अमृता शेरगिल का नाम आते ही देश गर्व महसूस करने लगता हैं, उन्हें देश की सबसे फेमस चित्रकार के रूप में जाना जाता है। उनकी बनाई हुई पेटिंग्स देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पसंद की जाती हैं। हाल ही मां मुबंई में आयोजित एक नीलामी में उनके द्वारा बनाई हुई एक पेटिंग पर 18.69 करोड़ रुपये की बोली लगी। उनकी चित्रकारी में भारतीय संस्कृति और आत्मा की झलक साफ देखी जा सकती है।
अमृता शेरगिल का जन्म भारत नहीं बल्कि हंगरी में हुआ। 30 जनवरी, 1913 को हंगरी में जन्मीं अमृता के पिता उमराव सिंह शेरगिल मजीठिया संस्कृत और पारसी के विद्वान थे। उनकी मां का नाम मेरी अन्तोनेट्टे गोट्समान था जो हंगरी की यहूदी ओपेरा गयिका थीं।
बचपन से ही था चित्रकारी का शौक
अमृता शेरगिल का बचपन बुडापोस्ट में बिता लेकिन साल 1921 में उनका परिवार शिमला आ कर रहने लगा। उसे बचपन से ही चित्रकारी का शौक था, आठ साल की उम्र में वह इसका प्रशिक्षण लेने लगी। इसी दौरान वह 1923 में इटली के एक मूर्तिकार के संपर्क में आर्इं वह उस दौरान शिमला में ही थे और 1924 में वे उनके साथ इटली चली गर्इं।
सबसे महंगी पेंटर
‘विलेज सीन’ अमृता की सबसे महंगी पेटिंग थी जो 2006 में 6.9 करोड़ रुपय में नीलाम हुई थी। जो भारत में उस समय की सबसे महंगी पेंटिंग थी।
भारत से था लगाव
अमृता को भारत के साथ पूरी तरह से लगाव हो चुका था। इटली में कुछ समय बिताने के बाद जब वह भारत लौटी तो यहां की कला सीखनी शुरू की। इसके बाद 16 साल की उम्र में अपनी कला को और भी ज्यादा निखारने के लिए वह परिवार के साथ पेरिस चली गई।
यूरोप में मिला अवॉर्ड
यूरोप में 6 साल रहने के दौरान साल 1930 में उन्हें ‘पोट्रेट ऑफ ए यंग मैन’ के लिए एकोल अवॉर्ड मिला। इसके बाद 1933 में उन्हें ‘एसोसिएट ऑफ ग्रैंड सैलून’ भी चुना गया। वह पहली ऐसी एशियाई महिला थी जिन्होंने इतनी कम उम्र में यह सफलता हासिल की थी।
भारत वापिस आकर शुरू किया पेटिंग का नया दौर
यूरोप के बाद दोबारा 1934 में भारत वापिस आकर उन्होंने परंपरागत कला को खोजना शुरू कर दिया। चित्रकारी में यह उनका दूसरा दौर था। अपनी कलाकृति के जरिए उन्होंने आम आम-जनजीवन के रंगों को जीवंत किया।
अमृता शेरगिल की कुछ कलाकृतियां
अमृता पहली ऐसा कलाकार हैं जिन्हें क्लासिकल इंडियन आर्ट को मॉर्डन इंडियन आर्ट की दिशा देने का श्रेय दिया जाता है। 1937 में लाहौर में हुई प्रदर्शनी में 33 कलाकृतियां सम्मिलित हुईं। ‘द ब्राईड्स टॉयलट (दुल्हन का श्रृंगार कक्ष),’ ‘ब्रह्मचारी’, ‘विलेजर्स इन विंटर (जाड़ों में गांववाले),’ ‘मदर इंडिया (भारत माता)’ जैसी पेंटिंग इस प्रदर्शनी में शामिल थीं।
अमृता को छोटी उम्र में ही प्रसिद्घि मिल गई थी लेकिन उन्होंने 28 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया। गंभीर रूप से बीमार पड़ जाने के बाद उन्हें बचाया नहीं जा सका और 5 दिसंबर 1941 को उन्होंने इस दुनिया से विदा ली।