आज इंटरनेशनल वूमेन डे के मौके पर हम आज आपको एक ऐसी किसान महिला से रूबरू कराएगे जिसने पति की मौत के बाद ना सिर्फ अपने बच्चों का पालन पोषण किया बल्कि खेती को अपना रोज़गार बनाते हुए जैविक व मॉडल खेती करके कई उपलब्धियां भी हासिल की।
देवास के जिला मुख्यालय से करीब 28 किमी दूर स्थित छोटी चुरलाय गांव की रहने वाली मानकुंवर बाई राजपूत के पति भरत सिंह 25 साल पहले इस दुनिया को अलविदा कह गए और वो अपने पीछे करीब 7 बीघा जमीन छोड़कर गए थे लेकिन सवाल यह था कि खेती करेगा कौन? अकेली महिला और ऊपर से 2 छोटे-छोटे बेटों की परवरिश...
लेकिन कहते है ना कि कोशिश करने वालो की कभी हार नही होती....बस ऐसे ही मानकुंवर बाई ने जो किया वो कोई अजूबा तो नही था,लेकिन अजूबे से कम भी नही था...मानकुंवर बाई ने हल उठाया और शुरू कर दी खेती...उन्होंने कड़ी मेहनत करके ना सिर्फ आधुनिक तरीके से अलग-अलग अनाज के बीज बोये बल्कि जैविक और मॉडल तरीके से खेती करके इतनी उपलब्धियां हासिल की कि देवास जिले में ही नही बल्कि प्रदेश भर में मानकुंवर बाई का सम्मान हुआ।
उन्हें कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
इतना ही नही मानकुंवर बाई ने पुरुस्कार के साथ मिली 50 हजार रूपए की पूरी राशि सामाजिक और धार्मिक कार्यो में खर्च कर डाली..मानकुंवर बाई के बड़े बेटे धर्मेन्द्र सिंह राजपूत ने अपनी मां की संघर्ष की कहानी सुनाई और कहा, मैं 6 साल का था,तब मेरे पिताजी इस दुनिया से चले गए थे,तबसे मां को खेती करते हुए देख रहा हूं। किसान एक खेती पर निर्भर रहते है,लेकिन मेरी माताजी ने थोड़े थोड़े रगबे में अलगअलग फसल आलू,लहसन,प्याज,गेंहू और चना बोया और हिम्मत नही हारी और खुद मज़दूर बनकर काम किया ।
मानकुंवर का छोटा बेटा अर्जुन की दिमागी हालत ठीक नही हैं इसलिए उन्हें उनका भी खास ख्याल रखना पड़ता है। मानकुंवर की जिंदगी में कई मुश्किलें आई लेकिन वो हारी नहीं बल्कि आगे बढ़ती गई।