दुनिया की खूबसूरत रानियों की बात हो और जयपुर की महारानी गायत्री देवी का नाम ना आए, ऐसा हो नहीं सकता। वह ऐसी रानी थी जो अपनी लाइफ और जीने के खास अंदाज के लिए काफी मशहूर थीं। उनकी खूबसूरती और ड्रेसिंग सेंस के किस्से आज भी बताए जाते हैं। महिलाएं आज भी उनके जैसे शिफॉन की साड़ी पहनना चाहती हैं। राजमाता की तरह शिफॉन साड़ी को एलिगेंट तरीके से वियर करना आज भी महिलाओं को बहुत भाता है। बेल- बॉटम और फ्रेंच शिफॉन की साड़ी को अलग अंदाज में पहनने का फैशन ट्रेंड वही लेकर आई थी। उनके फैशन को उस वक्त हाई सोसाइटी में काफी फॉलो किया गया था। जब वह शिफॉन की साड़ी के साथ पर्ल का नेकलेस पहनकर निकलती थी तो लोग उनकी खूबसूरती निहारते रह जाते थे। चलिए, कुछ उन्हीं किस्सों के बारे में आपको बताते हैं।
राजमाता गायत्री देवी को ज्यादातर पेस्टल शेड्स की शिफॉन साड़ी में देखा जाता था जिसके साथ लॉन्ग स्लीवल्ड ब्लाउज होते थे। बॉब कट हेयरस्टाइल गायत्री देवी को भीड़ में सबसे अलग दिखाता था और यहीं उनका रॉयल लाइफस्टाइल लोगों को बहुत पसंद था।
उन्होंने भारत में अमेरिका की पूर्व प्रथम महिला, जैकलीन कैनेडी ओनासिस का जब स्वागत किया था तो दोनों ही महिलाएं अपने डबल स्ट्रैंड पर्ल नेकलेस के लिए सुर्खियों में छा गई थी। महारानी गायत्री देवी ने शिफॉन की फ्लोरल साड़ी के साथ पर्ल नेकलेस पहना था। बस दुनिया उनकी इसी लुक की मुरीद हो गई थी।
गायत्री देवी की मां इंदिरा देवी, अपनी बेटी की प्रशंसा करती थी कि वह खरीदारी के लिए दुनिया की बेस्ट जगहों के बारे में जानती थी क्योंकि उन्होंने पूरी दुनिया में खरीदारी की थी। वैसेगायत्री देवी की मां महारानी इंदिरा राजे का प्यार, शिफ़ॉन से पेरिस में शुरु हुआ था। कूच बिहार की महारानी इंदिरा देवी पहली महिला थी जिन्होंने शिफॉन फैब्रिक को ट्रडीशनल साड़ी में रुप में ढाला था। बस उसके बाद शिफॉन की साड़ियां पहनना गायत्री देवी का ट्रेडमार्क स्टाइल बन गया था। सैकड़ों साल पुराना फैब्रिक शिफॉन पहले रेशम से निर्मित होता था इसलिए तो इसे लग्जरी में गिना जाता था लेकिन साल 1930 के दशक में शिफॉन बहुत ज्यादा पापुलर हो गया जब सिल्क की जगह इसे नायलॉन से बनाया जाने लगा।
चलिए गायत्री देवी की शुरुआती जिंदगी के बारे में आपको बताते हैं। लंदन में पैदा हुई कूच बिहार की राजकुमारी गायत्री देवी को 'वोग मैगजीन' ने दुनिया की 10 सबसे सुंदर महिलाओं में से एक माना था। वे महाराजा मानसिंह की तीसरी पत्नी थीं। इसलिए उन्हें जयपुर की राजमाता कहा जाता था। गायत्री देवी का जन्म एक 'कूच राजबोंगशी' हिन्दू परिवार में हुआ। उनके पिता राजकुमार जितेंद्र नारायण, बंगाल में कूचबिहार के युवराज के छोटे भाई थे। हालांकि कूच बिहार के राजा की मौत के बाद जितेंद्र राजा बन गए थे। वहीं गायत्री देवी की माता राजकुमारी इंदिरा राजे थीं, जो कूच बिहार की रानी और बड़ौदा के महाराज सयाजीराव की बेटी थीं। जब गायत्री के पिता यानि जितेंद्र नारायण का निधन हुआ तो माता इंदिरा राजे ने ही बच्चों और राजघराने को संभाला था।
गायत्री देवी के बचपन का नाम आयशा था। शांतिनिकेतन में अपनी शुरुआती शिक्षा लेने के बाद वह ग्लेन डोवेर प्रिपरेटरी स्कूल लंदन, विश्व-भारती यूनिवर्सिटी, लॉसेन और स्विट्जरलैंड पढ़ने गई थी। पढ़ाई के साथ, राजकुमारी गायत्री घुड़सवारी और पोलो की बेहतरीन खिलाड़ी थीं।
