नारी डेस्क: थायरॉइड की बीमारी आजकल एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या बन गई है, जो लोगों की लाइफस्टाइल और दैनिक दिनचर्या पर गहरा प्रभाव डाल सकती है। थायरॉइड ग्रंथि, जो गर्दन के सामने तितली के आकार में होती है, हमारे शरीर के महत्वपूर्ण हार्मोन का उत्पादन करती है जो कई शारीरिक कार्यों को कंट्रोल करती है। जब यह ग्रंथि सही तरीके से काम नहीं करती, तो इससे थायरॉइड की बीमारी बन जाती है। थायरॉइड के साथ सबसे बड़ी दिक़्क़त ये है कि क़रीब एक तिहाई लोगों को पता ही नहीं होता कि वे इससे पीड़ित हैं। वैसे यह बीमारी महिलाओं में ज़्यादा पाई जाती है। गर्भावस्था और डिलिवरी के पहले तीन महीनों के दौरान, क़रीब 44 फ़ीसदी महिलाओं में थायरॉइड की समस्या पनप जाती है। चलिए जानते हैं इसके कारण, लक्षण और उपचार।
कारण
थायरॉइड की बीमारी एक चिकित्सा स्थिति है जिसमें थायरॉइड ग्रंथि की सामान्य कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। थायरॉइड ग्रंथि, जो गर्दन के सामने तितली के आकार में होती है, हमारे शरीर के महत्वपूर्ण हार्मोन का पैदा करती है। ये हार्मोन शरीर के मेटाबोलिज़्म, एनर्जी लवेल, तापमान नियंत्रण, और दिल की धड़कन को कंट्रोल करते हैं। जब थायरॉइड ग्रंथि उचित मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करती या अत्यधिक हार्मोन का उत्पादन करती है, तो इससे थायरॉइड की बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। थायरॉइड की बीमारियों के दो प्रमुख प्रकार हैं: हाइपोथायरॉइडिज़्म और हाइपरथायरॉइडिज़्म।
आयोडीन की कमी
आयोडीन थायरॉइड हार्मोन के निर्माण के लिए आवश्यक है। यदि शरीर में आयोडीन की कमी होती है, तो थायरॉइड ग्रंथि सही तरीके से हार्मोन का उत्पादन नहीं कर पाती, जिससे हाइपोथायरॉइडिज़्म (थायरॉइड हार्मोन की कमी) हो सकता है।
जन्मजात समस्याए
कुछ लोग जन्मजात थायरॉइड ग्रंथि की समस्याओं के साथ पैदा होते हैं, जिससे उनकी ग्रंथि सामान्य रूप से काम नहीं कर पाती और थायरॉइड हार्मोन का असंतुलन हो सकता है। जैसे अगर किसी महिला को हैं तो हो सकता हैं की उसके बच्चे को भी हो।
लक्षण
1. हाइपोथायरॉइडिज़्म (Hypothyroidism) के लक्षण
हाइपोथायरॉइडिज़्म तब होता है जब थायरॉइड ग्रंथि पर्याप्त मात्रा में हार्मोन का उत्पादन नहीं करती। इसके सामान्य लक्षण। शरीर में ऊर्जा की कमी, लगातार थकावट महसूस करना। बिना किसी विशेष कारण के वजन में वृद्धि। सामान्य तापमान पर भी ठंड लगना। त्वचा का सूखापन, बालों का पतला होना और टूटना। मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी, विशेषकर पैरों और हाथों में। पाचन संबंधी समस्याए और कब्ज की समस्या। मानसिक थकावट, अवसाद या चिंता की समस्याएँ। दिल की धड़कन धीमी हो सकती है और रक्तचाप कम हो सकता है।
2. हाइपरथायरॉइडिज़्म (Hyperthyroidism) के लक्षण
हाइपरथायरॉइडिज़्म तब होता है जब थायरॉइड ग्रंथि अत्यधिक मात्रा में हार्मोन का उत्पादन करती है। इसके सामान्य लक्षण। बिना किसी विशेष प्रयास के अचानक वजन कम होना। हृदय की धड़कन का तेज होना और अनियमित धड़कन महसूस होना। मानसिक अस्थिरता, घबराहट, और चिंता का अनुभव। हाथों और अंगुलियों में कंपन और झटके। अत्यधिक पसीना आना, विशेषकर हाथों और पैरों में। नींद की कमी, अनिद्रा, और रात को जगने की समस्याए। त्वचा का गर्म होना और अत्यधिक पसीना आना। ग्रेव्स रोग के मामलों में आंखें बाहर की ओर उभरी हुई लग सकती हैं (एक्जोफ्थल्मोस)।
थायरॉइड की बीमारी का उपचार
थायरॉइड की बीमारियाँ, चाहे हाइपोथायरॉइडिज़्म (थायरॉइड हार्मोन की कमी) हो या हाइपरथायरॉइडिज़्म (थायरॉइड हार्मोन का अत्यधिक उत्पादन), दोनों ही स्थितियों का उपचार आवश्यक है। उपचार का उद्देश्य थायरॉइड ग्रंथि के हार्मोन उत्पादन को सामान्य करना और संबंधित लक्षणों को प्रबंधित करना होता है।
हॉर्मोन थैरेपी
लेवोथायरोक्सिन (Levothyroxine) यह एक सिंथेटिक थायरॉइड हार्मोन है, जो थायरॉइड हार्मोन की कमी को पूरा करता है। इसे दिन में एक बार खाली पेट लिया जाता है और यह शरीर के प्राकृतिक थायरॉइड हार्मोन की तरह काम करता है।
आहार और जीवनशैली
आयोडीन युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन, जैसे कि समुद्री भोजन, आयोडीन युक्त नमक, आदि, मददगार हो सकता है। विटामिन और मिनरल्स से भरपूर आहार लेना भी महत्वपूर्ण है, जिससे समग्र स्वास्थ्य में सुधार हो सके।
क्या यह समस्या जानलेवा है?
यदि हाइपो-थायरॉइडिज़्म की समय पर पहचान नहीं होती, तो कई बार दिमाग़ में समस्याए पैदा हो सकती हैं। वहीं हाइपर-थायरॉइडिज़्म के चलते धड़कन बढ़ती-घटती है, जिससे दिल की बीमारियां पैदा हो सकती हैं। हाइपो-थायरॉइडिज़्म के मामले में सोडियम का स्तर गिरने से मरीज़ कोमा में जा सकता है। बच्चों के पैदा होने के बाद यदि यह समस्या पहचानी नहीं जाती, तो उनका मानसिक विकास रूक सकता है। उनका आईक्यू लेवल कम हो सकता है। इलाज से यह समस्या आसानी से ठीक हो सकती है, तो इस बीमारी को नज़रअंदाज करना उचित नहीं है। अन्यथा बच्चों का भविष्य ख़तरे में पड़ सकता है। स्कूल जाने वाले बच्चों में ऐसा होने पर उनकी वृद्धि रूक सकती है। यदि थायरॉइड की इन दोनों समस्याओं की समय पर पहचान नहीं होती, तो कभी-कभी वे जानलेवा भी बन सकते हैं।