सोशल मीडिया में इन दिनों कुछ तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमें एक लड़की 2 रुपों में दिखाई दे रही हैं जिसकी आधी साइड एक स्कूल गर्ल की है तो दूसरी एक मासूम दुल्हन की वैसे तो यह तस्वीर अपने आप में बहुत से शब्द बयां कर रही हैं लेकिन फिर भी इसके बारे में हम आपको डिटेलिंग में बताते हैं दरअसल इन तस्वीरों के जरिए लड़कियां बाल विवाह यानि छोटी उम्र में ही शादी के बंधन में बांधने के खिलाफ आवाज उठा रही हैं क्योंकि जिस उम्र में उसके पढ़ने व खेलने की उम्र होती हैं उस उम्र में उसके कमजोर कंधों पर परिवार की भारी जिम्मेदारियों का बोझ लाद दिया जाता है जो कि कानूनी जुर्म भी है।
बाल विवाह-बच्चियों के लिए मानसिक-शारीरिक यातना
बाल विवाह से जहां बच्चों के मानसिक विकास पर असर पड़ता हैं वही दूसरी ओर उऩ्हें कई शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं खासकर लड़कियों को। लड़कियां उम्र से पहले ही प्रेग्नेंट हो जाती है जिससे बाद उन्हें कई शारीरिक समस्याएं झेलनी पड़ती है। खुद बच्ची होकर बच्चे को संभालना उनके लिए बेहद मुश्किल होता है। यही नहीं, छोटी उम्र में प्रेग्नेंट होना उनकी जान भी ले सकता है। वही छोटी उम्र में शादी करते वक्त बच्चे को समझ नहीं होती जिसकी वजह से उन्हें आगे चलकर काफी परेशानियां आती है।
समय बदलने के साथ-साथ कुछ जगहों पर बाल विवाह पर रोक लग गई हैं हालांकि कई जगहें एेसी भी हैं जहां आज भी छोटी उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है।
क्या कहता है कानून?
- 1978 में संसद ने बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 पारित किया। इसमें विवाह की आयु लड़कियों के लिए न्यूनतम 18 साल और लड़कों के लिए 21 साल तय की गई। इससे कम उम्र में शादी करना अपराध है।
- बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 में बाल विवाह के आयोजकों व इसमें शामिल होने वालों पर एक लाख रुपए जुर्माना या 2 साल की जेल अथवा दोनों का प्रावधान है।
- अनिवार्य विवाह पंजीयन अधिनियम, 2006 के तहत विवाह का रजिस्टेशन अनिवार्य है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बाल विवाह कराने वाले माता-पिता, भाई-बहन, परिवार, बाराती, सेवा देने वाले जैसे टेंट हाउस, प्रिंटर्स, ब्यूटी पॉर्लर, हलवाई, मैरिज गार्डन, घोड़ी वाले, बैंड बाजे वाले, कैटर्स, धर्मगुरु, पंडित, समाज मुखिया आदि पर कार्रवाई हो सकती है।
समय के साथ-साथ अब यह सोच बदल भी रही हैं। कई बच्चियां सामने आई हैं जिन्होंने परिवार-समाज के खिलाफ जाकर बचपन में हुई शादी को ठुकरा दिया। इसी की उदाहरण है अलवर की रहने वाली कविता। कविता की शादी ढाई साल में हुई थी। जब वह बढ़ी हुई तो पता चला कि पति ज्यादा पढ़ा-लिखा नहीं है। तय किया कि बचपन की शादी नहीं मानेगी। उसने विरोध किया तो उसकी पढाई बंद करवा दी गई। घरवालों ने काफी दबाव डाला जिससे वह डिप्रेशन में चली गई लेकिन वह हारी नहीं। उसने आगे की पढ़ाई जारी रखी और कोर्ट जाकर बाल विवाह निरस्त करवा लिया अब वह इंजीरियर बन गई है।
बाल विवाह को खत्म करने के लिए हमें खुद आगे आना होगा। लड़कियों के अपने हक के लिए लड़ना होगा। हर किसी को हर हैं कि वह खुद अपने लिए लाइफपार्टनर चुनें और अपने सपने पूरे करने के बाद शादी करने का फैसला लें।
आपकी इस बारे में क्या सोच हैं इस बारे में हमें कमेंट बॉक्स में बताना ना भूलें।