महज 12 साल की उम्र में उन्हें जयपुर के राजा मानसिंह बहादुर से प्यार हो गया। मानसिंह बहादुर पहले से शादीशुदा थे। उनकी दो शादियां हो चुकीं थीं । महाराजा मानसिंह की पहली शादी 12 साल की उम्र में जोधपुर के महाराजा सुमेर सिंह की बहन मरुधर कंवर से हुई थी और दूसरी शादी किशोर कंवर से हुई। इसके बाद उन्होंने 1940 में गायत्री देवी से शादी की। उन्होंने सवाई मान सिंह की तीसरी पत्नी बनना स्वीकार किया। 21 साल के महाराजा मानसिंह कोलकाता के वुडलैंड्स 1931 का पोलो मैच खेलने गए थे और यहीं पर उनकी मुलाकात गायत्री देवी से हुई थी। उस समय गायत्री देवी की उम्र केवल 12 साल थी। गायत्री देवी को देखते ही उन्हें उनसे प्यार हो गया था। दोनों ने तकरीबन 6 सालों तक चोरी-छिपे एक-दूसरे को डेट किया था। जब धीरे-धीरे लोगों ने उनके बीच पनप रहे प्यार पर ध्यान देना शुरू किया तो, उन्होंने गायत्री देवी की मां को सचेत किया कि गायत्री के लिए महाराजा की तीसरी पत्नी बनना बहुत मुश्किल होने वाला है लेकिन गायत्री ने उनकी तीसरी पत्नी बनना ही स्वीकार किया।
शादी के बाद गायत्री देवी को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था। लूसी मूरे की किताब में गायत्री देवी ने उन दिनों का जिक्र किया है, जब उन्होंने दुल्हन के रूप में पहली बार जयपुर में अपने कदम रखे थे। गायत्री देवी ने कहा था, “जैसे-जैसे हम जयपुर के करीब पहुंच रहे थे, मेरी घबराहट बढ़ती जा रही थी। मैंने बहुत कोशिश की कि मेरी घबराहट सामने न आये, लेकिन शायद जय (महाराजा मानसिंह) समझ गए थे कि मुझे कैसा महसूस हो रहा है। जैसे ही हम स्टेशन पर पहुंचे, कर्मचारियों ने हमारी गाड़ी से पर्दा हटाया और जय ने बड़े ही प्यार से मुझसे अपना चेहरा ढक लेने (घूंघट करने) को कहा” हालांकि गायत्री देवी ने आगे इस रिवाज को नहीं बढ़ाया। उन्होंने साफ-साफ कह दिया था कि वे घूंघट में अपनी पूरी जिंदगी नहीं बिताएंगी।
एक इंटरव्यू में महारानी गायत्री देवी ने बताया था कि, उन्होंने अपने पति से वादा किया था कि यदि वे लड़कियों के लिए स्कूल खोलती हैं, तो सबसे पहले वे पर्दे वाले सिस्टम को हटाएंगी। उन्होंने घूंघट प्रथा को खत्म करने के लिए अपनी पूरी जान लगा दी। इसके बाद महारानी गायत्री देवी ने अपना स्कूल खोला, जहां लड़कियों को बताया गया कि घूंघट करना या पर्दा करना सही नहीं है। राजमाता ने जयपुर में महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूलों जैसे कई स्कूलों की स्थापना की।
आखिरकार, 1970 में इंग्लैंड में पोलो खेलने के दौरान एक दुर्घटनावश महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय की मृत्यु हो गई। गायत्री देवी और सवाई मान सिंह द्वितीय को एक बेटा हुआ था, जिनका नाम उन्होंने जगत सिंह रखा था। जगत सिंह ने थाईलैंड की राजकुमारी प्रियनंदना रंगसित से शादी रचाई थी लेकिन ये रिश्ता ज्यादा लंबा नहीं चल पाया। राजकुमारी प्रियनंदना अपने बेटे देवराज और बेटी लालित्या को लेकर थाईलैंड लौट गईं। जगत सिंह की 1997 में मौत हो गई थी। महारानी गायत्री की मृत्यु 90 साल की उम्र में 29 जुलाई, 2009 को हुई।