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फौलादी इरादे! मिलिए एसिड अटैक सर्वाइवर प्रज्ञा से जो आज कर रही सैकड़ों महिलाओं की मदद

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 09 Mar, 2021 02:21 PM
फौलादी इरादे! मिलिए एसिड अटैक सर्वाइवर प्रज्ञा से जो आज कर रही सैकड़ों महिलाओं की मदद

' रोककर देख लिया तुमने, वार कर के भी देख लिया तुमने...लेकिन मैं वो हिम्मत की आग हूं जो हारने के लिए हराने के लिए बनी हूं'

ये पक्तियां एसिड अटैक सर्वाइवर प्रज्ञा सिंह पर बिल्कुल सही बैठती हैं। वो प्रज्ञा जिसने शायद यह कभी नहीं सोचा था कि एक दिन उसकी जिंदगी में ऐसा आएगा कि उसे दिन रात दर्द और पीड़ा में गुजारने पड़ेंगे। प्रज्ञा ने दिन रात वो दुख सहा लेकिन उसी दर्द ने उसे और मजबूत बनाया यही कारण है कि आज प्रज्ञा न सिर्फ खुद के लिए बल्कि उन सभी एसिड सर्वाइवर्स के लिए खड़ी हुई है जो जिंदगी में हार मान चुके हैं। तो चलिए आपको प्रज्ञा की कहानी से रूबरू करवाते हैं। 

2006 का वो दिन जब बदली प्रज्ञा की जिंदगी 

प्रज्ञा पर साल 2006 में एसिड अटैक हुआ था। तब ट्रेन से सफर कर रही थी और रात के 2 बजे एक व्यक्ति ने उन पर एसिड अटैक किया। इसका कारण था पुरानी रंजिश और इंकार को बर्दाशत न कर पाना। प्रज्ञा की मानें तो वो व्यक्ति उनसे शादी करना चाहता था लेकिन उन्होंने उसका प्रपोजल ठुकरा दिया था जिसके बाद उसने गुस्से में यह हरकत की। यह घटना तब की है जब प्रज्ञा की शादी को 12 दिन ही हुए थे। 

चेहरे से निकलता रहा धुआं

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प्रज्ञा की मानें तो वो समय उनके लिए काफी मुश्किल था क्योंकि उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि आखिर करना क्या है। उन्होंने तब स्किन को जलते हुए और उससे धुआं निकलते हुए खुद देखा। वो दर्द वो पीड़ा उनसे सही नहीं जा रही थी। 

हुई 15 से ज्यादा सर्जरी

इस घटना के बाद प्रज्ञा को फोरन ही अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब वह इतने दर्द में थी कि इस उनके पास इस पीड़ा को सहन करना भी मुश्किल हो रहा था। वह जलती हुई स्किन की बदबू साफ सूंघ सकती थी। इसके बाद प्रज्ञा को अस्पताल ले जाया गया जहां 15 से ज्यादा बार उनकी सर्जरी हुई लेकिन जिंदगी के इस पड़ाव में भी उनके पति और उनकी फेमिली ने उनको पूरा सपोर्ट किया और उनकी हिम्मत बनकर उनके साथ खड़े हुए। प्रज्ञा इलाज के दौरान रिकवर तो हो रही थी लेकिन इलाज के दौरान प्रज्ञा अपनी एक आँख की रोशनी खो रहीं थीं, जिसके बाद उन्हे आगे के इलाज के लिए चेन्नई ले जाया गया। 

शुरू किया अतिजीवन फाउंडेशन 

प्रज्ञा जल्दी जल्दी रिकवर हो रही थी लेकिन इलाज के दौरान उन्होंने अपने आस-पास भी कईं ऐसे मरीज देखें जो इसी परेशानी से गुजर रहे थे। उन्हें देख प्रज्ञा के मन में फिर से पीड़ा उठी वह उन्हें इस तरह नहीं देख सकती थी क्योंकि बहुत सारी महिलाएं उनमें से डिप्रेशन का शिकार हो चुकी थीं। ऐसे में डॉक्टर्स भी प्रज्ञा के टच में थे। इसी दौरान 2013 में प्रज्ञा ने एक फाउंडेशन खोलने की सोची। इस फाउंडेशन का नाम प्रज्ञा ने अतिजीवन फाउंडेशन रखा। 

महिलाओं की मदद करने के लिए खोला फाउंडेशन 

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प्रज्ञा का इस फाउंडेशन को खोलने का एक ही मकसद था कि वह उन महिलाओं की मदद कर सकें उनके लिए कुछ कर सके। इतना ही नहीं यह फाउंडेशन बहुत तरीकों से उन महिलाओं की मदद कर रहा है जो इस पड़ाव से गुजर रही हैं। 

ऐसे काम करता है फाउंडेशन 

आपको बता दें कि यह फाउंडेशन वर्कशॉप का आयोजन करता है। महिलाओं को गाइड किया जाता है उनका साहस बढ़ाया जाता है और साथ ही उन्हें हर मदद भी उपलब्ध करवाई जाई है। उन्हें जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। महिलाएं करियर में आगे बढ़ सकें और जीवन में सफलता पा सके इसके लिए यह फाउंडेशन उन्हें कईं तरह की स्किल्स की ट्रेनिंग भी देता है जो उनके लिए काफी कारगर होती हैं। बता दें कि यह फाउंडेशन के साथ देश के कई बड़े शहरों जैसे दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, बैंगलोर, पटना, लखनऊ और वाराणसी जैसे शहरों काम कर रहा है।

स्किन डोनेशन को देना चाहती हैं बढ़ावा 

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लोग अगर किसी की मदद करने के लिए आगे आएं तो वह कभी पीछे नहीं हटते हैं और वह जैसे अंग डोनेट करते हैं वैसे ही प्रज्ञा यह चाहती है कि स्किन डोनशन का प्रचलन भी आगे बढ़े ताकि इससे उन एसिड अटैक सर्वाइवर्स के लिए काफी मददगार हो सकता है। 

लोग देखकर पूछते हैं अजीबो-गरीब सवाल 

अकसर लोग जब भी किसी एसिड अटैक सर्वाइवर को देखते हैं तो उनके मन में बहुत सारे सवाल आते हैं कि इसके साथ ऐसा क्यों हुआ? कईं बार तो लोग चेहरे पर ही कईं तरह के सवाल उठाते हैं और उन्हें ऐसा महसूस करवाते हैं कि वह अब आम नहीं है। ऐसा ही कुछ हुआ था प्रज्ञा के साथ। आज भी उनकी बेटियों को लोग या फिर स्कूल वाले अजीबोगरीब सवाल पूछते हैं लेकिन सच में प्रज्ञा आज किसी मिसाल से कम नहीं है। 

मिल चुका है नारी शक्ति पुरस्कार 

प्रज्ञा के काम के लिए उन्हें 2019 में राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के हाथों नारी शक्ति पुरस्कार भी मिल चुका है। वाकई हम भी प्रज्ञा के इस साहस को सलाम करते हैं। 

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