाता था और कुच ऐसा ही हुआ था कोर्नेलिया के साथ क्योंकि एक महिला होने के नाते जज उनके बात को दलीलों को नहीं सुनते थे। एक बार तो जज ने यह भी कह दिया था कि उन्हें अग्रेंजी बोलने के सिवाए और कुछ नहीं आता है। 

88 साल की उम्र में हुआ निधन 

अपनी जिंदगी में कोर्नेलिया ने महिलाओं के लिए कड़ी मेहनत की। उन्हें वकालत के क्षेत्र में परवेश करवाया जिसके कारण महिलाओं वकालत की लाइन में आ सकी। आपको बता दें कि कोर्नेलिया ने वकालत से रिटायरमेंट ले ली और फिर वह लंदन जाकर बस गई इसके बाद  88 साल की उम्र में वहीं उनका निधन हो गया। 

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