भारतीय मूल की अमिका जार्ज को ब्रिटिश सरकार ने ‘फ्री पीरियड प्रोडक्ट’ के लिए MBE (मेंबर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर) पदक से सम्मानित किया है। जो कि शिक्षा सूची में तीसरा सबसे बड़ा पुरस्कार है।
अमिका जॉर्ज को क्वीन्स बर्थडे ऑनर्स के लिए भी सिलेक्ट किया गया
अमिका जॉर्ज को इस साल क्वीन्स बर्थडे ऑनर्स के लिए भी सिलेक्ट किया गया है। वो इसे पाने वाली सबसे कम उम्र की लड़की हैं। उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों में मुफ्त में पीरियड से जुड़ी चीजें लड़कियों को देने के लिए यूके सरकार से मांग की।
यह मेरे लिए आसान नहीं था- अमिका
अमिका कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हिस्ट्री की स्टूडेंट हैं। उनके माता-पिता भारत में केरल से हैं। अमिका ने बताया कि ऑनर्स सिस्टम के (ब्रिटिश) साम्राज्य और हमारे औपनिवेशिक अतीत से जुड़ाव के साथ यह मेरे लिए आसान नहीं था।
राजनीतिक क्षेत्रों में अक्सर हमारी अनदेखी की जाती है-
अमिका ने आगे कहा कि मेरे लिए ये दिखाना वास्तव में महत्वपूर्ण है कि युवाओं की आवाज में शक्ति है, जितना हम महसूस करते हैं उससे कहीं अधिक। उनका कहना है कि राजनीतिक क्षेत्रों में अक्सर हमारी अनदेखी की जाती है, और एमबीई से पता चलता है कि हमें धीरे-धीरे वास्तविक बदलाव करने को लेकर पहचाना जा रहा है जो सरकार को प्रभावित कर सकते हैं।
...तो हम कुछ बेहतर बना सकते हैं-
अमिका का कहना है कि वो बदलाव वेस्टमिंस्टर, या व्हाइट हाउस, या भारतीय संसद की दीवारों के भीतर से नहीं किया जाना है, कोई भी बदलाव की योजना बना सकता है। मैं चाहती हूं कि युवा देखें कि हमें पहचाना जा रहा है, और अगर हम ऐसी चीजों से सामना करने के लिए तैयार हैं, तो हम कुछ बेहतर बना सकते हैं।
कैसे शुरू किया ‘फ्री पीरियड प्रोडक्ट’ कैंपेन?
अमिका जॉर्ज ने 17 साल की उम्र में ‘फ्री पीरियड प्रोडक्ट’ कैंपेन की शुरूआत की। वह इस बात से काफी परेशान हुई थी कि यूके में ऐसी लड़कियां थीं जो हर महीने स्कूल से गायब थीं क्योंकि वो इतनी गरीब थीं कि वे मासिक धर्म के उत्पादों का खर्च नहीं उठा सकती थीं।
‘फ्री पीरियड प्रोडक्ट’ कैंपेन के लिए ऐसे जुटाया फंड-
इसके लिए अमिका ने एक याचिका दायर की थी और मंत्रियों के साथ बैठक भी की थी, उनके इन्हीं सब प्रयासों के बाद यूके सरकार ने 2020 में शैक्षणिक संस्थानों को मुफ्त में पीरियड से जुड़े तमाम तरह की चीजों को लेकर फंड दिया।
कभी भी मेरा परिवार ब्रिटिश कल्चर में फिट नहीं हुआ-
अमिका का कहना है कि मेरे परिवार और समुदाय की ओर से मैं ये पुरस्कार स्वीकार करती हूं, जिन्हें दशकों से चुपचाप नस्लवाद को सहन करना पड़ा है, जिन्होंने महसूस किया कि वे कभी भी इस ब्रिटिश कल्चर में फिट नहीं हुए। अमिका और उनके भाई का जन्म और पालन-पोषण यूके में हुआ था, उनके पिता किशोर पठानमथिट्टा से और मां निशा कोझेनचेरी से हैं।
अमिका की मां निशा का कहना है कि हम वाकई खुश हैं कि हमने अमिका को पिछले चार वर्षों में शिक्षाविदों और उसके अभियान के बीच कड़ी मेहनत करते हुए देखा है। वह एक लक्ष्य हासिल करना चाहती थी, और हमें खुशी है कि उसे इस तरह से पहचाना गया है।
वहीं अमिका जॉर्ज कहती हैं कि आज मैं एक युवा ब्रिटिश भारतीय होने पर बहुत गर्वित महसूस करती हूं।
आपकों बतां दें कि इस साल 1,129 लोगों को 'ऑर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर अवार्ड' के लिए नॉमिनेट किया गया था, जिनमें से 50 प्रतिशत महिलाएं हैं, और 15 प्रतिशत जातीय अल्पसंख्यक हैं।