सिंगल पैरेंटिंग आज के वक्त में बहुत आम बात हो गई है। बहुत से सिंगल पैरेंट्स अपने दम पर अपने बच्चे की परवरिश करते हैं। इस तरह की मॉर्डन पैरेंटिंग में अक्सर वो लोग शामिल होते हैं जो तलाकशुदा होते हैं या फिर लिव इन में होते हैं। वहीं कुछ ऐसे लोग भी सिंगल पैरेंट होते हैं जिन्होनें शादी नहीं की होती और बस बच्चा गोद ले लेते हैं, चाहे परिस्थिति कोई भी हो, सबसे बड़ी चुनौती होती है अकेले अपने बच्चे की अच्छी परवरिश करना।
ये शुरुआत में थोड़ा मुश्किल जरुर हो सकता है लेकिन नामुमकिन नहीं है, जरुरत है बस कुछ बातों का ख्याल रखने की...
बच्चों के साथ फैमिली टाइम का शेड्यूल बनाएं
पैरेंट्स के तलाक के बाद बच्चे बेहतर ढंग से जीवन में समायोजित होने के लिए मदद चाहते हैं। अपने और बच्चों के लिए एक पारिवारिक कार्यक्रम बनाएं। पेरेंटिंग योजना में लगातार समय सीमा निर्धारित करते रहें, ताकि बच्चों को पता चले कि उन्हें आपसे क्या उम्मीद करनी है। वे यह जान लें कि वे जब आपके साथ रहेंगे, तो उन्हें कितना सपोर्ट मिलेगा।
पॉजिटिव रहें
ये बहुत जरूरी है कि आप अपने जीवन में हमेशा पॉजिटिव रहें। एक सिंगल पैरेंट् को सारी जिम्मेदारियां खुद ही संभालनी होती है। इसलिए यह जरूरी है कि नकारात्मकता को आसपास भी न भटकने दें। यह बात आपके लिए तो बेहतर होगी ही साथ ही में यह आपके बच्चे पर भी एक अच्छा प्रभाव डालेगी।
अच्छे व्यवहार के लिए पुरस्कार
नियमों और सीमाओं का एक सेट होने से बच्चों को पता चलता है कि वे आपसे क्या उम्मीद कर सकते हैं। उन्हें क्या करना और क्या नहीं करना चाहिए, यह मालूम होना चाहिए। उनके अच्छे कामों के लिए उन्हें गिफ्ट्स दें। अनुशासन को फॉलो करना बेहद जरूरी है, उन्हें यह बताएं।
अपने लिए एक सपोर्ट सिस्टम बनाएं
सिंगल पेरेंट्स होने के नाते कभी-कभी आपको अलग-थलग और अकेला भी रहना पड़ सकता है। अधिक काम करना भी पड़ सकता है। इसलिए एक सपोर्ट सिस्टम होना जरूरी है, जो आपको तनाव को दूर करने में मदद कर सके और आपके पीछे आपको सहारा दे सके। आप अपने बच्चों के जीवन में खुद को इस हद तक न खो दें कि आपको यह भी याद न रहे कि आप कौन हैं या आप अपनी परवाह नहीं करती हैं।
अपने गुस्से को रखें काबू में
अकेले सारी जिम्मेदारी संभालते वक्त गुस्सा या चिड़चिड़ापन आना लाजमी है लेकिन अपने गुस्से पर काबू रखने की कोशिश करें क्योंकि अगर आप हर बात पर गुस्सा करने लगेंगी तो इससे आपका स्वास्थ्य बिगड़ सकता है। इसके अलावा दूसरों का गुस्सा या फिर अपने काम का गुस्सा अपने बच्चों पर न निकालें। उन्हें डाटने और पीटने की बजाय शांति से बात करें।