'देखो कैसे दांत दिखा रही है...लड़की के ढंग सही नहीं लग रहे, '', इसे तो लगता है शादी की बहुत जल्दी थी', 'विदाई में एक भी आंसू नहीं बहाया इसने '..,ये कुछ ऐसी टिप्पणीयां हैं जो शादी में दुल्हन के बारे में सुनने को मिल जाती हैं। उसकी गलती बस इतनी होती है कि वो अपने शादी के दिन खुश है। अपनी फीलिंग्स को खुलकर बयां कर रही है। अपने आने वाले जिंदगी के इस नए पड़ाव का खुली बांहों से स्वागत कर रही है। और ये सब ऊपर बताई गई टिप्पणियां कोई और नहीं शादी में दुल्हन को आशीर्वाद देने आए लोग और रिश्तेदार ही करते हैं।
मेरा सवाल ये हैं यहां कि हम क्यों Judge करें? हम होते कौन हैं ये सब कहने वाले जब दुल्हन की खुद की जिंदगी है। अगर हम किसी के लिए खुश नहीं हो सकते तो उसे Judge भी ना ही करें तो बेहतर होगा। यदि दुल्हन को शादी में चुपचाप से सिर नीचे करके, घूंघट से चेहरा ढककर, बिदाई में आंस की गंगा बहाकर दिखाना चाहिए तो ये सारे रूल्स दूल्हे के लिए क्यों नहीं हैं।
दूल्हे को अपनी शादी में खुलकर झूमने, हंसने यहां तक कि दारु पीने का भी हक है तो आखिर एक महिला को क्यों नहीं? उसे क्यों नहीं किया जाता Judge , जब शादी दो लोगों के बीच है।
महिलाओं क्यों नहीं नाच सकती खुद की शादी में
अब बहुत से लोग कहेंगे कि ऐसा तो नहीं है। आजकल महिलाओं को खुलकर शादी में नाचने की आजादी तो है ,लेकिन दुसरों की शादी में। खुद की शादी में उनसे गरिमा दिखाने की उम्मीद की जाती है।डांस करते हुए Entry और पति और बाकी रिश्तेदारों के सामने नाचना कभी तक सिर्फ और सिर्फ अमीरों का ही culture बना हुआ है।
कुड़ी नु नचने दे
महिला को अपनी शादी में अपनी फीलिंग्स का खुलकर इजहार करने का हक है। नाच के, हंस के और अपनी पंसदीदा गानों पर Entry करके। शादी एक बार होती है और उन्हीं पलों को एक महिला को जिंदगीभर के लिए संजो कर रखती है। जरुरी है कि सोसाइटी के तौर पर हम सब अपनी सोच बदले और शादी के दिन उन्हें अपनी मन की कर लेने दें। उन्हें खुलकर जी लेने देने और शुरुआत तब ही होगी जब आप अपनी घर की बेटियों को अपने शादी के अरमान को दिल से पूरा करने देंगे और उन्हें शादी में खुलकर हंसने नाचने के लिए Judge करना बंद कर देंगे।