पीरियड्स एक ऐसा शब्द है जिसे भारत में महिलाएं खुलकर नहीं कह सकतीं। इस शब्द को सुनते हैं लोग असहज हो जाते हैं। जबकि ये एक बहुत ही नॉर्मल शारीरिक प्रकिया है जो महिलाओं की हेल्दी होने की निशानी है। लड़कियों में इसकी शुरुआत अमूमन 12 साल की उम्र से हो जाती है। इसके शुरु होते ही एक लड़की महिला बन जाती है लेकिन यहीं से उन्हें शर्मिंदा करने का सिलसिला भी शुरु हो जाता है।
मां भी करती है दबी जुबान में बात
सबसे पहले तो एक लड़की को शर्मिदा उसके घर पर ही किया जाता है, जब मां दबी जुबान में बेटी को पीरियड्स के बारे में बताते हुए उसे दूसरे कमरे में ले जाकर धीरे से पैड देती है। पुरुषों के सामने तो इसके जिक्र भी पाप है। ऐसे में लड़की के सामने इस तरह का पीरियड्स को लेकर माहौल बनता है कि वो भी सोचती है कि ये सब से छुपा कर रखने की चीज है। दुकान वाले से लेकर सहेली तक से पैड मांगो तो वो इसे अच्छे से पेपर में कवर करके देती है। जबकि ये कोई छिपाने वाली चीज नहीं हैं। पीरियड्स को लेकर महिलाएं में ऐसे व्यवहार के चलते ही उनमें पीरियड्स को लेकर कम जागरुकता है और हमारी दादी-नानी तो इसे गंदा खून मनाती आईं है।
पीरियड्स को लेकर खत्म करें अपना भ्रम
पीरियड्स का खून गंदा नहीं होता और न ही शरीर के किसी भी तरह के टॉक्सिन को बाहर निकालता है। हां, खून में गर्भायाय के टिशू , बलगम की परत और बैक्टीरिया होते हैं, लेकिन ये खून को गंदा नहीं करते। जो लोग इसे गंदा कहते हैं, उन्हें समझना चाहिए कि यह एक शारीरिक प्रक्रिया है, जिसके बारे में बात करने में किसी को शर्म नहीं आनी चाहिए। पीरियड्स के दौरान महिलाएं कहीं भी आ जा सकती हैं। इतना ही नहीं, वे वो सबकुछ कर सकती हैं, जो उन्हें अच्छा लगता है।
पीरियड्स को लेकर अजीब रिवाज
कई घरों में पीरियड्स के दौरान लड़कियों का घर की रसोई में जाना वर्जित हो जाता है और मंदिर में कदम रखना तो पाप के बराबर होता है। वहीं कुछ जगह पर लड़कियों को परिवार वालों से अलग रखा जाता है और बेड तक में सोने में इजाजत नहीं होती है। वहीं महिलाओं को पीरियड्स के दौरान सिर धोने से भी वर्जित किया जाता है कहीं खट्टा खाने से मना किया जाता है, जबकि इन सब चीजों से मना करने के पीछे कोई वाजिव कारण भी नहीं है। ये सब बस इसलिए चल रहा है क्योंकि हमारे पूर्वज ऐसा करने को बोल गए हैं।
बदलो अपनी सोच
अगर आप आज के जमाने की पढ़ी-लिखी महिला है कि तो लोगों के फैलाई अफवाह पर तब तक याकिन ना करें जब तक उसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण न हो और न ही पीरियड्स को लेकर दबी जुबान में बात करने को बढ़ावा देना चहिए। क्योंकि पीरियड्स को लेकर जागरुकता तब ही होगी और हिचक तब ही खुलेगी जब आप बात करने की शुरुआत करेंगी।